1. समाचार
  2. मुख्य ख़बरें
  3. राष्ट्रीय
  4. Supreme Court asked sharp questions to Justice Yashwant Verma
Last Updated :नई दिल्ली , बुधवार, 30 जुलाई 2025 (15:38 IST)

सुप्रीम कोर्ट ने न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा से तीखे सवाल कर कहा, आपका आचरण विश्वसनीय नहीं

Justice Yashwant Verma
Yashwant Verma Case: उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने नकदी बरामदगी (cash recovery) मामले में आंतरिक जांच समिति की रिपोर्ट को अमान्य करार देने का अनुरोध करने वाले न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा (Yashwant Verma) के आचरण को विश्वसनीय न बताते हुए बुधवार को उनसे तीखे सवाल पूछे। आंतरिक समिति की रिपोर्ट में न्यायमूर्ति वर्मा को कदाचार का दोषी पाया गया था। शीर्ष अदालत ने न्यायमूर्ति वर्मा से पूछा कि वह आंतरिक जांच समिति के समक्ष क्यों पेश हुए और उसे वहीं चुनौती क्यों नहीं दी।
 
अदालत ने न्यायमूर्ति वर्मा से कहा कि उन्हें समिति की रिपोर्ट के खिलाफ उच्चतम न्यायालय पहले आना चाहिए था। न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति एजी मसीह की पीठ ने कहा कि अगर भारत के प्रधान न्यायाधीश के सामने यह मानने के लिए कोई दस्तावेज है कि किसी न्यायाधीश ने कदाचार किया है तो वह राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को सूचित कर सकते हैं। पीठ ने कहा कि आगे बढ़ना या नहीं बढ़ना, राजनीतिक निर्णय से तय होगा। लेकिन न्यायपालिका को समाज को यह संदेश देना है कि प्रक्रिया का पालन किया गया है।ALSO READ: नकदी बरामदगी मामला: सुप्रीम कोर्ट ने न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा से उनकी याचिका को लेकर किए सवाल
 
आंतरिक जांच समिति की सिफारिश असंवैधानिक : न्यायमूर्ति वर्मा की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि उन्हें हटाने की आंतरिक जांच समिति की सिफारिश असंवैधानिक है। सिब्बल ने अदालत से कहा कि इस तरह की कार्यवाही की सिफारिश करने से खतरनाक मिसाल कायम होगी। उन्होंने कहा कि न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा ने पहले उच्चतम न्यायालय का रुख इसलिए नहीं किया, क्योंकि टेप जारी हो चुका था और उनकी छवि खराब हो चुकी थी।
 
शीर्ष अदालत ने न्यायमूर्ति वर्मा के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का अनुरोध करने वाले वकील मैथ्यूज जे. नेदुम्परा से भी सवाल पूछे। सुनवाई के दौरान, न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता ने नेदुम्परा से पूछा कि क्या उन्होंने प्राथमिकी दर्ज करने के अनुरोध से पहले पुलिस से औपचारिक शिकायत की है। शीर्ष अदालत ने न्यायमूर्ति वर्मा की याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया। न्यायामूर्ति वर्मा ने याचिका में आंतरिक जांच प्रक्रिया और उन्हें हटाने से संबंधित भारत के प्रधान न्यायाधीश की सिफारिश को चुनौती दी है।ALSO READ: जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पहले लोकसभा में आएगा
 
नेदुम्परा की याचिका पर भी आदेश सुरक्षित : न्यायालय ने प्राथमिकी दर्ज करने से संबंधित नेदुम्परा की याचिका पर भी आदेश सुरक्षित रख लिया। न्यायमूर्ति वर्मा ने भारत के तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना की 8 मई की सिफारिश को भी रद्द करने का अनुरोध किया है, जिसमें खन्ना ने संसद से वर्मा के खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही शुरू करने का आग्रह किया था।
 
न्यायमूर्ति वर्मा ने यह आरोप लगाया : न्यायमूर्ति वर्मा ने आरोप लगाया कि समिति की रिपोर्ट पहले से तय विमर्श पर आधारित है और ऐसा लगता है कि प्रक्रियात्मक निष्पक्षता की परवाह किए बिना मामले को निपटाने की जल्दबाजी के साथ जांच की गई। याचिका में कहा गया है कि जांच समिति ने उन्हें पूर्ण व निष्पक्ष तरीके से अपना पक्ष रखने का अवसर दिए बिना प्रतिकूल निष्कर्ष निकाला।ALSO READ: जस्टिस यशवंत वर्मा को हटाने के लिए संसद के दोनों सदनों में नोटिस
 
मामले की जांच कर रही समिति की रिपोर्ट में कहा गया था कि न्यायमूर्ति वर्मा और उनके परिवार के सदस्यों का उस 'स्टोर रूम' पर किसी न किसी तरह से नियंत्रण था, जहां आग लगने के बाद बड़ी मात्रा में आधी जली हुई नकदी मिली थी। समिति ने कहा कि इससे न्यायमूर्ति वर्मा का कदाचार साबित होता है और यह इतना गंभीर है कि उन्हें पद से हटाया जाना चाहिए।
 
पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश शील नागू की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की समिति ने 10 दिन तक जांच की, 55 गवाहों से पूछताछ की और न्यायमूर्ति वर्मा के आधिकारिक आवास पर उस स्थान का दौरा किया, जहां 14 मार्च को रात करीब 11:35 बजे आग लगी थी। घटना के समय न्यायमूर्ति वर्मा दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश थे और फिलहाल इलाहाबाद उच्च न्यायालय में न्यायाधीश हैं।
 
तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश खन्ना ने रिपोर्ट पर गौर करने के बाद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखकर न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग चलाने की सिफारिश की थी।(भाषा)
 
Edited by: Ravindra Gupta
ये भी पढ़ें
क्यों आती है सुनामी? 21 साल पहले इससे गई थी 2,30,000 लोगों की जान