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Last Updated :नई दिल्ली , शुक्रवार, 29 दिसंबर 2023 (19:09 IST)

उल्फा का केन्द्र और असम से ऐतिहासिक शांति समझौता, कैसे हुआ ULFA का गठन

Ulfa
Peace agreement with ULFA: यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (ULFA) के वार्ता समर्थक गुट ने हिंसा छोड़ने और मुख्यधारा में शामिल होने पर सहमति व्यक्त करते हुए शुक्रवार को केंद्र और असम सरकार के साथ शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए। असम को स्वायत्त और संप्रभु राज्य बनाने के उद्देश्य से इस सशस्त्र उग्रवादी समूह का गठन हुआ था। 
 
अधिकारियों ने बताया कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा की उपस्थिति में समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। उन्होंने बताया कि अरबिंद राजखोवा के नेतृत्व वाले उल्फा गुट और सरकार के बीच 12 साल तक बिना शर्त हुई वार्ता के बाद इस समझौते पर हस्ताक्षर किए गए।

असम के लिए बड़ा दिन : गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि असम लंबे समय तक उल्फा की हिंसा से त्रस्त रहा, वर्ष 1979 से अब तक करीब 10,000 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। असम के लोगों के लिए बहुत बड़ा दिन, उल्फा ने सरकार के साथ शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए। उन्होंने कहा कि उल्फा के साथ समझौते के तहत असम को बड़ा विकास पैकेज दिया जाएगा।
 
2011 से नहीं उठाए हथियार : इस शांति समझौते से असम में दशकों पुराने उग्रवाद के खत्म होने की उम्मीद है। जानकारी के मुताबिक अरविन्द गुट के 20 नेता करीब एक सप्ताह से दिल्ली में ही मौजूद थे। इस समझौते को केन्द्र सरकार की बड़ी उपलब्धि माना जा रहा है। हालांकि राजखोवा गुट ने 2011 से ही हथियार नहीं उठाए हैं।  
 
परेश बरुआ की अध्यक्षता वाला उल्फा का कट्टरपंथी गुट हालांकि इस समझौते का हिस्सा नहीं है। ऐसा माना जाता है कि बरुआ चीन-म्यांमा सीमा के निकट एक स्थान पर रहता है। राजखोवा गुट 3 सितंबर, 2011 को सरकार के साथ शांति वार्ता में उस समय शामिल हुआ था, जब इसके और केंद्र तथा राज्य सरकारों के बीच इसकी गतिविधियों को रोकने को लेकर समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे।
 
कैसे बना उल्फा? : उल्फा का गठन 7 अप्रैल 1979 में ‘संप्रभु असम’ की मांग को लेकर किया गया था। परेश बरुआ ने अरविन्द राजखोवा और अनूप चेतिया के साथ मिलकर इस संगठन को बनाया था। तब से, यह विध्वंसक गतिविधियों में शामिल रहा है, जिसके कारण केंद्र सरकार ने 1990 में इसे प्रतिबंधित संगठन घोषित कर दिया था।
 
1991 में इस संगठन के करीब 9000 लोगों ने आत्मसर्मपण किया था। वर्ष 2008 में राजखोवा को भी गिरफ्तार कर लिया गया था। राजखोवा ने जब शांति समझौते की ओर कदम बढ़ाया था, तब यह समूह 2 हिस्सों में बंट गया। परेश बरुआ का समूह इस समझौते का हिस्सा नहीं है।  (एजेंसी/वेबदुनिया) 
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