दुनिया की तीसरी सबसे शक्तिशाली वायु सेना का देश भारत एक नई सैन्य महाशक्ति के रूप में उभर रहा है और एशिया की भू-राजनीतिक संरचना को चुनौती दे रहा है। ऐसा पश्चिमी जगत की वे जानीमानी पत्र-पत्रिकाएं कहने लगी हैं, जो कभी भारत के लिए ''एशिया का बीमार हाथी'' जैसे मुहावरे गढ़ा करती थीं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ये पत्र-पत्रिकाएं हिंदू राष्ट्रवादी, अधिनायकवादी, घोर दक्षिणपंथी या फ़ासीवादी (हिटलर की तरह फ़ासिस्ट) तक घोषित कर दिया करती थीं, और गाहे-बगाहे अब भी करती हैं। पर अब, कई बार उन्हें अपनी घिसी-पिटी लीक से हट कर कुछ सच्चाइयां स्वीकार भी करनी पड़ती हैं। उदाहरण के लिए, पश्चिमी मीडिया को भारत की गुटनिरपेक्षता को रूस के प्रति निकटता और यूरोप-अमेरिका से दूरी बनाए रखने की नीति के तौर पर देखने की आदत-सी बन गई थी। लेकिन अब, कई बार स्वीकार किया जाता है कि "रणनीतिक स्वायत्तता" के रूप में भारत की गुटनिरपेक्षता देश की स्थापना के समय से ही एक जीवंत परंपरा रही है।
चुपचाप एक नई महाशक्तिः गाहे-बगाहे, यह भी लिखा जाने लगा है कि अब तक भारत ने खुद को किसी भी मौजूदा शक्ति-समूह में शामिल न करने और अपने भू-राजनीतिक संबंधों को सावधानीपूर्वक संतुलित करने का प्रयास किया है। उच्च-स्तरीय राजनीतिक मंचों से परे, भारत आधुनिकीकरण के अपने प्रयासों को गति देने और चुपचाप एक नई महाशक्ति के रूप में विकसित होने पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रहा है। इसी प्रकार, भारत की सैन्य शक्ति एक नए आत्मविश्वास की अभिव्यक्ति बनती जा रही है।
ये नये स्वर अमेरिकी पत्रिका 'न्यूज़वीक', (जर्मनी, ऑस्ट्रिया और स्विट्ज़र से प्रकाशित होने वाले) यूरोपीय दैनिक 'नोए त्स्युरिशर त्साइटुंग' (NZZ), फ्रांसीसी मासिक पत्रिका 'ले मोंद दिप्लोमातीक', ब्रिटिश पत्रिका 'द यूरोपियन' और सैन्य विषयोँ की त्रैमासिक फ्रांसीसी पत्रीका 'मेटा डिफ़ेंस' में देखने में आए हैं।
चीन को भी पछाड़ने में सफलः इन पत्र-पत्रिकाओं में इन दिनों भारत से संबंधित समाचारों, रिपोर्टों और विश्लेषणों में जो बातें कही गई हैं, उनका निचोड़ यही है कि भारत कुछेक मामलों में चीन को भी पछाड़ने में सफल रहा है। आधुनिक सैन्य विमानों की विश्व निर्देशिका द्वारा हाल ही में जारी की गई रैंकिंग के अनुसार, भारत के पास अब अमेरिका और रूस के बाद दुनिया की तीसरी सबसे शक्तिशाली वायु सेना है। भारत का यह सैन्य उत्थान एशिया में भू-राजनीतिक संतुलन के एक दूरगामी पुनर्गठन का प्रतिनिधित्व करता है। यह बार-बार देखने में आया है कि किसी देश की सैन्य रणनीति के लिए एक शक्तिशाली वायु सेना कितनी महत्वपूर्ण होती है।
अमेरिकी 'न्यूज़वीक' पत्रिका ने आधुनिक सैन्य विमानों की विश्व निर्देशिका के आधार पर बताया है कि भारत के पास अपनी वायु सेना का एक बहुत ही संतुलित संयोजन है: 31.6 प्रतिशत लड़ाकू विमान, 29 प्रतिशत हेलीकॉप्टर और 21.8 प्रतिशत प्रशिक्षण विमान। भारत के पास कुल 1,716 हवाई इकाइयां हैं। न्यूज़वीक के अनुसार भारत ने 69.4 की ट्रूवैल रेटिंग (TruVal Rating /TVR) हासिल की है। चीन, भारत से पीछे है। उसकी TVR रेटिंग 58.1 है, भले ही उसके पास भारत से अधिक लड़ाकू विमान हैं।
