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Last Modified: नई दिल्ली , शुक्रवार, 28 मार्च 2025 (00:04 IST)

जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ FIR की मांग वाली याचिका पर SC में सुनवाई आज, 6 बार एसोसिएशन ने की CJI से मुलाकात

प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने बुधवार को वकील मैथ्यूज जे नेदुम्परा द्वारा याचिका का उल्लेख किए जाने के बाद तत्काल सुनवाई से इनकार कर दिया था।

Supreme court
दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायाधीश यशवंत वर्मा के सरकारी घर से कथित तौर पर अधजले नोट मिलने को लेकर प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश देने का अनुरोध करने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट आज सुनवाई करेगा शुक्रवार के लिए न्यायालय की वाद सूची के अनुसार, न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ इस मामले की सुनवाई करेगी। प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने बुधवार को वकील मैथ्यूज जे नेदुम्परा द्वारा याचिका का उल्लेख किए जाने के बाद तत्काल सुनवाई से इनकार कर दिया था।
 
नेदुम्परा और 3 अन्य ने रविवार को याचिका दायर कर दिल्ली पुलिस को मामले में प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश देने का अनुरोध किया था। याचिका में के. वीरास्वामी मामले में 1991 के फैसले को भी चुनौती दी गई है, जिसमें शीर्ष अदालत ने फैसला दिया था कि भारत के प्रधान न्यायाधीश की पूर्व अनुमति के बिना उच्च न्यायालय या शीर्ष अदालत के किसी न्यायाधीश के खिलाफ कोई आपराधिक कार्यवाही शुरू नहीं की जा सकती। नकदी की यह कथित बरामदगी 14 मार्च की रात लुटियंस दिल्ली स्थित वर्मा के आवास पर रात लगभग 11.35 बजे आग लगने के बाद हुई थी।
 
तबादले को लेकर 6 बार एसोसिएशन ने सीजेआई से की मुलाकात
छह उच्च न्यायालयों के बार एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने गुरुवार को भारत के प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना से मुलाकात की और दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश यशवंत वर्मा को इलाहाबाद उच्च न्यायालय स्थानांतरित करने की सिफारिश वापस लेने की मांग की। बैठक के तुरंत बाद, इलाहाबाद उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन (एएचसीबीए) के अध्यक्ष अनिल तिवारी ने कहा कि सीजेआई ने उन्हें उनकी मांगों पर विचार करने का आश्वासन दिया है।
 
हालांकि, घटनाक्रम के बार में जानकारी रखने वाले सूत्रों ने बताया कि सीजेआई ने कोई वादा नहीं किया। छह उच्च न्यायालयों के बार एसोसिएशन के प्रतिनिधियों ने प्रधान न्यायाधीश और कॉलेजियम के चार सदस्यों- न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, से मुलाकात की।
 
बार एसोसिएशन के प्रतिनिधियों ने कई मांगें उठाईं, जिनमें न्यायाधीश के सरकारी आवास से नकदी मिलने पर आपराधिक कार्रवाई शुरू करना भी शामिल था। बैठक के तुरंत बाद तिवारी ने मीडियाकर्मियों से कहा, ‘‘(कॉलेजियम के) पांचों सदस्यों ने हमारी बात बहुत ध्यान से सुनी और सकारात्मक तरीके से कहा कि ‘आपके द्वारा लिखित रूप में उठाए गए प्रत्येक बिंदु पर हम कानून के दायरे में पूरी तरह विचार करेंगे। आप बिल्कुल चिंता न करें।’ यह पांच वरिष्ठ न्यायाधीशों का बहुत बड़ा बयान है।’’
उन्होंने कहा कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन इस बात पर पुनर्विचार करेगा कि अनिश्चितकालीन हड़ताल जारी रखी जाए या नहीं। उन्होंने कहा, ‘‘मुझे नहीं पता कि क्या निर्णय लिया जाएगा।’’ तिवारी ने बताया कि प्रधान न्यायाधीश ने न्यायमूर्ति वर्मा को उनके मूल उच्च न्यायालय इलाहाबाद में स्थानांतरित करने की कॉलेजियम की सिफारिश के पीछे के कारणों का उल्लेख किया।
 
तिवारी ने बताया कि सीजेआई ने कहा कि न्यायमूर्ति वर्मा, जिन्हें उनके (सीजेआई) निर्देश के बाद दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा न्यायिक कार्य से हटा दिया गया था, किसी भी हाल में इलाहाबाद उच्च न्यायालय में भी कोई न्यायिक कार्य नहीं करेंगे। उन्होंने कहा कि बार एसोसिएशन अपनी आम सभा की बैठक में हड़ताल के बारे में चर्चा करेगा और ‘‘सामूहिक निर्णय’’ लेगा।
 
