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कठुआ गैंगरेप, सीबीआई की जांच क्यों नहीं चाहती महबूबा सरकार

कठुआ गैंगरेप, सीबीआई की जांच क्यों नहीं चाहती महबूबा सरकार - Kathua gangrape case, CBI, Mehbooba Mufti
जम्मू। भाजपा-पीडीपी गठबंधन सरकार ने रसाना बलात्कार और हत्याकांड की सीबीआई जांच करवाने से पूरी तरह से मना करते हुए जो अड़ियल रुख अपनाया हुआ है वह जम्मू संभाग में गुस्से की लहर को और बढ़ा रहा है। ऐसा भी नहीं है कि जम्मू कश्मीर में कभी किसी मामले की सीबीआई जांच नहीं हुई हो बल्कि कई प्रतिष्ठित मामलों में जम्मू कश्मीर पुलिस और अपराध शाखा की विफलताएं सामने आने के बाद न्यायपालिका को हस्तक्षेप करने और मामलों को केन्द्रीय जांच एजेंसी को सौंपने के लिए कहा गया था।


दरअसल जम्मू की जनता मानती है कि केवल सीबीआई जांच ही पीड़िता के परिवार को सही न्याय दिलवा सकती है। यह बात अलग है कि सरकार के भीतर ही बैठे कुछ तत्वों ने मामले को हिन्दू बनाम मुस्लिम तथा जम्मू बनाम कश्मीर का बना डाला है। मामले की जांच सीबीआई से करवाने की मांग सिर्फ जम्मू की जनता ही नहीं कर रही है बल्कि भाजपा के बर्खास्त दोनों मंत्री और भाजपा के अन्य नेता भी करने लगे हैं।

पर हैरानगी की बात यह है कि गठबंधन में शामिल होने के बावजूद भाजपा के पक्ष पर कोई कान नहीं धर रहा है। ऐसे में भाजपा का जम्मू में जनाधार खिसकाने में पीडीपी कामयाब हो गई है यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं है। यह सच है कि रसाना मामले की सीबीआई जांच नहीं करवाने और इसका विरोध करने वाले पीडीपी व नेकां जैसे दल आप भी सत्ता में रहते हुए कई बार कई मामलों में सीबीआई जांच की मांग करते रहे हैं और कई बार सीबीआई से जांच करवाने के निर्देश दे चुके हैं।

वर्तमान रसाना मामले में 8 वर्षीय लड़की के साथ हुए कथित बलात्कार और उसकी हत्या के मामले की जांच सीबीआई से करवाने के लिए न सिर्फ जम्मू की जनता बल्कि गुज्जर बक्करवाल भी जोर दे रहे हैं। इस मामले में गिरफ्तार किए गए 8 आरोपी भी कहते थे कि सीबीआई से जांच करवा लो और अगर दोषी पाए गए तो फांसी पर लटका देना। वैसे यह अचंभे वाली बात है कि मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती जब विपक्ष में थी तो शोपियां में निलोफर और आसिया की हत्या के मामले की जांच सीबीआई से करवाने की मांग करने वालों में सबसे आगे थीं। तब उनका कहना था कि उन्हें राज्य पुलिस और पुलिस की अपराध शाखा पर कतई विश्वास नहीं है।

तो आज कैसे उन्हें इन दोनों पर विश्वास पैदा हो गया, प्रश्न फिलहाल निरुत्त है। वर्ष 2009 में निलोफर और आसिया की हत्या के मामले में शुरू में, नेकां, जो कांग्रेस के साथ गठबंधन चला रहा था, उस पर उमर की अध्यक्षता में न्यायमूर्ति मुजफ्फर जान की हत्या में न्यायिक जांच का आदेश दिया गया था, लेकिन आखिरकार मामला सीबीआई को निष्पक्ष जांच के लिए सौंप दिया गया था। यही नहीं वर्ष 2006 में जब पीडीपी-कांग्रेस गठबंधन चला रही थी और नेशनल कॉन्फ्रेंस विपक्ष में थी, तो नेकां ने जबरदस्ती से कश्मीर सेक्स स्कैंडल को सीबीआई को सौंपने की मांग की थी।

पीडीपी-कांग्रेस सरकार ने मामले को सीबीआई को सौंप दिया था जिसमें शीर्ष नौकरशाह, राजनेता, अधिवक्ता, सुरक्षा अधिकारी आदि शामिल थे। यहां पीडीपी और नेकां से लोग जानना चाहते हैं कि यदि उनके फैसले की मांग और क्रमशः निलोफर व आसिया की हत्याओं की जांच सीबीआई जांच और कश्मीर सेक्स स्कैंडल को उचित ठहराया गया, तो रसाना की घटना की सीबीआई से जांच की मांग को अनुचित कैसे किया जा सकता है? ‘क्या यह पीडीपी और नेकां के दोहरे मानक नहीं है? अगर सीबीआई जांच उनके लिए उपयुक्त है, तो क्या वे इसे मांग कर कोई गलती कर रहे है?

दरअसल जिस क्षेत्र की घटना की जांच की मांग हो रही है वहां दोनों ही दलों का कोई राजनीतिक आधार नहीं है और वहां भाजपा के मजबूत आधार को दोनों ही दल खिसकाना चाहते हैं। जम्मू के लोगों के लिए हैरानगी की सबसे बड़ी बात यह है कि भाजपा ने कैसे पीडीपी के आगे झुकना स्वीकार करते हुए अपने उन दो मंत्रियों से इस्तीफे दिलवा दिए जो उसी क्षेत्र से थे और वे भी लगातार सीबीआई जांच की मांग कर रहे थे। इतना जरूर था कि भाजपा के इस झुकाव पर जम्मू की जनता ही भाजपा के खिलाफ हो चली है।

लोगों में गुस्सा किस कद्र है इसी से अनुमान लगाया जा सकता था कि इन जिलों की जनता भाजपा को आगामी लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों में सबक सिखाने की धमकी दे रही है। राज्य में अतीत में ऐसे बहुत से मामले हैं जिनमें सीबीआई जांच के आदेश दिए गए थे और सीबीआई ने अपराधियों को सामने लाया था। यह आदेश तब आए थे जब खुद राजनीतिक दलों ने राज्य पुलिस तथा अपराध शाखा पर अविश्वास प्रकट करते हुए ऐसी जांच करवाने के लिए आंदोलन तक कर डाले थे।

तो जम्मू संभाग की जनता के लिए हैरानगी वाली बात यह है कि आखिर पीडीपी सरकार को ऐसा क्या दिख रहा है जो उसे मामले की सीबीआई जांच करवाने से रोक रहा है। अगर मामले पर एक नजर दौड़ाएं तो पुलिस तथा अपराध शाखा की जांच में कई झोल हैं। जानकारों का मानना था कि अगर राज्य सरकार अपराध शाखा की रिपोर्ट पर ही केस को कोर्ट में आगे बढ़ाती है तो असल अपराधी कभी भी पकड़ में नहीं आएंगे और जिन पर मुकद्दमा चल रहा है, वे आसानी से छूट जाएंगे।
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