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Written By Author विकास सिंह
Last Updated : शुक्रवार, 31 जनवरी 2020 (21:18 IST)

ग्राउंड रिपोर्ट : इक़बाल मैदान बना भोपाल का शाहीनबाग

मेधा पाटकर ने NRC को नया नाम दिया- 'नेशनल रेजिस्टेंस अगेंस्ट कम्युनलिज्म

ग्राउंड रिपोर्ट :  इक़बाल मैदान बना भोपाल का शाहीनबाग - Ground report :  Iqbal maidan as a Bhopal Shaheeen Bagh
नागरिकता कानून के खिलाफ देश भर में आंदोलन चल रहा है। भोपाल के मोती मस्जिद इलाके में भी 50 दिन से एक आंदोलन जारी है। वेबदुनिया आंदोलन एक महीने पूरे होने पर इकबाल मैदान में सीएए के खिलाफ चल रहे सत्याग्रह को कवर किया।  वरिष्ठ पत्रकार डॉ. विष्णु राजगढ़िया जिन्होंने इस सत्याग्रह को करीब से देखा है। वह इसे शांतिपूर्ण और रचनात्मक आंदोलन की अनोखी मिसाल मानते हैं।
 
महात्मा गांधी की पुण्यतिथि पर इकबाल मैदान में आयोजित विशाल जनसभा के मंच के नीचे एक आम दर्शक के बतौर वरिष्ठ पत्रकार डॉ विष्णु राजगढ़िया अपनी नोटबुक में कुछ टिप्पणियां दर्ज कर रहे थे। पूछे जाने पर वह कहते हैं- 'भोपाल में भी एक शाहीनबाग है। आज इस सत्याग्रह का एक माह पूरा हुआ। यह ऐसा रचनात्मक और शांतिपूर्ण है कि अब तक न तो कोई विवाद हुआ, न किसी को परेशानी।'
 
डॉ राजगढ़िया के अनुसार शाहीनबाग और इकबाल मैदान का एक बड़ा फर्क यह है कि भोपाल के इस सत्याग्रह में शामिल लोगों की दिनचर्या जरूर प्रभावित हुई है, लेकिन आम नागरिकों को कोई कष्ट नहीं होने दिया गया है। शायद यही वजह है कि इकबाल मैदान की स्वीकार्यता ज्यादा है। 
 
वेबदुनिया प्रतिनिधि ने जब आंदोलन स्थल को देखा तो पाया कि शाहीनबाग की तरह यहां भी मुस्लिम महिलाओं की बहुतायत है। लेकिन खास बात यह कि सभी धर्म, आयुवर्ग के लोगों और बुद्धिजीवियों की बड़ी संख्या हर दिन इस सत्याग्रह में शामिल है। पुराने भोपाल की मोती मस्जिद के समीप इकबाल मैदान में स्थायी तंबू लगा है, जहां सीएए ही नहीं बल्कि साहित्य, शिक्षा और पत्रकारिता पर भी चर्चा होती है।
 
दस दिसंबर को नागरिकता संशोधन विधेयक की प्रतियां जलाकर भोपाल में इस लड़ाई का आगाज़ किया था।पहली जनवरी से सत्याग्रह शुरू हुआ। 30 जनवरी को इस सत्याग्रह का एक माह पूरा हुआ। बापू की पुण्यतिथि पर विशाल जनसभा ने यह स्पष्ट कर दिया कि यह अभियान अभी थमने वाला नहीं है।

खास बात यह है कि इस सभा में चर्चित सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर ने नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ अनवरत आंदोलन के विभिन्न चरणों की घोषणा की। एक अप्रैल से अनिश्चितकालीन सत्याग्रह का भी ऐलान किया। उन्होंने एनआरसी को नया नाम दिया- 'नेशनल रेजिस्टेंस अगेंस्ट कम्युनलिज्म।' साथ ही, उन्होंने इसे करप्शन के खिलाफ राष्ट्रीय प्रतिरोध की भी संज्ञा दी।
 
30 जनवरी को बापू की पुण्यतिथि पर मध्यप्रदेश की कोऑर्डिनेशन कमेटी अगेंस्ट सीएए ने इकबाल मैदान में इस बड़ी जनसभा का संयोजन किया। 'गांधी तेरे देश में : नागरिकता पर सवाल क्यों?' विषय पर देश की कई बड़ी हस्तियों ने विचार रखे। मेधा पाटकर के अलावा चर्चित पत्रकार आरिफा खानुम शेरवानी और जेएनयू छात्र संघ अध्यक्ष आइशी घोष ने भी संबोधित किया।
 
