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कार्बाइड के जहर की दहशत में कई परिवार कर रहे पलायन, पीथमपुर के तारापुर में वेबदुनिया की आंखों-देखी

Union Carbide
Union Carbide news Pithampur : पीथमपुर में रामकी कंपनी से सटे तारापुर में रहने वाले जिस भी बाशिंदे को देखो उसकी आंखों में खौफ नजर आता है। खौफ आबोहवा में जहर फैलने का। दशहत भोपाल गैस त्रासदी के भयावह मंजर की। तारापुर में यूनियन कर्बाइड के कचरे को नष्‍ट करने की खबर से यहां के हजारों लोगों की नींद उड़ी हुई है। हालात यह है कि लोग अपने खून पसीने से बनाए आशियानों को छोड़कर जाने को मजबूर हैं। किरायेदार घर छोड़ रहे हैं। वहीं कुछ परिवार अपने बच्‍चों को उनके मामा या अन्‍य रिश्‍तेदारों के यहां भेज रहे हैं, ताकि कम से कम वे तो फैक्‍ट्रियों के इस जहर से बच जाए या उन्‍हें कोई बीमारी न हो। इंदौर से 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित पीथमपुर से सटे तारापुर गांव के हज़ारों रहवासी कुछ इसी तरह के दर्द से गुजर रहे हैं। वजह है औद्योगिक क्षेत्र पीथमपुर की तमाम फैक्ट्रियां और केमिकल प्लांट से निकलने वाला काला धुआं, जहरीला पानी और दूषित आबोहवा। पहले ही पीथमपुर, तारापुर और इसके आसपास के छोटे इलाकों में बच्चे, बूढ़े और महिलाओं को आए दिन सांस की समस्याएं से लेकर स्किन एलर्जी, बुखार, सर्दी- खांसी, छींके, जोड़ों में दर्द, गठिया जैसी तकलीफों से जूझना पड़ रहा है। इस पर अब यूनियन कर्बाइड के कचरे को जलाने की दहशत में उनकी जिंदगी हराम हो गई है।
वेबदुनिया की टीम ने यूनियन कार्बाइड के इस पूरे हंगामे और विवाद के बीच यहां रहने वाले लोगों की तकलीफों को सुना और अपने कैमरे में कैद किया। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को हुई सुनवाई में मध्‍यप्रदेश सरकार को कचरे को लेकर  6 हफ्ते का समय दिया है। पढिये वेबदुनिया की आंखों-देखी रिपोर्ट।
  • पीथमपुर में 1200 यूनिट, कई यूनिट से केमिकल का खतरा
  • तारपुर के लोग घर छोड़ रहे, किरायेदार भाग रहे
  • दूषित हालात में जीना हुआ दूभर, कई बीमारियां से ग्रसित हो रहे लोग
Union Carbide
पलायन ही एक रास्ता : पहले से जहरीली आबोहवा में अपनी ज़िंदगी गुजार रहे ये हज़ारों परिवार अब भोपाल गैस त्रासदी से निकले यूनियन कार्बाइड के कचरे को पीथमपुर में जलाने के सरकार और सुप्रीम कोर्ट के फैसले से दहशत में आ गए हैं। लोगों में इतनी दहशत है कि अब यहां से कई परिवार पलायन करने को मजबूर हैं। कई घर ख़ाली होने लगे हैं।
इंदौर में पसरने के इंतज़ार में भोपाल का ज़हर : पीथमपुर के तारापुर में स्थित रामकी कंपनी के परिसर में यूनियन कार्बाइड का 337 टन जहर से लदे 12 कंटेनर अपने निस्तारण का इंतज़ार कर रहे हैं। इस बीच इन इलाकों के परिवारों के भविष्य पर प्रश्नचिन्ह खड़ा हो गया है। उनका कहना है कि जब पहले से मौजूद फैक्ट्रियों और कई तरह के प्लांट से निकलने वाले केमिकल और धुएं ने लोगों की काया का कबाड़ा कर दिया है तो जिस भोपाल गैस कांड की जिस त्रासदी में 5 हज़ार से ज्यादा लोग मौत की नींद में सो गए थे, उसी ज़हर की वजह से आज भी पंगु बच्चे पैदा हो रहे हैं, ऐसे यूनियन कार्बाइड के ज़हर से उनकी ज़िंदगी का क्या हश्र होगा?

