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Last Updated : गुरुवार, 12 अप्रैल 2018 (13:41 IST)

विधायक परिवार की दबंगई से एक आईपीएस भी परेशान

विधायक परिवार की दबंगई से एक आईपीएस भी परेशान - rape accused bjp mla kuldeep singh sengar from unnao still not arrested
लखनऊ। बांगरमऊ, उन्नाव में भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर की दबंगई इस कदर है कि उनके भाई, अतुल सिंह ने 14 वर्ष पहले एक आईपीएस अधिकारी और वर्तमान में एएसपी रामलाल वर्मा को गोली मार दी थी लेकिन जब इस मामले में आरोप पत्र दाखिल होने के बाद मामले की फाइल ही गायब हो गई।      
 
अब हालत यह है कि सरकार के एक जिम्मेदार आइपीएस अधिकारी को न्याय पाने के लिए अपने ही विभाग में कार्रवाई का पता लगाने के लिए आरटीआई लगानी पड़ी लेकिन उसके बाद भी केस के बारे में कुछ पता नहीं चला। जब योगी सरकार के दौर में एक आईपीएस अधिकारी के साथ यह होता है तो आम आदमी की चिंता ही कौन करता है।  
 
एक प्रमुख हिंदी दैनिक 'दैनिक जागरण' में प्रकाशित समाचार के अनुसार दबंग विधायक के आगे सिस्टम कितने दबाव में है कि आइपीएस अधिकारी रामलाल वर्मा को गोली मारने के मामला बानगी भर है। स्थिति यह है कि राज्य के डीजीपी विधायक को अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में 'माननीय विधायक जी' कहते हैं। क्या एक डीजीपी सभी विधायकों को यही कहकर संबोधित करता है? 
 
विदित हो कि 17 जुलाई, 2004 को बतौर एएसपी वर्मा को गंगाघाट थानाक्षेत्र में गोली मार दी गई थी जिसमें विधायक का भाई अतुल सिंह नामजद था। 14 वर्ष पूर्व हुई घटना एएसपी से जुड़ी थी तो उस वक्त आनन-फानन में पुलिस ने विधायक के भाई समेत अन्य आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था लेकिन कुछ समय बाद ही आरोपियों को जेल से जमानत मिल गई। विधायक का भाई आज भी आजाद घूमता है और बलात्कार पीडि़त लड़की का कहना है कि अगर उनका परिवार गांव में आया तो अतुल सिंह उन्हें मारकर कहीं भी फेंक सकता है।
 
ऐसा है माननीय विधायक और उनके परिवार का आतंक। डीजीपी मुख्यालय में तैनात रामलाल वर्मा ने समाचार पत्र को बताया है कि अपराध संख्या 326/4 में दर्ज मामले में आज तक मुकदमा शुरू ही नहीं हुआ। उनका कहना है कि कई बार प्रयास के बाद भी इस मामले में कुछ पता ही नहीं चला। हालांकि आरोपियों पर मुकदमा चलाना राज्य सरकार की जिम्मेदारी होती है लेकिन फिर भी राज्य की एनकाउंटर प्रिय सरकार अपने ही एक अधिकारी के साथ न्याय नहीं कर पा रही है। 
 
वर्ष 2014 मई में जब रामलाल वर्मा अपने केस की स्थिति जानने के लिए आरटीआई का सहारा लिया तो उन्हें जवाब में बताया गया कि उनके मामले की केस डायरी ही न्यायालय में नहीं भेजी गई है। उसके बाद यहां बतौर एसपी तैनात रहे रतन कुमार श्रीवास्ताव से गंगाघाट थाने में केस की स्थित का पता लगाया तो वहां से भी कुछ पता नहीं चला। यह हालत एक सेवारत आईपीएस से जुड़े मामले की है तो आम लोगों से जुड़े मामलों को कौन पूछता है? 
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