बार के एक अन्य नेता ने कहा, ‘‘भारत के सभी उच्च न्यायालय, इलाहाबाद उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन के अध्यक्ष और इसके अधिवक्ताओं के समर्थन में खड़े हैं। वे वास्तव में राष्ट्र के हित के लिए, पारदर्शी न्यायपालिका सुनिश्चित करने के लिए, सुरक्षित न्यायपालिका अभियान के लिए अपने पेशे का बलिदान कर रहे हैं, जिसे हम सभी ने शुरू किया है।’’ उन्होंने कहा कि बार नेताओं ने न्यायपालिका में भ्रष्टाचार के बड़े मुद्दे को मुख्य न्यायाधीश के संज्ञान में लाया है।
केरल उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन के अध्यक्ष अधिवक्ता यशवंत शेनॉय ने कहा, ‘‘हमने प्रधान न्यायाधीश और उनके कॉलेजियम को एक बात बताई है कि हमारी चिंता न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा को लेकर नहीं है, क्योंकि वे केवल लक्षणों में से एक हैं। हम बीमारी को ही देख रहे हैं और हमने बताया है कि जब अदालतें या कॉलेजियम खराब लोगों को बाहर निकालने में असमर्थ होते हैं, तो इसका असर पूरी न्यायपालिका पर पड़ता है।’’
 
शेनॉय ने कहा कि बैठक में एक ऐसी व्यवस्था बनाने की जरूरत पर जोर दिया गया, जिसके जरिये खराब लोगों की पहचान की जा सके। उन्होंने कहा कि न केवल सीजेआई बल्कि पूरे कॉलेजियम के सदस्यों ने चिंता को समझा और आश्वासन दिया कि वे भी एक "स्वच्छ न्यायपालिका" चाहते हैं। एक अन्य बार नेता ने कहा, ‘‘ऐसा नहीं है कि केवल न्यायाधीश ही भ्रष्ट हो सकते हैं, बल्कि यह एक ऐसा पहलू है जिसके कारण बार ने न्यायपालिका को अपना समर्थन दिया है और अब आगे से चीजें निश्चित रूप से बदलेंगी।’’
न्यायमूर्ति वर्मा को उनके मूल उच्च न्यायालय में वापस भेजे जाने के प्रस्ताव के विरोध में इलाहाबाद उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन 25 मार्च से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर है। इससे पहले दिन में इलाहाबाद, गुजरात, केरल, जबलपुर, कर्नाटक और लखनऊ उच्च न्यायालयों के बार निकायों के प्रतिनिधियों ने सीजेआई कार्यालय को एक ज्ञापन सौंपा और उनसे (न्यायमूर्ति खन्ना से) मिलने के लिए समय मांगा।
 
बार निकायों के प्रतिनिधियों ने न्यायमूर्ति वर्मा के आधिकारिक आवास पर साक्ष्यों के साथ कथित छेड़छाड़ का मुद्दा भी उठाया है, जहां 14 मार्च को आग लगने की एक घटना के दौरान नकदी की जली हुई गड्डियां कथित तौर पर मिली थीं। वहीं बार निकायों के सदस्यों ने घटना में प्राथमिकी दर्ज नहीं होने पर सवाल उठाया।
 
ज्ञापन में बार निकायों ने पारदर्शिता अपनाने और दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की रिपोर्ट तथा अन्य सामग्री को उच्चतम न्यायालय की वेबसाइट पर सार्वजनिक करने के लिए सीजेआई द्वारा उठाए गए कदमों की सराहना की।
 
ज्ञापन में कहा गया है कि बार एसोसिएशन प्रधान न्यायाधीश तथा कॉलेजियम से अनुरोध करते हैं कि न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा का स्थानांतरण वापस लिया जाए तथा पहले से वापस लिये गए न्यायिक कार्य के अतिरिक्त सभी प्रशासनिक कार्य भी वापस लिये जाएं।’’
 
ज्ञापन में दावा किया गया है कि दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की रिपोर्ट के अनुसार, आग की घटना के एक दिन बाद किसी ने न्यायमूर्ति वर्मा के आवास से सामान हटा दिया था। ज्ञापन में कहा गया है कि इस तरह के अपराधों में अन्य लोगों की संलिप्तता होगी और (एक प्राथमिकी) दर्ज नहीं होने से उनके अभियोजन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। 
 
इलाहाबाद उच्च न्यायालय में भेजने की सिफारिश
न्यायमूर्ति वर्मा के लुटियंस इलाके में स्थित आवास में 14 मार्च को रात करीब 11:35 बजे आग लगने के बाद कथित तौर पर अधजली नकदी बरामद हुई थी। आग लगने की घटना के बाद दमकलकर्मी न्यायमूर्ति वर्मा के आवास पहुंचे थे। विवाद के मद्देनजर, उच्चतम न्यायालय के कॉलेजियम ने न्यायमूर्ति वर्मा को उनके मूल इलाहाबाद उच्च न्यायालय में वापस भेजने की सिफारिश की। प्रधान न्यायाधीश के निर्देश के बाद दिल्ली उच्च न्यायालय ने न्यायमूर्ति वर्मा से न्यायिक कार्य वापस ले लिया था।
 
3 सदस्यीय समिति का गठन 
प्रधान न्यायाधीश ने 22 मार्च को आरोपों की आंतरिक जांच करने के लिए तीन-सदस्यीय एक समिति का गठन किया और घटना में दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डी के उपाध्याय की जांच रिपोर्ट वेबसाइट पर अपलोड करने का फैसला किया। न्यायमूर्ति वर्मा ने आरोपों की निंदा की है और कहा है कि उनके या उनके परिवार के किसी सदस्य द्वारा स्टोररूम में कभी भी कोई नकदी नहीं रखी गई थी। भाषा Edited by: Sudhir Sharma