मध्यप्रदेश में किसान आंदोलन उग्र हो गया है। एक तरफ प्रदेश सरकार का दावा है कि किसान आंदोलन खत्म हो चुका है, वहीं दूसरी ओर किसानों का एक धड़ा अभी भी आंदोलन कर रहा है। आंदोलनकारी लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं। उन्होंने दूध और सब्जियों की सप्लाय भी रोक दी है। जाट आंदोलन की तर्ज पर यह किसान आंदोलन मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में हुआ। जब अन्नदाता उग्र होकर सड़कों पर निकल आया।
मंदसौर में आंदोलन कर रहे किसानों पर हुई गोलीबारी में तीन लोगों की मौत हो गई। आखिर अन्नदाता क्यों इतना उग्र हो रहा है जानिए क्यों कर रहे किसान यह आंदोलन। भारतीय किसान सेना, भारतीय किसान यूनियन, राष्ट्रीय किसान मज़दूर संघ के बैनर तले यह आंदोलन हो रहा है। इस आंदोलन में कई किसान यूनियनें भी शामिल हो गईं। महाराष्ट्र में भी कर्जमाफी को लेकर किसानों ने आंदोलन किया।
क्यों कर रहे हैं आंदोलन : मध्यप्रदेश के किसानों ने कृषि उपज के उचित मूल्य की की मांगों के साथ 19 सूत्रीय मांगों को लेकर 1 जून से 10 जून तक आंदोलन कर रहे हैं। किसानों की प्रमुख मांगें हैं कि उनकी फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य किया जाए। खेती के लिए बिना ब्याज के कर्ज मिले। 60 साल के किसानों के लिए पेंशन स्कीम लागू की जाए और एक लीटर दूध के लिए दुग्ध उत्पादकों को 50 रुपए कीमत मिले। प्याज और आलू को भी उचित मूल्य पर प्रदेश सरकार खरीदे।
आंदोलन हुआ हिंसक : किसानों ने 1 जून से आंदोलन की शुरुआत की। आंदोलनकारी सड़कों पर उतर आए। आंदोलनकारी किसानों ने हजारों लीटर दूध सड़कों पर बहा दिया और दूध ले जा रही गाड़ियों का दूध भी सड़कों पर बहाया। मंडियों में सब्जी बेचने जा रहे किसानों से सब्जियां छीनकर सड़कों पर फेंक दी। इंदौर के बिजलपुर गांव में भी किसानों और पुलिस के बीच हुई बहुत जोरदार झड़प हुई। 3 जून को पुलिस की ओर आंसू गैस के गोले छोड़े गए।
आंदोलनकारियों को काबू में करने के लिए पुलिस को फायरिंग भी करनी पड़ी। कनाड़िया, सांवेर क्षेत्रों में भी हंगामा हुआ। आदिवासी बहुल जिले झाबुआ के खवाशा क्षेत्र में किसानों द्वारा सब्जी विक्रेताओं को सब्जी बेचने से रोकने के चलते सब्जी विक्रेता और किसानों के बीच झड़प हुई। धार जिले में तीन स्थानों पर किसानों ने दूध ले जा रहे हॉकरों को रोककर उनका दूध सड़क पर बहा दिया। रतलाम के डेलनपुर में आंदोलन कर रहे किसानों ने हिंसक रूप ले लिया और पुलिस पर पत्थरबाजी की। डेलनपुर में आंदोलकारियों ने पुलिस आठ गाड़ियों में आग लगा दी। इसमें एक पुलिस अधिकारी घायल हो गए। पुलिस ने भी उपद्रवियों से निपटने के लिए आंसू गैस के गोले छोड़े और बल प्रयोग भी किया। इस हिंसा में एक पुलिस अधिकारी की आंख में चोट आई। एक अन्य घायल हो गए, जिन्हें उपचार के लिए इंदौर लाया गया था। पुलिस ने कई आंदोलनकारियों को हिरासत में लिया।