आइशी ने कहा कि भोपाल से जो चिंगारी जलाई है उसे जेएनयू ले जाने आई हूं। हम लांग मार्च के जरिये इस देश के शासक को झुकने को तैयार हैं। रोहित वेमुला को उसके जन्मदिन पर याद करते हुए आइशी ने कहा कि आजादी से पहले भी कुछ लोग अंग्रेजों की चाटुकारिता कर रहे थे। लेकिन भगत सिंह जैसे लोग भी थे, जो कहते थे कि हम चाटुकारिता नहीं करेंगे। 

आइशी ने कहा कि जब भी देश में कोई चुनाव आता है, जेएनयू को दुश्मन बताया जाता है। हम लड़ेंगे भी, पढ़ेंगे भी। इस काले कानून सीएए को हम जरूर रोकेंगे। हम इस सरकार को झुकायेंगे। यह लड़ाई चुनाव की नहीं बल्कि वजूद की लड़ाई है।

वरिष्ठ पत्रकार आरिफा खानुम शेरवानी ने कहा कि आतंकवादी की परिभाषा में जामिया के छात्र पर गोली चलाने वाला शख्स भी है। वह टैरेरिस्ट के साथ सुसाइड बम्बर भी था। यह राजनीति एक तबके खिलाफ नफरत कर रही है। ये पूरी नस्ल को हिंसक बना रही है। एक मंत्री कहते हैं कि गोली मारो, अमित शाह बटन जोर से दबाने की बात करते हैं। लोग कहते हैं ये अंधेरा वक़्त है, लेकिन ये उजाले का वक़्त है। जब कश्मीर के साथ शाहीन बाग आवाज बनता है तो वो गांधी की सोच को जिंदा करता है। 
 
उन्होंने कहा कि आज दो सोच लगातार एक दूसरे से लड़ रही हैं। ये गोडसे और गांधी की सोच है। सवाल ये है कि हम गांधी की सोच को जिंदा रख पाएंगे।
 
नागरिकता कानून को लेकर ऐसी बेचैनी क्यों है, इसे समझना हो तो जनसभा में कुछ छात्राओं के भावुक संबोधनों पर गौर करें। बच्चों के बीच कार्यरत पूनम पूछती है- एनआरसी लागू हुआ तो उन बच्चों का क्या होगा, जिनके पांवों में आज भी चप्पल नहीं है और जिन्हें पेट भर भोजन नहीं मिलता। माँ पिताजी डिटेंशन सेंटर में रहेंगे, तो इन बच्चों का क्या होगा? कहाँ गया बेटी बचाओ का नारा?
 
सारा हयात खान कहती है- मुझे दसवीं की परीक्षा की तैयारी करनी है, कल एक कंपीटिशन में जाना है, लेकिन आज यहां खड़ी हूँ, क्योंकि मुझे मालूम है कि डिटेंशन सेंटर में मेरा मार्क्सशीट कोई काम नहीं आएगा।
 
जाहिर है, नागरिकता कानून को लेकर सत्ता पक्ष के आक्रामक बयानों ने असुरक्षा का माहौल बनाया है जिसका हल किसी सार्थक संवाद से ही निकल सकता है। भले ही फिलहाल केंद्र सरकार इस असुरक्षा बोध को बढ़ाकर साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण के रास्ते पर ही बढ़ रही हो।
 
कार्यक्रम में प्रसिद्ध शिक्षाविद डॉ अनिल सदगोपाल, रिफाई साहब, आर्चबिशप लियो कार्डियोलीनो, कुमार अम्बुज और संध्या शैली की मौजूदगी इस सत्याग्रह की व्यापकता का अहसास करा रही थी। जनसभा में विजय कुमार, जाकिर रियाज़, चंदा, कपिल शर्मा, नेहा, आशा मिश्रा, सत्यम पांडेय, माधुरी, नीना शर्मा, यीशु, प्रह्लाद बैरागी, योगेश, जावेद बैग, आबिद, सबा इत्यादि के वक्तव्यों से पता चल रहा था कि नागरिकता कानून लाते हुए केंद्र सरकार ने समाज के व्यापक हितों की अनदेखी की है।
 
युवा पत्रकार सह सामाजिक कार्यकर्ता सचिन श्रीवास्तव जैसे दर्जनों लोग हैं, जो इस सत्याग्रह में अनवरत योगदान करते हुए विविधता प्रदान कर रहे हैं। यही इकबाल मैदान सत्याग्रह की सफलता का रहस्य भी है।