Explainer : दिल्ली पर नए बिल में क्या है खास, क्यों मचा है बवाल...
नई दिल्ली। दिल्ली के उपराज्यपाल की शक्तियों को परिभाषित करने वाले विधेयक का भाजपा ने स्वागत किया
नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने दिल्ली में एलजी की शक्तियों को बढ़ाने वाला बिल सोमवार को लोकसभा में पेश किया। जानिए क्यों मचा है इस बिल पर बवाल...
क्या है राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र संशोधन विधेयक, 2021: बिल के अनुसार, दिल्ली में सरकार का मतलब 'एलजी' होगा। विधानसभा से पारित किसी भी विधेयक को मंजूरी देने की ताकत उसी के पास होगी। दिल्ली सरकार को शहर से जुड़ा कोई भी निर्णय लेने से पहले उपराज्यपाल से सलाह लेनी होगी। दिल्ली सरकार अपनी ओर से कोई कानून खुद नहीं बना सकेगी। विधेयक विधान मंडल और कार्यपालिका के बीच सौहार्दपूर्ण संबंधों का बढ़ाएगा।
क्या था सुप्रीम कोर्ट का फैसला : दिल्ली में एलजी और राज्य सरकार के बीच शक्तियों को लेकर मामला सुप्रीम कोर्ट तक जा चुका है। सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीछ ने 4 जुलाई 2018 को फैसला सुनाया था कि सरकार के दैनिक कामकाज में राज्यपाल दखल नहीं दे सकता। इस फैसले के बाद लगा था कि मामला सुलझ गया है। बहरहाल अब इस विधेयक के संसद में आने के बाद मामला और गर्मा गया है।
केजरीवाल सरकार क्यों है नाराज : दिल्ली में उपराज्यपाल की शक्तियों को बढ़ाने से संबंधित विधेयक से मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनकी सरकार बेहद नाराज है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का आरोप है कि भाजपा लोकसभा में एक नया विधेयक लाकर उनकी चुनी हुई सरकार की शक्तियों को बहुत कम करना चाहती है। सीएम ने स्पष्ट कहा कि यह विधेयक संविधान पीठ के फैसले के विपरीत है।
मनीष सिसोदिया ने बताया खतरनाक : दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने विधेयक की आलोचना करते हुए कहा कि उपराज्यपाल की कुछ भूमिका और शक्तियों को परिभाषित करने वाला केंद्र सरकार का विधेयक संवैधानिक रूप से खतरनाक है। उन्होंने साथ में भाजपा पर पिछले दरवाजे से राष्ट्रीय राजधानी पर शासन करने की कोशिश का आरोप लगाया।
क्या बोलीं भाजपा : दिल्ली भाजपा अध्यक्ष आदेश गुप्ता ने लोकसभा में सोमवार को पेश किए गए दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र शासन संशोधन विधेयक 2021 का स्वागत किया जिसमें दिल्ली के उपराज्यपाल की कुछ भूमिका और अधिकारों को परिभाषित करने का प्रस्ताव किया गया है। इसका विरोध करने वाली आम आदमी पार्टी की उन्होंने निंदा की।
गुप्ता ने कहा कि विधेयक के पारित होने के बाद भी चुनी गई सरकार के पास 75 फीसदी प्रशासनिक शक्तियां होंगी। यह विधेयक उच्चतम न्यायालय के फरवरी 2019 के आदेश के अनुरूप है।