नई दिल्ली, देश के विभिन्न हिस्सों में मानसून की भारी बारिश प्रायः बाढ़, भूस्खलन और राजमार्गों पर मलबे के प्रवाह का कारण बनती है। इससे होने वाला आधारभूत ढांचे का नुकसान, जान-माल की व्यापक हानि और सामाजिक-आर्थिक व्यवधान एक बड़ी चुनौती है।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), गांधीनगर के शोधकर्ताओं ने सड़क-नेटवर्क में भारी वर्षा के कारण होने वाली क्षति के सटीक और वास्तविक आकलन के लिए एक एकीकृत मॉडल विकसित किया है।
यह मॉडल प्रशासकों को सड़कों पर उन संवेदनशील स्थानों की पहचान करने में मदद कर सकता है, जिन्हें राजमार्गों पर भारी वर्षा के कारण होने वाले व्यवधानों को रोकने के लिए संरक्षित करने की आवश्यकता होती है।
शोधकर्ताओं ने बाढ़, भूस्खलन या फिर मलबे के प्रवाह से जुड़ी घटनाओं के समय तथा भौगोलिक स्थान की भविष्यवाणी करने के लिए उपग्रह चित्रों, भूस्खलन एवं मलबे के प्रवाह का आकलन करने में सक्षम मॉडल और बाढ़ की भविष्यवाणी करने वाले अत्याधुनिक मॉडल्स का उपयोग किया है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि यह मॉडल भूस्खलन, मलबे के प्रवाह और बाढ़ के कारण होने वाले बुनियादी ढांचे के व्यवधान की भयावहता की भी भविष्यवाणी कर सकता है।
आईआईटी, गांधीनगर द्वारा इस संबंध में जारी एक ताजा वक्तव्य में बताया गया है कि अपने अध्ययन के अंतर्गत शोधकर्ताओं ने वर्ष 2018 में केरल में पेरियार नदी बेसिन में सामने आई घटनाओं के अनुक्रम के पुनर्संरचना द्वारा 100 वर्षों में होने वाली ऐसी एक बारिश से होने वाले नुकसान के सटीक परिमाण को निर्धारित किया है।
किसी क्षेत्र के सड़क नेटवर्क और दैनिक वर्षा डेटा से लैस उच्च-रिज़ॉल्यूशन डिजिटल एलिवेशन मॉडल (डीईएम) उथले भूस्खलन एवं मलबे के प्रवाह का विश्लेषण करता है, और भारी मात्रा में जल-प्रवाह के लिए जिम्मेदार जलाशयों के बहाव संबंधी डेटा का आकलन करता है।
आईआईटी, गांधीनगर में सिविल इंजीनियरिंग के सहायक प्रोफेसर प्रोफेसर उदित भाटिया ने कहा, “आपदाओं को लेकर लचीलापन बढ़ाने की दिशा में पहला कदम आपदा-पूर्व तैयारियों और आपदा के दुष्प्रभावों से उबरने के लिए जोखिम को अच्छी तरह से समझना है। हमारे मॉडलिंग ढांचे के नतीजे बताते हैं कि अगर हम चरम घटनाओं की प्रवृत्ति को ध्यान में नहीं रखते हैं, तो आपदा तैयारी कमजोर हो सकती है।"
प्रोफेसर भाटिया ने कहा, “किसी क्षेत्र की सड़क परिवहन प्रणाली में हजारों चौराहे और सैकड़ों से लेकर हजारों सड़क खंड होते हैं। इसलिए, इतनी अधिक जटिलता वाले सिस्टम में प्रत्येक आधारभूत संरचना से जुड़े तत्व को समान प्राथमिकता देना लगभग असंभव है।
इस अध्ययन में उपयोग किए गए हमारे हाल ही में विकसित मॉडल के संयोजन में हमारा पेटेंट जटिल नेटवर्क ढांचे में भी ऐसे 'हॉटस्पॉट' की पहचान करने में मदद करता है, जिसे सामाजिक और आर्थिक व्यवधानों को कम करने के लिए सशक्त और संरक्षित किया जाना चाहिए।"
इस संबंध में, आईआईटी, गांधीनगर के वक्तव्य में कहा गया है कि इस प्रस्तावित ढांचे को दुनिया भर में किसी भी क्षेत्र में लागू किया जा सकता है, जहां मॉडल मापांकन और सत्यापन के लिए आवश्यक अवलोकन उपलब्ध हैं।
प्रोफेसर उदित भाटिया के अलावा; इस अध्ययन में रविराज दवे और श्रीकृष्णन शिव सुब्रमण्यम शामिल हैं। यह अध्ययन युनाइटेड किंगडम स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ फिजिक्स द्वारा प्रकाशित शोध पत्रिका एन्वायरमेंट रिसर्च लेटर्स में प्रकाशित किया गया है।
(इंडिया साइंस वायर)