यह रैंकिंग दुनियाभर में विभिन्न वायु सेनाओं की कुल लड़ाकू क्षमता से संबंधित गणनाओं पर आधारित एक सूचकांक है। किसी वायु सेना की ताक़त का मूल्यांकन न केवल उसके स्वामित्व वाले देश के विमानों की संख्या के आधार पर होता है, बल्कि उसके बेड़े की समग्र गुणवत्ता और विविधता के आधार पर होता है। इसीलिए अमेरिकी और रूसी सशस्त्र बलों की रेटिंग अभी भी भारत या चीन से काफी बेहतर है।
''ऑपरेशन सिंदूर'' का असरः भारत के संदर्भ में ''ऑपरेशन सिंदूर'' को इस बात का एक उदाहरण माना जा रहा है कि भारतीय वायु सेना अब कितनी प्रभावशाली हो गई है। पश्चिमी सैन्य प्रेक्षकों ने नोट किया कि मई, 2025 के ''ऑपरेशन सिंदूर'' के समय, भारतीय विमानों ने पाकिस्तान के भीतर और उसके के कब्जे वाले कश्मीर में बुनियादी ढांचों पर कई सटीक हमले किए। इस ऑपरेशन के साथ, भारत ने आसन्न ख़तरों का तेज़ी से मुकाबला करने की अपनी वायु सेना की क्षमता का प्रभावशाली प्रदर्शन किया। इसके अलावा, भारतीय सैन्य अभियान में बेहतर सटीकता, समन्वय और रणनीतिक पहुंच स्पष्ट रूप से दिखाई दी, जो इस क्षेत्र में बढ़ती उसकी हवाई श्रेष्ठता का संकेत देती है।
सिर्फ़ सैन्य शक्ति ही स्वतंत्रता की गारंटी नहीं है –– सैन्य अभियान अपने लक्ष्यों तक पहुंचने की कमज़ोरियों को भी उजागर करते हैं। सितंबर के अंत में बताया गया कि भारत के अब तक के सबसे बड़े रक्षा अनुबंध में विविध भूमिका वाले कुल 180 लड़ाकू विमान शामिल हैं। ये सभी घरेलू विकास रहे हैं। अतः भारत अब अंतरराष्ट्रीय ख़रीद और अपने मौजूदा हवाई बेड़े के आधुनिकीकरण पर भी ध्यान केंद्रित कर रहा है। सच्चाई यह भी है कि भारतीय वायुसेना आधुनिकीकरण के अब तक लंबित रहे कई कार्यों से जूझ रही है। घरेलू संसाधन आवश्यक संख्या में युद्धक विमानों का उत्पादन नहीं कर पा रहे हैं।
ऑपरेशन सिंदूर एक रणनीतिक झटका भीः फांसीसी पत्रिका 'मेटा डिफेंस' ने सितंबर के अंत में लिखा कि ऑररेशन सिंदूर भारत के लिए न केवल एक बड़ी सफलता था, बल्कि एक रणनीतिक झटका भी था। इस ऑपरेशन ने पाकिस्तान और चीन की तुलना में भारतीय वायुसेना की कुछ कमज़ोरियों को उजागर भी किया। इस युद्ध के बाद, भारतीय वायु सेना के लिए 42 एयर स्क्वैड्रन के मानक-बेड़े पर सवाल उठाए गए–– और बाद में यह संख्या बढ़ा कर 56 करदी गई। एक स्क्वैड्रन में 18 से 24 विमान होते हैं। 56 स्क्वैड्रन वाले इस नए लक्ष्य की पूर्ति के लिए लगभग 400 विमानों की कमी पूरी करनी होगी।
''ब्रिक्स'' के संस्थापक सदस्य के रूप में भारत वास्तव में ब्राज़ील, रूस, चीन और दक्षिण अफ्रीका के साथ एक ऐसे समूह का प्रमुख अंग है, जो अब विश्व की लगभग 45 प्रतिशत जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करता है। साथ ही, भारत 'क्वाड' समूह का भी हिस्सा है, जिसमें जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका शामिल हैं। फ्रांसीसी पत्रिका 'ले मोंद दिप्लोमातीक' के अनुसार इन प्रतिस्पर्धी समूहों में भारत की सदस्यता स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि वह मुख्यतः अपने राष्ट्रीय हितों का ही पालन कर रहा है।
