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Last Modified: नई दिल्ली , शनिवार, 29 मार्च 2025 (18:36 IST)

Pollution : कितनी प्रदूषित हैं नदियां, क्या मास्क पहनकर खुले में खेलेंगे बच्चे, प्रदूषण पर सुप्रीम कोर्ट के जज सख्त

न्यायमूर्ति नाथ ने जल प्रदूषण को एक अन्य प्रमुख चिंता करार दिया और कहा कि कई पवित्र एवं प्राचीन नदियों में अनुपचारित अपशिष्ट फेंका या बहाया जा रहा है।

air pollution
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश विक्रम नाथ ने वायु प्रदूषण से निपटने के लिए कार्बन उत्सर्जन पर लगाम लगाने और हरित प्रौद्योगिकियों में निवेश करने की आवश्यकता पर जोर देते हुए शनिवार को कहा कि बच्चों का ऐसे वातावरण में बड़ा होना अस्वीकार्य है, जहां उन्हें खुले में खेलने के लिए मास्क पहनने की जरूरत पड़े। न्यायमूर्ति नाथ ने यह भी कहा कि ऐसे समाधान तलाशने की जरूरत है, जो आर्थिक विकास और पर्यावरणीय भलाई के बीच संतुलन कायम करें तथा सरकारी नीतियों को हरित प्रौद्योगिकियों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
 
न्यायमूर्ति नाथ ने यहां विज्ञान भवन में पर्यावरण पर राष्ट्रीय सम्मेलन-2025 के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए यह टिप्पणी की। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में शिरकत की।
न्यायमूर्ति नाथ ने कहा कि भारत की राजधानी में प्रदूषण का स्तर अक्सर बहुत ज्यादा रहता है। मेरा मानना ​​है कि हम सभी इस बात से सहमत हो सकते हैं कि हमारे बच्चों का ऐसे वातावरण में बड़ा होना स्वीकार्य नहीं है, जहां उन्हें बाहर खेलने के लिए मास्क पहनने की जरूरत हो या उनके कम उम्र में ही सांस संबंधी बीमारियों के शिकार होने का खतरा हो।
 
उन्होंने कहा कि यह तत्काल कार्रवाई के लिए आह्वान है, यह संकेत है कि हमें उत्सर्जन पर लगाम लगाने, स्वच्छ प्रौद्योगिकियों में निवेश करने और टिकाऊ परिवहन विकल्पों के बारे में सोचने के लिए एक साथ आना चाहिए, जिससे हम जिस हवा में सांस लेते हैं, उससे समझौता किए बिना आर्थिक प्रगति संभव हो सके।” न्यायमूर्ति नाथ ने जल प्रदूषण को एक अन्य प्रमुख चिंता करार दिया और कहा कि कई पवित्र एवं प्राचीन नदियों में अनुपचारित अपशिष्ट फेंका या बहाया जा रहा है।
 
उन्होंने कहा कि मैं जब इन नदियों को देखता हूं, तो मैं पुरानी यादों में खोने के साथ ही चिंता के भाव में डूब जाता हूं... पुरानी यादों में इसलिए खो जाता हूं, क्योंकि इनका पानी कितना निर्मल तथा अविरल होता था और चिंता के भाव में इसलिए डूब जाता हूं, क्योंकि हम इनके प्राकृतिक गौरव को संरक्षित करने में असफल रहे हैं। औद्योगिक अपशिष्ट का उपचार करना, अपजल शोधन के बुनियादी ढांचे को बढ़ाना और स्थानीय समुदायों को नदी के किनारों पर सफाई बनाए रखने के लिए प्रोत्साहित करना बेहद जरूरी है।”
 
राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) की भूमिका की सराहना करते हुए न्यायमूर्ति नाथ ने कहा कि एनजीटी 2010 में अपनी स्थापना के बाद से आशा की किरण बनकर उभरा है और इसने पर्यावरण संबंधी विवादों के समाधान को कारगर बनाने में अहम भूमिका निभाई है।
 
उन्होंने कहा कि 'प्रदूषणकर्ता के लिए मुआवजा' और एहतियाती उपायों का समर्थन करके न्यायाधिकरण ने उद्योगों, सरकारी निकायों और नागरिकों को प्राकृतिक संसाधनों के इस्तेमाल को लेकर नए सिरे से सोचने के लिए प्रेरित किया है। Edited by: Sudhir Sharma
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