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Written By सुरेश एस डुग्गर
Last Updated : बुधवार, 24 मई 2023 (16:57 IST)

कश्मीर में G-20 का समापन आज, 60 प्रतिनिधियों की सुरक्षा पर 50 करोड़ रुपए से अधिक का खर्चा, क्या मकसद में मिलेगी कामयाबी?

कश्मीर में G-20 का समापन आज, 60 प्रतिनिधियों की सुरक्षा पर 50 करोड़ रुपए से अधिक का खर्चा, क्या मकसद में मिलेगी कामयाबी? - G20 meeting in Kashmir
जम्मू। G-20 की कश्मीर में संपन्न हुई 3 दिवसीय बैठक के परिणाम कब तक आएंगें, यह तो आने वाला समय ही बता पाएगा पर इतना जरूर है कि भारत सरकार विश्वभर को यह संदेश देने में कामयाब रही है कि कश्मीर टूरिस्टों के लिए आज सबसे अधिक सुरक्षित होने के साथ ही फिल्मों की शूटिंगों के लिए बॉलीवुड के मुकाबले में 19 नहीं 20 है।
 
3  दिवसीय जी-20 की बैठक का आज आखिरी दिन था। जी-20 के तहत आने वाले देशों के 60 से अधिक प्रतिनिधियों को कश्मीर की खूबसूरती और हुनर के दीदार करवाने में हालांकि 50 करोड़ से अधिक की राशि खर्च की गई है जिसमें सुरक्षा के मद पर होने वाला खर्चा शामिल नहीं किया गया है।
 
एक अधिकारी के बकौल, अगर सिर्फ जी-20 के देश ही अपने नागरिकों को कश्मीर आने के लिए प्रेरित और उत्साहित करते हैं तो यह जी-20 की कश्मीर में होने वाली बैठक की कामयाबी माना जाएगा।

जानकारी के लिए कश्मीर में फैले आतंकवाद के कारण आज भी यूरोपीय व अमेरीकी देशों ने अपने नागरिकों के कश्मीर आने पर प्रतिबंध लागू कर रखा है और तत्कालीन सरकारों से लेकर केंद्र शासित प्रदेश के प्रशासकों तक के अथक प्रयास अभी तक कोई परिणाम नहीं दिखा पाए हैं।
यही कारण था कि अब सबकी उम्मीदें जी-20 की बैठक के नतीजों पर थीं। इस उम्मीद को बैठक में तीन दिनों तक शिरकत करने वाले विदेशी प्रतिनिधियों द्वारा कश्मीर की खूबसूरती की तारीफ में बोले गए बोल उत्साह तो जरूर बढ़ाते थे पर इसकी फसल तभी काटी जा सकेगी जब इन देशों से आने वाले टूरिस्टों की संख्या में बढ़ोतरी होगी।
 
हालांकि जम्मू- कश्मीर में पिछले साल 1.84 करोड़ पर्यटक आए थे, इनमें वैष्णो देवी की यात्रा पर आने वाले 92.5 लाख श्रद्धालु भी शामिल हैं, लेकिन इनमें विदेशी पर्यटकों का योगदान ऊंट के मुंह में जीरे के समान ही था।

पर्यटन व्यवसाय से जुड़े लोगों का मानना था कि खर्च के मुकाबले में देशी पर्यटक विदेशी पर्यटकों के आगे फिसड्डी हैं। यही कारण है कि अर्थव्यवस्था व विश्व समुदाय को कश्मीर में शांति के लौट आने के संदेश देने के लिए विदेशी पर्यटकों को कश्मीर की ओर खींचने की खातिर जी-20 की बैठक आयोजित की गई।
 
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वांगचुक फिर हड़ताल की राह पर : रेमन मैग्सेसे अवॉर्ड से सम्मानित सोनम वांगचुक एक बार फिर लद्दाख की जनता को अधिकार दिलवाने की खातिर आंदोलन की राह पर हैं। 4 महीने पहले उन्होंने बर्फ में शून्य से नीचे 20 डिग्री के तापमान में 5 दिनों की भूख हड़ताल की थी तो अब 26 मई से शुरू हो रही उनकी 10 दिन की भूख हड़ताल को करगिल व लेह के सभी दलों ने अपना समर्थन देकर केंद्र सरकार की राह मुश्किल कर दी है।

हालांकि लद्दाख के आंदोलनरत नेता कह रहे हैं कि वे अपने अधिकारों की खातिर किसी से भी बात करने को तैयार हैं पर केंद्र सरकार की अनदेखी और कथित उपनिवेशवाद की रणनीति बर्फीले रेगिस्तान में आग के शोले भड़का रही है।
 
