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  4. Rivaba Jadejas trouble increased before voting, father-in-law Anirudh supported Congress candidate
Written By वेबदुनिया न्यूज डेस्क

वोटिंग से पहले बढ़ी रीवाबा जड़ेजा की मुश्किल, ससुर अनिरुद्ध ने किया कांग्रेस उम्मीदवार का समर्थन

Rivaba
गुजरात विधानसभा चुनाव में चर्चित उम्मीदवारों में एक क्रिकेटर रवीन्द्र जडेजा की पत्नी रीवाबा जडेजा की वोटिंग से ठीक पहले मुश्किलें बढ़ गई हैं। रीवा की मुश्किल किसी और ने नहीं बल्कि उनके अपने ससुर अनिरुद्ध सिंह जडेजा ने बढ़ाई है। अनिरुद्ध ने मंगलवार को एक वीडियो जारी कर कांग्रेस उम्मीदवार विपेन्द्र सिंह जडेजा का समर्थन किया है। 
 
रीवाबा जडेजा जामनगर उत्तर सीट से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं, जबकि कांग्रेस ने विपेन्द्र जडेजा को उम्मीदवार बनाया है। दोनों ही राजपूत समुदाय से आते हैं। अनिरुद्ध जडेजा यानी रवीन्द्र जडेजा के पिता ने खासकर राजपूत समुदाय के लोगों से कांग्रेस उम्मीदवार के पक्ष में वोट डालने की अपील की है। उन्होंने लोगों से कहा कि विपेन्द्र उनके भाई जैसे हैं।
 
ननद भी विरोध में : इतना ही नहीं रीवा की ननद नयना जाडेजा भी उनका खुलकर विरोध कर रही हैं। जडेजा की बहन नयना उन यह कहकर हमला कर चुकी हैं कि वे रवीन्द्र के नाम का उपयोग सिर्फ पब्लिसिटी और वोटों के लिए कर रही हैं। उन्हें अपना उपनाम सोलंकी से जडेजा करने में 6 साल लग गए।
 
राह उतनी मुश्किल भी नहीं : पिछले विधानसभा चुनाव के परिणाम पर नजर डालें तो रीवाबा की राह उतनी मुश्किल नहीं है। क्योंकि तब धर्मेन्द्र सिंह जडेजा करीब 41 हजार वोटों से जीते थे। उन्हें कांग्रेस उम्मीदवार जीवण भाई की तुलना करीब डबल वोट मिले थे। चूंकि भाजपा ने धर्मेन्द्र जडेजा का टिकट काट दिया है, इसलिए उन्हें उनके असंतोष का भी सामना करना पड़ सकता है। उनके पक्ष में सबसे प्रमुख बात यह है कि यह सीट भाजपा का मजबूत गढ़ है, वहीं रवीन्द्र जडेजा भी उनके लिए लगातार मेहनत कर रहे हैं। 
Rivaba
कौन हैं रीवाबा : रीवाबा जडेजा उर्फ रीवाबा सोलंकी चुनावी मैदान में भले ही पहली बार उतरी हैं, लेकिन सार्वजनिक कार्यक्रमों में वे पहले से हिस्सा लेती रही हैं। वे राजपूत करणी सेना की पदाधिकारी भी रह चुकी हैं। साथ ही गुजरात के उद्योगपति परिवार से आती हैं। उनके पिता हरदेव सिंह सोलंकी गुजरात के उद्योगपति हैं।
 
रीवा खुद मैकेनिकल इंजीनियर हैं। उन्होंने एक ट्‍वीट में कहा है कि वे वोटों की राजनीति करने के लिए नहीं आई, बल्कि सेवा का काम करने के लिए राजनीति में आई हैं। हालांकि अब 8 दिसंबर को ही पता चलेगा कि रीवाबा अपनी 'राजनीतिक इंजीनियरिंग' में कितनी सफल होती हैं। 
written and edited by: Vrijendra Singh Jhala
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