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Last Updated : बुधवार, 10 जनवरी 2018 (21:23 IST)

अगर यह प्रार्थना सांप्रदायिक है तो हमें डूब मरना चाहिए

अगर यह प्रार्थना सांप्रदायिक है तो हमें डूब मरना चाहिए - Kendriya Vidyalaya  Petition Supreme Court Hindutva
केन्द्रीय विद्यालयों में 1964 से एक प्रार्थना करवाई जा रही है, जो कि अचानक सांप्रदायिक और असंवैधानिक हो गई। सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका के जवाब में केन्द्र सरकार और केन्द्रीय विद्यालय संगठन से पूछा है क्या हिन्दी और संस्कृत में होने वाली प्रार्थना से किसी धार्मिक मान्यता को बढ़ावा मिल रहा है?
 
इस मामले में सबसे अहम सवाल तो यही उठता है कि 50 साल से ज्यादा समय से केंद्रीय विद्यालयों में हो रही यह प्रार्थना अचानक सांप्रदायिक कैसे हो गई? कहीं इसके पीछे कोई साजिश या अवॉर्ड वापसी गिरोह का हाथ तो नहीं? क्या सिर्फ इस आधार पर कि केन्द्र में भाजपा की सरकार है, इस प्रार्थना के माध्यम से हिन्दुत्व को बढ़ावा दिया जा रहा है तो फिर इससे पहले क्या किया जा रहा था? क्या तब यही प्रार्थना सांप्रदायिक सद्‍भाव और सौहार्द का प्रतीक थी और अब अचानक धर्म विशेष को बढ़ावा देने वाली बन गई। 
 
ऐसा नहीं लगता कि इस तरह की हरकतों के माध्यम से देश को तोड़ने की ही साजिश रची जा रही है। जो बच्चे वर्तमान में इस प्रार्थना को बिना किसी भेदभाव वाली सोच के साथ बोलते हैं, क्या उनके मन में यह जहर डालने की कोशिश नहीं है? वंदेमातरम और जन गण मन का सम्मान नहीं करने वाले लोग कल को धार्मिक आधार पर इस प्रार्थना को भी गाने से मना कर सकते हैं। मानवता का यही गीत कल कई लोगों की धार्मिक आस्था के खिलाफ हो जाएगा। आश्चर्य तो इस बात का है कि याचिकाकर्ता खुद केन्द्रीय विद्यालय में अध्ययन कर चुका है। 
 
आइए, एक नजर इस प्रार्थना पर भी डाल लेते हैं। फिर आप ही फैसला करें कि इसमें कहां धर्म‍ विशेष या हिन्दुत्व को बढ़ाने की बात हो रही है। 
 
असतो मा सदगमय॥
तमसो मा ज्योतिर्गमय॥
मृत्योर्मामृतम् गमय ॥
 
अर्थात हमको असत्य से सत्य की ओर ले चलो। अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो। मृत्यु से अमरत्व की ओर ले चलो। इसमें कौनसा ऐसा शब्द है जो शब्द किसी धर्म विशेष की ओर इशारा करता है। कोई मूर्ख व्यक्ति ही हो सकता है जो सत्य का दामन नहीं थामना चाहेगा या फिर अंधकार को गले लगाना चाहेगा और अमरत्व (मौत से नहीं) की चाह किसे नहीं होगी। 
 
दया कर दान विद्या का हमें परमात्मा देना,
दया करना हमारी आत्मा में शुद्धता देना।
हमारे ध्यान में आओ, प्रभु आंखों में बस जाओ,
अंधेरे दिल में आकर के परम ज्योति जगा देना।
बहा दो प्रेम की गंगा, दिलों में प्रेम का सागर,
हमें आपस में मिलजुल के प्रभु रहना सिखा देना।
हमारा कर्म हो सेवा, हमारा धर्म हो सेवा,
सदा ईमान हो सेवा, वो सेवक चर बना देना।
वतन के वास्ते जीना, वतन के वास्ते मरना,
वतन पे जां फ़िदा करना, प्रभु हमको सिखा देना।
दया कर दान विद्या का हमें परमात्मा देना,
दया करना हमारी आत्मा में शुद्धता देना।
 
इस प्रार्थना के भी एक-एक शब्द पर गौर करें तो भी कहीं यह संकेत नहीं मिलता कि यह किसी धर्म विशेष का प्रचार कर रही है। इस प्रार्थना में मेलजोल, सद्‍भाव, वतनपरस्ती, ईमान, प्रेम, आत्मिक शुद्धता की कामना की गई है। यदि हम अपने बच्चों को यह नहीं सिखाएंगे तो क्या आईएसआईएस और कश्मीरी पत्थरबाजों की भाषा सिखाएंगे। या फिर हम जेएनयू की तरह पाकिस्तान के समर्थन में और भारत के विरुद्ध नारेबाजी केन्द्रीय विद्यालयों या अन्य विद्यालयों में भी सिखाना चाहेंगे। यदि हमारी मानसिकता सिर्फ विरोध करने की है तो हमें डूब मरना चाहिए। 
 
इतना ही नहीं, यदि इस प्रार्थना में किसी को सांप्रदायिकता और धर्म विशेष का प्रचार नजर आता है तो पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री, श्रीमती इंदिरा गांधी, पीवी नरसिंहराव, अटलबिहारी वाजपेयी, मनमोहनसिंह आदि को भी कठघरे में खड़ा करना चाहिए। क्योंकि उनके कार्यकाल में भी यही प्रार्थना केन्द्रीय विद्यालयों में चलती रही।
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