अयोध्या के हनुमानगढ़ी मंदिर में टूटेगी 120 साल से ज्यादा पुरानी परंपरा
हनुमानगढ़ी की निर्धारित परिधि से बाहर नहीं निकलते गद्दीनशीन महंत, अब प्रेमदास जी करेंगे रामलला के दर्शन
Hanumangarhi temple Ayodhya News: श्रीराम नगरी अयोध्या धाम में स्थित सिद्ध पीठ हनुमानगढ़ी की 100 साल से ज्यादा पुरानी परंपरा टूटने जा रही है। हालांकि पुरानी परंपराओं का मंदिर द्वारा सख्ती से पालन किया जाता है। इन निर्देशों का मुख्य रूप से हनुमानगढ़ी के गद्दीनशीन महंत को मुख्य रूप से करना ही होता है। इस परंपरा के टूटने के मूल में रामलला हैं।
दरअसल, राम जन्मभूमि मंदिर के गर्भगृह में रामलला के विराजमान होने के उपरांत हनुमानगढ़ी के गद्दीनशीन महंत प्रेमदास जी ने अपने प्रभु के आराध्य रामलला के दर्शन करने की मंशा जाहिर की। इसके बाद निर्वाणी अखाड़ा की बैठक बुलाई गई। इस बैठक में सर्वसम्मति से उन्हें दर्शन की अनुमति मिल गई।
1904 से चली आ रही है परंपरा : हनुमानगढ़ी के इतिहास में पहली बार होगा कि हनुमानगढ़ी के गद्दीनशीन महंत हनुमानगढ़ी के 52 बीघा की परिधि से बाहर अपने कदम निकलेंगे। 1904 से चली आ रही हनुमानगढ़ी क़ी नियमावली व परंपरा के अनुसार गद्दीनशीन महंत हनुमानगढ़ी के 52 बीघा की परिधि के बाहर आजीवन नहीं निकल सकते हैं। इसकी मर्यादा का पालन सिविल न्यायलय को भी करना पड़ता है। यदि किसी मामले में गद्दीनशीन महंत को कोर्ट जाना पड़े तो उस स्थिति में महंत के पैरोकार या मुख्तार का पैरोकार या मुख्तार कोर्ट मे हाजिर होता है। इसके बाद भी यदि कोर्ट को जरूरत हुई तो वह स्वयं हनुमानगढ़ी आकर महंत का बयान दर्ज करती है।
अक्षय तृतीया को करेंगे रामलला के दर्शन : पहली बार हनुमानगढ़ी के गद्दीनशीन महंत सीमा परिधि से बाहर निकलकर 30 अप्रैल को अयोध्या धाम स्थित हनुमानगढ़ी के इतिहास मे पहली बार बाहर निकलेंगे। यह नियमावली 1904 से लागू है। महंत प्रेमदास जी रामलला के दर्शन करेंगे। इसके लिए पूरे विधिविधान से अखाड़े के निशान के साथ प्रातः सरयू में शाही स्नान के साथ रामलला के दर्शन के लिए शोभायात्रा निकाली जाएगी, जिसमें हनुमानगढ़ी के चारों पट्टी के महंत व पंच भी शामिल होंगे।
इस शोभा यात्रा का अयोध्या के 40 स्थानों पर भव्य स्वगत किया जाएगा तथा पुष्प वर्षा की जाएगी। साथ ही हेलीकॉप्टर से भी पुष्प वर्षा की जाएगी। इतना ही नहीं हनुमानगढ़ी की तरफ से रामलला के लिए 56 भोग भी लगाया जाएगा।
Edited by: Vrijendra Singh Jhala