दरअसल जो केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा 30 सालों के आंदोलन के बाद बर्फीले रगिस्तान लद्दाख के लोगों ने 5 अगस्त 2019 को पाया था वह उन्हें रास नहीं आया है।

यही कारण था कि लद्दाख - जिसमें लेह और करगिल जिले शामिल हैं- प्रदेश को पुनः राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर हड़ताल और महा रैली का आयोजन भी कर चुका है। इन सबका उद्देश्य वे 4 सूत्रीय मांगें हैं जिनसे लद्दाखी कई बार केंद्र सरकार को अवगत करवा चुके हैं।
 
यही नहीं, लेह की सर्वोच्च संस्था लद्दाख बुद्धिस्ट एसोसिएशन के नेता और वरिष्ठ उपाध्यक्ष चेरिंग दोरजे कह चुके हैं कि कश्मीर का हिस्सा होना लद्दाख के लोगों के लिए बेहतर था। थोड़े दिन पहले उन्होंने कहा था कि वे केंद्र शासित प्रदेश प्रशासन की तुलना में जम्मू और कश्मीर के पूर्ववर्ती राज्य में बेहतर थे।
 
लद्दाख अपने अधिकारों का संरक्षण चाहता है। वे विशेषाधिकार तथा पर्यावरण सुरक्षा चाहते हैं। इसके लिए थ्री इड्यिटस से प्रसिद्ध हुए सोनम वांगचुक इस साल जनवरी में 5  दिनों तक बर्फ के ऊपर माइन्स 20 डिग्री तापमान में क्लाइमेट फास्ट भी कर चुके हैं। उनके साथ प्रशासन द्वारा किए गए कथित व्यवहार के कारण लद्दाख की जनता का गुस्सा और भड़का था।
 
लेह जिले के आलची के पास उलेयतोकपो में जन्मे 56 वर्षीय वांगचुक सामुदायिक शिक्षा के अपने माडल के लिए दुनियाभर में जाने जाते हैं। रेमन मैग्सेसे अवार्ड पा चुके वांगचुक लद्दाख क्षेत्र को विशेष अधिकारों और पर्यावरणीय सुरक्षा की मांग के लिए संघर्ष कर रहे हैं। वे चाहते हैं कि हिमालयी क्षेत्र को बचाने के लिए लद्दाख को विशेष दर्जे की जरूरत है।
 
भारतीय संविधान की छठी अनुसूची के तहत जातीय और जनजातीय क्षेत्रों में स्वायत्त जिला परिषदों और क्षेत्रीय परिषदों के अपने-अपने क्षेत्रों के लिए कानून बनाने का अधिकार दिया गया है। फिलहाल भारत के चार राज्य मेघालय असम, मिजोरम और त्रिपुरा के 10 जिले इस अनुसूची का हिस्सा हैं।

लद्दाख की जनता और वांगचुक की मांग है कि लद्दाख को भी इस अनुसूची के तहत विशेषाधिकार दिए जाएं। 5 दिन के उपवास के दौरान वांगचुक की मांगों को भारी समर्थन मिला था। भारतीय जनता पार्टी को छोड़कर बाकी सभी दलों ने उनकी मांगों का समर्थन किया है। 
 
वांगचुक का कहना है कि पहले यह 10 दिवसीय भूख हड़ताल 26 अप्रैल से आरंभ की जानी थी पर वाई-20 के लद्दाख में आयोजित किए जाने के कारण उन्होंने इसे एक माह के लिए आगे खिसका दिया था। उन्होंने इस संबंध में कई वीडियो भी जारी किए हैं जिनमें लद्दाख की जनता के अधिकारों की मांग को जोरदार तरीके से उठाया गया है।

किश्तवाड़ में सड़क हादसे में 6 की मौत  : जम्मू संभाग के किश्तवाड़ जिले में पकल डूल हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट के डैम के पास हुए एक सड़क हादसे में 6 लोगों की मौत हो गई। किश्तवाड़ के एसएसपी खलील पोसवाल ने बताया कि किश्तवाड़ जिले के डंगदुरू इलाके में इस हादसे में 6 लोगों की घटनास्थल पर ही मौत हो गई तथा तीन गंभीर रूप से उस समय जख्मी हो गए जब उनको ले जाने वाला क्रूजर वाहन गहरी खाई में गिर गया।
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