'मुसलमानों के गटर वाले बयान' की पूरी सचाई, कांग्रेस के पूर्व मंत्री ने दी सफाई
नई दिल्ली। लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण के धन्यवाद ज्ञापन में कांग्रेस के सवालों का जवाब देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस पर जमकर निशाना साधा। प्रधानमंत्री मोदी ने इस दौरान कहा कि 'जब शाहबानो का मामला चल रहा था, तब कांग्रेस के किसी मंत्री ने कहा था, मुसलमानों के उत्थान की जिम्मेदारी कांग्रेस की नहीं है। अगर मुसलमान गटर में रहना चाहते हैं तो उन्हें रहने दो।'
कांग्रेस के सवाल करने पर प्रधानमंत्री ने आगे जोड़ा कि 'यह बयान कांग्रेस के एक मंत्री का है। हालांकि उन्होंने मंत्री का नाम नहीं लिया। प्रधानमंत्री ने कहा कि एक टीवी चैनल के इंटरव्यू में ये बातें कही थीं, हालांकि इसके सत्यापन के लिए मेरे पास अवसर नहीं है। मैं इसकी यूट्यूब लिंक भेज दूंगा। प्रधानमंत्री के इस बयान के बाद राजनीतिक हलकों में इस बयान को लेकर घमासान मचा हुआ है। प्रधानमंत्री ने कांग्रेस के मुलसमानों के हितैषी होने के दावों को खारिज करते हुए शाहबानो केस की याद दिलाई।
इस मामले को बीजेपी आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय के एक ट्वीट ने और गर्मा दिया। इस ट्वीट में मालवीय ने राजीव गांधी सरकार के एक मंत्री आरिफ मोहम्मद खान का वीडियो जारी किया और लिखा कि मुसलमानों के नाम पर दिन-रात आंसू बहाने वाली कांग्रेस की हकीकत...
इस वीडियो में राजीव गांधी सरकार में मंत्री रह चुके आरिफ मोहम्मद खान कह रहे हैं कि कांग्रेस ने जब शाहबानो केस का विरोध किया तो मैंने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया, लेकिन इस्तीफा देने के बाद मैं किसी दोस्त के घर चला गया ताकि लोग मुझसे संपर्क न कर सकें। हुआ भी यही, लेकिन अगले दिन जब मैं संसद आया तो कई दोस्त मुझे समझाने आ गए। आखिर में नरसिम्हा राव आए और बोले तुम अच्छा बोलते हो, लेकिन जिद्दी हो।
आरिफ मोहम्मद खान कहते हैं कि मैं कई मौकों पर यह बता चुका हूं कि नरसिम्हा राव ने मुझसे साफ-साफ कहा था कि कांग्रेस समाज सुधारक नहीं है। हम राजनीति करने आए हैं, सरकार चलाने आए हैं। अगर मुसलमान गटर में रहना चाहता हैं तो रहने दो।
क्या बोले आरिफ खान : लोकसभा में इस बयान के बाद समाचार एजेंसी एएनआई से आरिफ़ मोहम्मद ख़ान ने कहा कि 6-7 साल पहले एक टीवी इंटरव्यू के दौरान मुझसे पूछा गया कि क्या मुझ पर इस्तीफ़ा (शाहबानो मामले के बाद) वापस लेने के लिए किसी तरह का दबाव बनाया गया था। मैंने उन्हें बताया कि इस्तीफ़ा देने के बाद मैं अपने घर से चला गया था। अगले दिन संसद में मेरी मुलाक़ात अर्जुन सिंह से हुई। वे लगातार मुझे बोल रहे थे कि मैंने जो किया वो सैद्धांतिक तौर पर सही है लेकिन इससे पार्टी के लिए बहुत ज़्यादा मुश्किलें बढ़ जाएंगी, तब नरसिम्हा राव ने मुझसे कहा था, तुम बहुत ज़िद्दी हो। अब तो शाहबानो ने भी अपना स्टैंड बदल लिया है।
लोकसभा में मोदी के जिक्र पर आरिफ ने कहा कि प्रधानमंत्री ने मेरे इंटरव्यू का उल्लेख कर यह संदेश देने की कोशिश की है कि कब तक समाज का एक तबक़ा सत्तारुढ़ दलों को उसे धोखा देने का अधिकार देता रहेगा। यह बिलकुल साफ संदेश है।
क्या था शाहबानो मामला : इंदौर की रहने वाली शाहबानो के कानूनी तलाक भत्ते पर देशभर में राजनीतिक बवाल मच गया था। तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने एक साल के भीतर मुस्लिम महिला (तलाक में संरक्षण का अधिकार) अधिनियम, (1986) पारित कर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया था। शाहबानो को उसके पति मोहम्मद खान ने 1978 में तलाक दे दिया था।
5 बच्चों की मां 62 वर्षीय शाहबानो ने गुजारा भत्ता पाने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ी और पति के खिलाफ गुजारे भत्ते का केस जीत भी लिया था। दुर्भाग्य से केस जीतने के बाद भी शाहबानो को पति से हर्जाना नहीं मिल सका। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने शाहबानो केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पुरजोर विरोध किया था।