एकरूपता की जरूरत नहीं, विविधता में भी एकता है
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 100 वर्ष पूरे होने पर मोहन भागवत ने कहा
100 years of Rashtriya Swayamsevak Sangh: देश में एकजुटता का संदेश देते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत ने एकता के लिए एकरूपता की जरूरत को नकारते हुए मंगलवार को कहा कि विविधता में भी एकता है और विविधता एकता का ही परिणाम है। आरएसएस के 100 वर्ष पूरे होने के अवसर पर विभिन्न क्षेत्रों की प्रतिष्ठित हस्तियों को संबोधित करते हुए उन्होंने हिंदुओं को भूगोल और परंपराओं की व्यापक रूपरेखा में परिभाषित किया और कहा कि कुछ लोग जानते हैं, लेकिन खुद को हिंदू नहीं मानते, जबकि कुछ अन्य इसे नहीं जानते।
वह यहां विज्ञान भवन में आयोजित 'आरएसएस की 100 वर्ष यात्रा : नए क्षितिज' विषय पर आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि इस कार्यक्रम की विषयवस्तु भौगोलिक नहीं है, बल्कि 'भारत माता' के प्रति समर्पण और पूर्वजों की परंपरा है जो सभी के लिए समान है। उन्होंने कहा कि हमारा डीएनए भी एक है... सद्भावना से रहना हमारी संस्कृति है।
विविधता में भी एकता : भागवत ने कहा कि हम एकता के लिए एकरूपता को जरूरी नहीं मानते, विविधता में भी एकता है। विविधता, एकता का ही परिणाम है। आरएसएस प्रमुख ने कहा कि भारत आज़ादी के 75 वर्षों में वह वांछित दर्जा हासिल नहीं कर सका जो उसे मिलना चाहिए था। उन्होंने कहा कि आरएसएस का उद्देश्य देश को 'विश्वगुरु' बनाना है और दुनिया में भारत के योगदान का समय आ गया है।
देश हम सबकी जिम्मेदारी : उन्होंने देश के उत्थान के लिए सामाजिक परिवर्तन की आवश्यकता पर जोर दिया। भागवत ने कहा कि गर हमें देश का उत्थान करना है, तो यह किसी एक पर काम छोड़ देने से नहीं होगा। हर किसी की अपनी भूमिका होगी। उन्होंने यह भी कहा कि नेताओं, सरकारों और राजनीतिक दलों की भूमिका इस प्रक्रिया में सहायता करना है। उन्होंने कहा कि संघ के मन में एक बात है कि अगर यह लिखा जाता है कि संघ के कारण देश बचा तो ऐसा नहीं है। हम ऐसा नहीं करना चाहते। रावण से दुनिया त्रस्त थी। राम नहीं होते तो क्या होता और शिवाजी नहीं होते तो क्या होता। दूसरों को ठेका देना सही नहीं है, देश हम सबकी जिम्मेदारी है।
भारतीयों ने किसी से भेदभाव नहीं किया : आरएसएस प्रमुख ने कहा कि लेकिन मुख्य कारण समाज का परिवर्तन और उसकी क्रमिक प्रगति होगी। उन्होंने कहा कि प्राचीन काल से ही भारतीयों ने कभी लोगों के बीच भेदभाव नहीं किया, क्योंकि वे यह समझते थे कि सभी और विश्व एक ही दिव्यता से बंधे हैं। उन्होंने कहा कि "हिंदू" शब्द का प्रयोग बाहरी लोग भारतीयों के लिए करते थे। उन्होंने कहा कि हिंदू अपने मार्ग पर चलने और दूसरों का सम्मान करने में विश्वास रखते हैं तथा वे किसी मुद्दे पर लड़ने में नहीं, बल्कि समन्वय में विश्वास रखते हैं।
इससे पहले, आरएसएस के राष्ट्रीय प्रचार एवं मीडिया प्रमुख सुनील आंबेकर ने कहा कि मंगलवार से शुरू हुई तीन दिवसीय व्याख्यान श्रृंखला के दौरान भागवत समाज के प्रमुख लोगों के साथ संवाद करेंगे और देश के सामने मौजूद महत्वपूर्ण मुद्दों पर अपने विचार प्रस्तुत करेंगे। (एजेंसी/वेबदुनिया)
Edited by: Vrijendra Singh Jhala