तारापुर बना ट्रेचिंग ग्राउंड : बता दें कि करीब 10 से 12 साल पहले तारापुर में सिर्फ एक कंपनी थी, लेकिन बाद में धीरे धीरे यहां ट्रेचिंग ग्राउंड बन गया, जहां आए दिन कई तरह का कचरे का निस्तारण या डिस्पोज किया जाता है। रामकी कंपनी खासतौर से उस प्लांट के लिए जानी जाती है, जहां कई तरह के जहरीले कचरे और केमिकल वेस्ट को नष्ट किया जाता है। अब यहां यूनियन कर्बाइड का वेस्‍ट नष्‍ट किया जाना है।

पीथमपुर में 1200 से ज़्यादा यूनिट : पीथमपुर और इसके आसपास सटे इलाकों में कई तरह की कंपनियों और फैक्ट्रियों की करीब 1250 यूनिट संचालित होती हैं। इनमें कई केमिकल जनित फैक्ट्रियों के साथ, मेडिसिन, ऑटो मोबाइल्स और दूसरी तरह के उत्पादों की यूनिट शामिल हैं। इनसे निकलने वाला काला, पानी और जहरीला धुआं वातावरण में पसरता है और कुछ फैक्ट्रियों से निकलने वाला दूषित पानी आसपास के नदी नालों से मिलकर खेतों तक पहुंच जाता है।
फसलें- जमीनें हो रहीं खराब : उद्योगों द्वारा छोड़ा जा रहा केमिकल जमीन में जाने से लंबे समय से पीथमपुर की फसलें खराब हो रही हैं। पिछले कुछ सालों से किसान कम दामों पर अपनी जमीनें बेच कर पलायन कर रहे हैं। पीथमपुर की कईं कंपनियां अपने उपक्रमों से निकलने वाले जहरीले पदार्थ को जमीन में डम्प कर रही हैं। कुछ ऐसी भी हैं जो रात के अंधेरे में हानिकारक केमिकल नालों में बहा देती हैं। नतीजतन औद्योगिक नगरी का भूजल यहां तक की मिट्टी भी जहरीली हो चुकी है। अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सेक्टर-1 में किसानों की फसल बोरिंग के पानी से ही खराब हो रही है।

