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  4. The painter of the Ashoka Stambh of the constitution did not get due respect even after his death
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Last Modified: इंदौर (मध्यप्रदेश) , सोमवार, 14 अगस्त 2023 (18:56 IST)

अशोक स्तंभ के चित्रकार को नहीं मिला उचित सम्मान, परिजनों को आज भी है इस बात का मलाल

Ashoka Stambh
Painter of Ashoka Stambh Design : संविधान की मूल प्रति के लिए सारनाथ का अशोक स्तंभ डिजाइन करने वाले चित्रकारों में शामिल दीनानाथ भार्गव के परिजनों को मलाल है कि राष्ट्रीय प्रतीक के चितेरे को उनके निधन के 7 साल बाद भी उचित सम्मान नहीं मिल सका है। भार्गव के परिजन चाहते हैं कि दिवंगत चित्रकार के नाम पर सरकार कुछ ऐसा करे जिससे उनकी कला की ऐतिहासिक विरासत आने वाली पीढ़ियों तक पहुंच सके।
 
स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर भार्गव के छोटे बेटे सौमित्र (55) ने सोमवार को कहा, देश के सरकारी दस्तावेजों से लेकर मुद्रा तक पर मेरे पिता के चित्रित अशोक स्तंभ की छाप रहती है, लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण है कि मेरे पिता को उनके निधन के सात साल बाद भी उचित सम्मान नहीं मिल सका है।
 
उन्होंने कहा, मेरे पिता को उनके जीते जी मलाल था कि देश के प्रति कलात्मक योगदान के मुकाबले उन्हें उचित सम्मान नहीं मिला। उनकी मौत के बाद अब हम लोग भी इस मलाल से जूझ रहे हैं। मध्य प्रदेश के बैतूल जिले के मुलताई से ताल्लुक रखने वाले दीनानाथ भार्गव ने इंदौर में 24 दिसंबर 2016 को 89 वर्ष की उम्र में आखिरी सांस ली थी।
 
भार्गव के बेटे सौमित्र ने बताया कि पिता के निधन के बाद वह स्थानीय जनप्रतिनिधियों से लेकर केंद्र सरकार के नुमाइंदों तक से मिल चुके हैं, लेकिन संविधान के अशोक स्तंभ के चित्रकार की याद को चिरस्थाई बनाने के लिए अब तक ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं।

उन्होंने कहा, मेरे पिता के नाम पर किसी ट्रेन या राष्ट्रीय राजमार्ग या कला केंद्र या विश्वविद्यालय या स्टेडियम का नामकरण किया जाना चाहिए ताकि लोग जान सकें कि दीनानाथ भार्गव कौन थे वरना उनका नाम इतिहास के पन्नों में दबकर रह जाएगा।
 
सौमित्र ने बताया कि स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने संविधान की मूल प्रति डिजाइन करने का जिम्मा रवींद्रनाथ टैगोर के शांति निकेतन के कला भवन के प्राचार्य और मशहूर चित्रकार नंदलाल बोस को सौंपा था। उन्होंने बताया कि बोस ने संविधान के लिए अशोक स्तंभ की तस्वीर बनाने का अहम काम उनके पिता को सौंपा था जो उस वक्त 21 साल की उम्र में शांति निकेतन में कला की पढ़ाई कर रहे थे।
 
सौमित्र ने बताया कि अपने गुरु बोस के इस आदेश के बाद उनके पिता लगातार तीन महीने तक कोलकाता के चिड़ियाघर गए थे और उन्होंने वहां शेरों के उठने-बैठने व उनके हावभाव पर बारीक नजर रखी थी ताकि वह अपनी कृति में जान डाल सकें। उन्होंने बताया कि संविधान की मूल प्रति के लिए भार्गव के चित्रित अशोक स्तंभ की एक प्रतिकृति उनके इंदौर स्थित घर में आज भी सहेजकर रखी गई है।
 
भार्गव की बहू सापेक्षी के मुताबिक, उनके ससुर ने उन्हें बताया था कि आयातित कागज पर सोने के वर्क से बनी स्याही के इस्तेमाल से तैयार इस प्रतिकृति में दिखाई दे रहे तीन शेरों में नर, मादा और उसके शावक की परिकल्पना है।

उन्होंने बताया, जब मेरे ससुर संविधान के लिए अशोक स्तंभ चित्रित कर रहे थे, तब रंग में डूबा ब्रश कागज पर गिर गया था जिससे यह कृति बिगड़ गई थी। इसके बाद उन्होंने नई कृति चित्रित की थी जिसका इस्तेमाल संविधान की मूल प्रति में किया गया था।
Edited By : Chetan Gour (भाषा)