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Written By सुरेश एस डुग्गर
Last Updated : मंगलवार, 1 सितम्बर 2020 (18:37 IST)

बेटे का जनाजा देखना या इंतजार करना, यही है कश्मीरी मांओं की किस्मत...

बेटे का जनाजा देखना या इंतजार करना, यही है कश्मीरी मांओं की किस्मत... - nobody knows mothers pain in kashmir
जम्मू। अपने बेटे का जनाजा देखना या फिर गुमशुदा बेटे की वापसी की आस में आंखों का पथरा जाना, शायद यही कश्मीर की मांओं की किस्मत में लिखा है। इनमें से कई मांएं तो विधवा हैं जिनके सहारे सिर्फ उनके बेटे हैं और कश्मीर की इन मांओं और विधवाओं की दुखभरी दास्तानें यह हैं कि आतंकवादी अब उनके बच्चों विशेषकर लड़कों को निशाना बना रहे हैं।
 
मां चाहे आतंकी की हो या फौजी की। मां सिर्फ मां होती है। उसके लिए बेटे का जनाजा देखना बहुत मुश्किल होता है। इसके सुबूत कश्मीर में कई बार देखे जा चुके हैं जब किसी आतंकी या किसी फौजी की मां ने अपने बेटों के जनाजों को कंधा दिया हो।
 
कुछ अरसा पहले आतंकियों की महिमा गाने वाले जब आतंकी दाऊद के जनाजे में जिहादी नारे लगाते हुए स्थानीय युवकों को बंदूक थामने के लिए उकसा रहे थे तो उस समय मारे गए आतंकी की मां ने जैसे ही अपने बेटे की लाश को अपने घर आते देखा तो वह सदमा बर्दाश्त नहीं कर पाई, उसे ब्रेन हैमरेज हो गया था।
 
कश्मीर की इन मांओं और विधवाओं की दुखभरी दास्तानें यह हैं कि आतंकी अब उनके बच्चों विशेषकर लड़कों को निशाना बना रहे हैं। यही कारण था कि कुपवाड़ा के दरालापोरा की रहने वाली असिया बेगम अपने दो युवा बेटों और एक मासूम बेटी के साथ अब पलायन करने को मजबूर हुई थी। उसके पति को आतंकियों ने 7 साल पहले मुखबिरी के आरोप में मार डाला था। उसने किसी तरह से पाल-पोसकर अपने तीनों बच्चों को बड़ा किया तो अब आतंकी उससे दोनों बेटों को मांग रहे हैं। ऐसा न करने पर दोनों की हत्या करने की धमकी देते हैं।
 
असिया बेगम तो पलायन कर अपने बच्चों को बचाने में कामयाब हो गई, लेकिन रजिया बी ऐसा नहीं कर पाई। आतंकवादियों ने उसके बेटे की हत्या कर दी। आरोप है कि पति पहले ही 17 सालों से सुरक्षाबलों की हिरासत में गायब हो गया था।
 
नतीजतन स्थिति आज कश्मीर में यह है कि आतंकवाद का शिकार होने वाली विधवाओं को दोहरी मार सहन करनी पड़ रही है। फाकाकशी के दौर से गुजर रही इन विधवाओं को अपने बेटों और बेटियों को बचाने के लिए दौड़ लगानी पड़ रही है। सरकार उनकी मदद को आगे नहीं आ रही है।
 
ऐसी स्थिति सिर्फ कश्मीर के आतंकवादग्रस्त गांवों में ही नहीं है बल्कि जम्मू संभाग के अधिकतर आतंकवादग्रस्त क्षेत्रों में भी यही हाल है। हालांकि जम्मू संभाग के आतंकवादग्रस्त क्षेत्रों की कुछ विधवाओं ने अपने बेटों को इसलिए आतंकियों के साथ जाने से नहीं रोका ताकि कम से कम उनकी जान बच जाए। यह बात अलग है कि कई के अपहरण कर लिए गए और बाद में सीमा पार से उन्हें संदेश मिला कि उन्हें वहां ले जाया गया है। (प्रतीकात्मक चित्र)
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