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Last Updated : शनिवार, 30 दिसंबर 2017 (22:03 IST)

...तो आज सांप्रदायिक कहलाता भारत

...तो आज सांप्रदायिक कहलाता भारत - Ravi Shankar Prasad
नई दिल्ली। केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने एक कार्यक्रम में संविधान की मूल प्रति में नंदलाल बोस के चित्रों का उल्लेख करते हुए कहा कि यदि यही चित्र आज शामिल किए जाते तो भारत को सांप्रदायिक देश का तमगा लगा दिया जाता।

उन्होंने इस संबंध में राम, कृष्ण और नटराज के चित्रों का उल्लेख किया। रविशंकर प्रसाद ने जानकारी दी कि जब संविधान का प्रकाशन हो तो इसे मात्र एक पुस्तक के रूप में ही प्रस्तुत किया जाए या इसे भारत की विरासत का एक हिस्सा समझकर अंकित किया जाए।
इस विचार को लेकर एक लंबे समय तक लोगों में ‍बहस होती रही और अंत में तय किया गया कि देश को सदियों की गुलामी से मुक्ति मिली थी और संविधान, भारतीय समाज की संस्कृति, जीवनशैली और समाज का आइना होगा, इसलिए बंगाल के प्रख्‍यात चित्रकार नंदलाल बोस को इस काम के लिए नियुक्त किया गया। विदित हो कि हमारे संविधान की मूल प्रति भारत की उसी विरासत का हिस्सा है जो कि आज देश में शासन प्रणाली का हिस्सा है।

संविधान की मूल प्रति के बीच में लेखन किया गया है, उसके चारों ओर सूक्ष्म चित्रों की एक श्रृंखला बनी है, जिसे संविधान के वि‍भिन्न हिस्सों के साथ प्रदर्शित किया गया है। संविधान के विभिन्न पन्नों पर देश के सभी महान व्यक्तियों के चित्र हैं, जिनमें अकबर का भी चित्र शामिल है, लेकिन इन चित्रों में औरंगजेब का स्‍थान नहीं है। लेकिन अब भारत की महान विरासत को उन लोगों द्वारा धूल धूसरित किया जा रहा है, जिन्होंने विभाजनकारी शक्तियों और विदेशी प्रभाव के चलते देश के सदाचार को विकृत करने का काम किया है। ऐसे लोगों के साथ वे लोग भी शामिल रहे जिनके हाथों में सत्ता की बागडोर रही है।

मौलिक अधिकारों का हवाला देते हुए प्रसाद ने कहा कि इन्हीं चित्रों में भगवान राम को श्रीलंका से लक्ष्मण और सीता के साथ लौटते दिखाया गया है तो अर्जुन को उपदेश देते कृष्ण का चित्र भी है। कहीं वैदिक संस्कृति को दर्शाया गया है तो भगवान नटराज और गौतम बुद्ध भी इसमें चित्रित हैं।

संविधान की इसी मूल प्रति को ऐतिहासिक बनाते हुए संविधान सभा के सभी सदस्यों के हस्ताक्षर हैं, जिनमें डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, जवाहरलाल नेहरू, डॉ. आम्बेडकर, मौलाना आजाद और अन्य तत्कालीन नेताओं के नाम शामिल हैं। यह यही दर्शाता है कि सभी सुखी हों, निरोगी हों और देश की शासन व्यवस्था को चलाने में अपने अपने स्तर पर योगदान करें। उन्होंने कहा कि यही चित्र यदि आज शामिल किए जाते तो सांप्रदायिक होने का आरोप लग जाता।