औद्योगिक संगठन के पदाधिकारी का तर्क : पीथमपुर औद्योगिक संगठन के अध्यक्ष गौतम कोठारी का तर्क है कि पीथमपुर में 1200 से ज्यादा यूनिट हैं, लेकिन इनमें से केमिकल की बहुत कम है। ज़्यादातर ऑटो मोबाइल्स की यूनिट हैं, जिसने कोई बहुत खतरा नहीं है लोगों को। उनका कहना है कि जहां तक भोपाल के यूनियन कार्बाइड के कचरे का सवाल है तो मध्यप्रदेश का कचरा मध्यप्रदेश में नहीं जलेगा तो कहां जलेगा। उन्होंने कहा कि जब गुजरात, महाराष्ट्र और यहां तक कि जर्मनी ने कचरा जलाने से मना कर दिया तो कहीं तो जलाना ही होगा। उन्होंने कहा कि इससे कोई खतरा नहीं है, यह बहुत पुराना कचरा है, बस सरकार अपनी बात लोगों को समझाने में असफल रही है, इसलिए लोगों में दहशत है। यह पूरा विवाद सरकार की असफलता है।
अध्यक्ष गौतम कोठारी का तर्क अगर कुछ हद तक सही भी मान लें तो सवाल उठता है कि भोपाल का कचरा इंदौर में क्यों जलाया जा रहा है? इसके पीछे तर्क दिया जा रहा है मध्यप्रदेश में सिर्फ पीथमपुर में ही रामकी के पास कचरा नष्ट करने का प्लांट है। ऐसे में सवाल यह भी है कि जब कचरा नष्ट करने के लिए सरकार 132 करोड़ खर्च कर रही है तो यह प्लांट भी कहीं ऐसी जगह लगाया जा सकता है जहां आम लोगों को कोई दिक्कत न हो।
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साधना दहिया
ज़हर का दहशत, पलायन को मजबूर लोग
घर छोड़ने वालों का माई-बाप कौन : गृहिणी साधना दहिया गर्भवती हैं, उन्होंने बताया कि वो पहले से ही यहां के दूषित वातावरण की वजह से आए दिन बीमार रहती है। अब गर्भावस्था में यूनियन कार्बाइड का कचरा जलाने की खबर से वो दहशत में है। उनके परिवार ने तारापुर छोड़ने का फैसला किया है।
Union Carbide
राधा राठौर
बच्चों को बाहर भेज रहे : गृहिणी राधा राठौर ने बताया कि लोग अपने बच्चों को यहां रखना नहीं चाहते, उन्हें अपने मामा के यहां या दूसरे रिश्तेदारों के यहां भेजा जा रहा है। उनकी जिंदगी को जैसे तैसे गुजर जाएगी, लेकिन बच्चों का भविष्य बर्बाद न हो, उन्‍हें कोई बीमारी न घेरे इसके लिए लोग चिंतित हैं। रमेश सोलंकी ने बताया कि वो सालभर में 6 बार बीमार पड़ जाते हैं, खांसी बुखार बना रहता है, ऐसा पहले नहीं होता था, यह सब इन फैक्ट्रियों की वजह से हुआ है।
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लक्ष्मीबाई, रमेश सोलंकी
किरायेदार भाग रहे : लक्ष्मीबाई अपनी रोजी रोटी कमरे किराये पर देकर चलाती है। उनके यहां फैक्‍ट्रियों में काम करने वाले कुछ मजदूर रहते हैं। वे बताती है कि यहां ज्यादातर स्किन एलर्जी, खांसी, खुजली, दराद की शिकायतें होती रहती है। किरायेदार कुछ दिन में ही यहां से भाग जाते हैं। अनिल अहिरवार यहां हाल ही में किराए से रहने आए हैं, जैसे ही पता चला कि रामकी में यूनियन कार्बाइड का कचरा जलने वाला है, वे घर घर ख़ाली कर जाने की तैयारी कर रहे हैं।
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प्रेम सोलंकी
स्किन एलर्जी और खांसी, जोड़ों का दर्द: लंबे समय से यहां रह रही प्रेम सोलंकी ने बताया कि फैक्ट्रियों की वजह से यहां के तालाब का पानी इतना दूषित हो गया कि सरकार ने उसका सप्लाई बंद कर दिया और अब पिछले एक साल से नर्मदा का पानी दिया जा रहा है। गांव में कई लोगों को अचानक गठिया और जोड़ों में दर्द की शिकायत होने लगी है। सांस और दमा के भी मरीज हैं। सुगन बाई ने बताया कि कुएं और तालाब का जो पानी इस्तेमाल करते हैं उससे हाथों में स्किन की समस्या, खुजली और दूसरी बीमारियां हो जाती हैं।
ढाई लाख की आबादी पर एक अस्पताल : बता दें कि पीथमपुर, तारापुर, बजरंगुरा, भंवरगढ़ और आसपास के कुछ इलाकों को मिलाकर यहां की आबादी करीब ढाई लाख है। लेकिन यहां पीथमपुर के डाक बंगला में सिर्फ एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र है। इनमें सबसे ज्यादा परेशानी तारापुर के लोगों को होती है। उन्हें इलाज के लिए आए दिन धार या इंदौर जाना पड़ता है।

ये है डॉक्‍टरों का तर्क : डॉ ऋतु चौरे प्रसूति विशेषज्ञ और डाक बंगला के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की प्रभारी हैं। उन्होंने बताया कि अस्पताल की ओपीडी में रोजाना 350 से 400 मरीज आते हैं, इनमें सर्दी, बुखार, वायरल, खांसी, एलर्जी, खुजली जैसे तमाम बीमारियों के मरीज आते हैं, लेकिन वे इस बारे में पुख़्ता तौर पर नहीं कह सकती कि यह केमिकल जनित बीमारियां ही हैं। अस्पताल और डॉक्टर कुछ भी कहें, लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि इन क्षेत्रों में फैक्ट्रियों से दूषित हुए वातावरण की वजह से लोग अक्सर और आए दिन बीमार पड़ रहे हैं।
Union Carbide
 डॉ रितु चौरे
अंत में सवाल फिर भी रह जाता है...
सवाल उठता है कि मध्‍यप्रदेश सरकार यह दावा तो कर रही है कि यूनियन कर्बाइड से किसी तरह का खतरा नहीं है, तो फिर इस कचरे को भोपाल से इतने प्रोटोकाल के तहत क्‍यों लाया गया। रामकी कंपनी से सटे तारापुर और आसपास के इलाकों में रहने वालों में इसे लेकर जो दहशत और चिंता है।    
सभी फोटो : धर्मेंद सांगले