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हड़ताल से आमजन हुआ परेशान : दूध और सब्जी जैसी आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति कम होने से इनके भावों में बेतहाशा वृद्धि हुई। प्रदेश के कई स्थानों पर सब्जियों के दाम आसमान को छूने लगे। भिंडी और टमाटर के दाम 20 से बढ़कर 40 रुपए प्रति किलो हो गए हैं वहीं दूध 40 रुपए से बढ़कर 60 रुपए प्रति लीटर हो गया। दूध के लिए शहरों में लाइनें लगने लगी। प्रशासन ने सुरक्षा के साए में अत्यावश्यक वस्तुओं की ब्रिकी की। इंदौर में दूध और सब्जियों की आपूर्ति के लिए पुलिस ने लगभग 500 जवानों को जगह-जगह तैनात किया है।
आरएसएस के किसान संगठन ने किया समर्थन : राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) की शाखा भारतीय किसान संघ और कांग्रेस ने किसान आंदोलन का समर्थन किया था। हालांकि इस संगठन ने सरकार के साथ मिलकर आंदोलन को जल्द समाप्त करने का प्रयास किया।
आंदोलन खत्म होने की घोषणा : 5 जून को मध्यप्रदेश किसान सेना (एमपीकेएस) के सचिव जगदीश रवालिया ने घोषणा कि हमने विभिन्न किसान नेताओं से बातचीत करने के बाद रात 10 बजकर 50 मिनट पर आंदोलन वापस ले लिया। भारतीय किसान संघ के क्षेत्रीय संगठन मंत्री (उज्जैन) शिवकांत दीक्षित ने कहा कि मुख्यमंत्री चौहान ने उज्जैन में किसान संघ के पदाधिकारियों से चर्चा की। मुख्यमंत्री ने बैठक के बाद ट्विटर पर लिखा, मुझे खुशी है कि मध्यप्रदेश में किसानों ने अपना आंदोलन समाप्त कर दिया है।
सरकार ने किया यह वादा : सरकार से चर्चा में तय हुआ कि किसान कृषि उपज मंडी में जो उत्पाद बेचते हैं, उनका 50 प्रतिशत उन्हें नकद मिलेगा जबकि 50 प्रतिशत आरटीजीएस के जरिए यानी सीधा उनके बैंक खाते में आएगा। ये भी तय हुआ कि मूंग की फसल को सरकार समर्थन मूल्य पर खरीदेगी।
किसानों का प्याज 8 रुपए प्रति किलोग्राम की सरकारी दर से अगले तीन-चार दिनों में खरीदा जाएगा। सब्जी मंडियों में किसानों को ज्यादा आढ़त देनी पड़ती है, इसे रोकने के लिए सब्जी मंडियों को मंडी अधिनियम के दायरे में लाया जाएगा। फसल बीमा योजना को ऐच्छिक बनाने और किसानों के खिलाफ आंदोलन के दौरान दर्ज मामलों को भी वापस लेने का भी फैसला हुआ। बैठक के बाद भारतीय किसान संघ के शिवकांत दीक्षित ने घोषणा की कि चूंकि सरकार ने उनकी सारी बातें मान ली हैं इसलिए आंदोलन को स्थगित किया जाता है।
यूनियनों में दरार : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े भारतीय किसान संघ (बीकेएस) ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ वार्ता के बाद आंदोलन खत्म करने का फैसला किया, लेकिन आंदोलन में अगुआ भारतीय किसान यूनियन और राष्ट्रीय किसान मजदूर संघ ने संघर्ष का रास्ता नहीं छोड़ने का ऐलान किया। बीकेएस एवं मध्यप्रदेश किसान सेना द्वारा किसान आंदोलन समाप्त करने की घोषणा के एक दिन बाद प्रदेश में किसानों से जुड़े विभिन्न यूनियनों में दरार पैदा हो गई। कई किसान संगठन अभी आंदोलन की राह पर हैं।