Supreme Court का समलैंगिक विवाह पर खुली अदालत में सुनवाई से इंकार
gay marriage case: उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने समलैंगिक विवाह (gay marriage) को कानूनी मान्यता देने से इंकार किए जाने संबंधी उसके पिछले साल के निर्णय की समीक्षा के लिए दायर याचिकाओं पर खुली अदालत (open court) में सुनवाई करने की अनुमति देने से मंगलवार को इंकार कर दिया।
पुरुष समलैंगिक अधिकार कार्यकर्ताओं को झटका देते हुए प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5 न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने पिछले साल 17 अक्टूबर को समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से इंकार कर दिया था। पीठ ने कहा था कि कानूनन मान्यता प्राप्त विवाह के अलावा अन्य को कोई मंजूरी नहीं है।
समलैंगिक लोगों के अधिकारों की जोरदार पैरोकारी की : हालांकि शीर्ष अदालत ने समलैंगिक लोगों के अधिकारों की जोरदार पैरोकारी की थी ताकि अन्य लोगों को उपलब्ध वस्तुओं और सेवाओं को पाने में उन्हें भेदभाव का सामना न करना पड़े। शीर्ष अदालत ने उत्पीड़न एवं हिंसा का सामना करने वाले (ट्रांसजेंडर) समुदाय के लोगों को आश्रय देने के लिए सभी जिलों में गरिमा गृह और संकट की घड़ी में इस्तेमाल करने के लिए समर्पित हॉटलाइन नंबर की व्यवस्था करने को कहा था।
प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा निर्णय की समीक्षा का अनुरोध करने वाली याचिकाओं पर 10 जुलाई को अपने कक्ष में विचार करने वाले हैं।
मंगलवार को वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी और एन.के. कौल ने मामले का उल्लेख किया तथा प्रधान न्यायाधीश से खुली अदालत में पुनर्विचार याचिकाओं की सुनवाई करने का आग्रह किया। कौल ने न्यायालय से कहा कि मेरा कहना है कि क्या इन याचिकाओं की खुली अदालत में सुनवाई की जा सकती है?
प्रधान न्यायाधीश ने उनसे कहा कि ये संविधान पीठ द्वारा समीक्षा किए जाने वाले मामले हैं जिन्हें कक्ष (चैम्बर) में सूचीबद्ध किया गया है। परंपरा के अनुसार पुनर्विचार याचिकाओं पर न्यायाधीशों द्वारा कक्ष में विचार किया जाता है। प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5 न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता देने का अनुरोध करने वाली 21 याचिकाओं पर 4 अलग-अलग फैसले सुनाए थे।
सभी 5 न्यायाधीश विशेष विवाह अधिनियम के तहत समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से इंकार करने को लेकर एकमत थे। पीठ ने कहा था कि इस तरह के संबंध को वैध बनाने के लिए कानून में बदलाव करना संसद के अधिकार क्षेत्र में है।(भाषा)
Edited by: Ravindra Gupta