'क्वाड' को अक्सर एशिया में चीन के बढ़ते प्रभाव की रोकथाम की प्रतिक्रिया के रूप में देखा जाता है। इस प्रकार, 'क्वाड' और 'ब्रिक्स' में भारत की समानांतर भागीदारी–– 'ले मोंद दिप्लोमातीक' के अनुसार–– हिंद-प्रशांत क्षेत्र में उसकी रणनीतिक स्वायत्तता और स्वतंत्र स्थिति को ही रेखांकित करती है। यह सूझ वाशिंगटन और बीजिंग के बीच नई दिल्ली की एक तीसरे ध्रुव की खोज के समान है।
भारत का भविष्य: एक उभरती महाशक्तिः स्थिर या घटती जनसंख्या से जूझ रहे कई अन्य देशों की तुलना में भारत, अपने युवा और सक्षम लोगों के बड़े अनुपात का उपयोग अपने विकास को गति प्रदान करने के लिए कर रहा है। भारत के पास 14.5 लाख सक्रिय सैनिकों की सैन्य शक्ति है। इसके अलावा, भारत के परमाणु हथियार देश को महाशक्ति बनाने की महत्वाकांक्षाओं को रेखांकित करते हैं। हालांकि, 'द यूरोपियन' का मानना है कि भारत को महाशक्ति बनने के लिए गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
'द यूरोपियन' की दृष्टि से भारत में गरीबी और असमानता अब भी व्याप्त है। ''बढ़ते अधिनायकवादी माहौल में लोकतांत्रिक सिद्धांतों की परीक्षा लगातार हो रही है।'' भारत तब भी ''एक वैश्विक शक्ति-केंद्र बनने की राह पर अग्रसर है।'' एक उभरती महाशक्ति के रूप में अपनी वायु सेना की बदौलत अब एशिया में चीन को भी पीछे छोड़ रहे भारत की स्थिति, वैश्विक शक्ति संतुलन पर अनिवार्य रूप से गंभीर प्रभाव डाल रही है। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिए चुनौती यह है कि ''भारत न तो पश्चिमी है और न ही पश्चिम-विरोधी।''
फ्रांस के 'ले मोंद दिप्लोमातीक' के अनुसार रूस के साथ घटती नज़दीकी और चीन के साथ सतर्कतापूर्ण मेल-मिलाप के बावजूद, संभावना इसी बात की अधिक है कि ''भारत विभिन्न गुटों के बीच संतुलन बनाए रखेगा। पश्चिम के साथ ऐतिहासिक संबंध इतने घनिष्ठ हैं कि ट्रंप का रुख़ भी उन्हें तोड़ने का सामर्थ्य नहीं रखता। भारत पश्चिमी उपनिवेशवाद के ख़िलाफ़ संघर्ष से उभरा है और उपनिवेश-विरोधी प्रतिरोध की भावना ही भारत के लिए दिशासूचक बनी हुई है–– यहां तक कि एक ऐसी दुनिया में भी, जिसका पुनर्मूल्यांकन किया जा रहा है।''
अब तक, अन्यथा भारत की प्रायः निंदा-आलोचना करने में ही निपुण, इन यूरोपीय-अमेरिकी पत्र-पत्रिकाओं द्वारा भारत की यह दुर्लभ सराहना यही दिखाती है कि सत्य की अभिव्यक्ति होकर ही रहती है। भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विचारधार से कोई सहमत हो या असहमत, देश को अग्रगामी बनाने वाले उनके कार्यों को झुठलाना, अपने आप को धोखा देने के समान है। झुठलाएं वे लोग, जो देश को उनसे भी कुछ बेहतर दे पाये हों या बेहतर दे पाने का प्रामणिक, न कि केवल शाब्दिक सामर्थ्य रखते हों।
Edited By: Navin Rangiyal