गुरुवार, 9 अक्टूबर 2025
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प्रोपेगंडा मेडिसिन माफियाओं ने बढ़ाया मरीज का मर्ज, कमजोर कानून ने ड्रग माफियाओं को किया मजबूत

हिमाचल के बद्दी, पंजाब में मोहाली, जालधंर और महाराष्‍ट्र के शहरों में संचालित हो रही प्रोपेगंडा मेडिसिन कंपनियां

Propaganda medicine cough syrup
मेडिकल प्रोफेशन से जुड़े कुछ लोगों की कमिशनखोरी और प्रोपेगंडा मेडिसिन माफियाओं के मिलीभगत के खेल ने न सिर्फ मध्‍यप्रदेश, बल्‍कि पूरे देश में मरीजों के मर्ज को कम करने की बजाए और ज्‍यादा बढ़ा दिया है। आलम यह है प्रोपेगंडा मेडिसिन कंपनियां कई मेडीकल फील्ड से जुड़े कुछ लोगों को कमिशन के जाल में लेकर बाजार में अपनी दवाएं खपा रही हैं तो वहीं, चौंकाने वाली बात है कि कोई भी व्यक्ति खुद अपनी दवाएं बनवा सकते हैं, अपना ब्रांड नाम रख सकते हैं, यहां तक कि दवाओं की एमआरपी भी तय कर सकते हैं। जानते हैं क्‍या मेडिकल से जुड़े लोगों और ड्रग माफियाओं का ये पूरा जहरीला खेल...

तमिलनाडु में बनी एक कफ सिरप से मध्‍यप्रदेश में 21 और राजस्‍थान 11 बच्‍चों की मौत हो गई। कुल 32 मौतें। कुछ बच्‍चे अस्‍पताल में भर्ती हैं। बच्‍चों की मौत का आंकड़ा बढ़ सकता है। अब देश के कई राज्‍यों से दवाइयों के सैंपल लेकर जांच के लिए भेजे जा रहे हैं। दवा नकली, मिलावटी या तय मानकों पर नहीं थी यह साफ है। 32 बच्‍चों की मौत भी हुई है यह भी सामने है। लेकिन यह तय नहीं है कि इस पूरे मामले में किसी जिम्‍मेदार को सजा होगी। यानी अंतत: 32 मौतों का कोई जिम्‍मेदार साबित नहीं होगा। वजह है भारत में नकली, मिलावटी और तय मानकों पर नहीं बनाई गई दवा को लेकर कानून।

प्रोपेगंडा मेडिसिन कंपनी और कमिशनखोरी का खेल : एक तरफ जहां दवाइयों में ड्रग के कॉम्‍बिनेशन को लेकर सवाल उठ रहे है, जिसकी वजह से कोल्‍ड्रिफ कफ सिरप पीने से मध्‍यप्रदेश और राजस्‍थान में 32 बच्‍चों की मौत हो गई। तो वहीं, मेडिकल प्रोफेशनल्स और प्रोपेगंडा मेडिसिन कंपनियों की मिलीभगत से भी कई तरह की धांधलियां सामने आ रही हैं। दरअसल, प्रोपेगंडा मेडिसन कंपनियां अपनी दवाइयों को बाजार में खपाने के लिए कमिशनखोरी का खेल खेलती है। कुछ लोग इस खेल में शामिल होकर मरीज को ऐसी प्रोपेगंडा दवा बता देते हैं जो इलाज तो दूर उल्‍टा मरीज के किडनी, लीवर और दिल का कबाड़ा कर देती है। क्‍योंकि नकली या मिलावटी होने के साथ यह दवाइयां असर ही नहीं करती है, ऐसे में मरीज को डबल डोज वाली वही दवाई फिर से दी जाती है और इस तरह मरीज मर्ज ठीक होने की बजाए ज्‍यादा दर्दनाक और जानलेवा हो जाता है।

ऐसे समझे नकली या मिलावटी दवाओं का स्‍कैंडल
क्‍या प्रोपेगेंडा स्‍कैंडल : दरअसल, दवाई निर्माता और मेडिकल प्रोफेशन से जुड़े कुछ लोगों की मिलीभगत से पूरे प्रदेश में एक प्रोपेगेंडा स्‍कैंडल चल रहा है। वेबदुनिया की पड़ताल में कई मेडिकल फील्ड से जुड़े कई लोगों ने नाम प्रकाशित नहीं करने गुजारिश पर बताया कि हर दवाई की एक ग्रेड होती है। जैसे सिप्‍ला, रेड्डी या सनफार्मा जैसी लिस्‍टेड कंपनियों की एक ग्रेड है, इन कंपनियों की दवाइयों में कोई दिक्‍कत नहीं आएगी, ये महंगी और उच्‍च गुणवत्‍ता वाली दवाइयां होती है। दूसरी मेनकाइंड और एफडीसी कंपनियों की दवाइयों की एक ग्रेड होती है। यहां तक भी ठीक है। डॉक्‍टर ये दवाइयां लिखते हैं और मरीज ठीक भी होता है। लेकिन दवाइयों की एक तीसरी कैटेगरी या ग्रेड होती है, जिसे पीजी यानी प्रोपेगंडा कंपनी कहा जाता है। दवाई जिसमें कंपनी संचालक कमिशन का लालच देता है और मरीज को दवाई लिखने के लिए कहता है। कुछ डॉक्‍टरों ने बताया कि इस ग्रेड की दवाओं में पोटेंसी यानी क्षमता ही नहीं होती है। सबसे दुखद बात यह है कि पहले इन प्रोपेगंडा कंपनी का प्रतिशत 10 था, लेकिन अब यह बढ़कर 40 प्रतिशत हो गया है। अंदाजा लगा सकते हैं कि इस तरह की कितनी प्रोपेगंडा मेडिसिन बाजार में मिल रही होगी।

कैसे काम करती है प्रोपेगंडा कंपनियां : इंदौर के दवा बाजार के हमारे एक सूत्र ने बताया कि हिमाचल से लेकर पंजाब और महाराष्‍ट्र में दवाएं बनाने वाली ये प्रोपेगंडा कंपनियां किसी भी शहर में मेडिकल प्रोफेशन से जुड़े कुछ लोगों की सूची तैयार करती है। सूची बनाकर इनसे संपर्क किया जाता है। मरीज को उनकी कंपनी की दवा देने पर कमिशन तय होता है। अब ये मेडिकल प्रोफेशन से जुड़े कुछ लोगों मरीज को वही दवा देते हैं जिस पर उसे प्रोपेगंडा कंपनी की तरफ से भारी भरकम कमिशन मिलना है। यही वजह है कि कई बार ऐसी दवाई चुनिंदा दुकानों के सिवा कहीं भी चले जाओ, आपको नहीं मिलेगी। डॉक्‍टरों को कमिशन का लालच और दवा बनाने वाली कंपनी का मुनाफा। दोनों का गठजोड़ मिलकर मरीज की जान के साथ खिलवाड़ कर रहा है। ये एक बड़ा स्‍केंडल है।

क्‍यों नहीं मिलती किसी डॉक्‍टर की प्रिस्‍क्राइब्‍ड दवा कहीं भी
कोई भी अपनी दवाई बनवा सकता है : अक्‍सर मरीज के सामने यह समस्‍या आती है कि किसी डॉक्‍टर की लिखी दवाएं पूरे शहर में कहीं नहीं मिलती हैं। ये दवाएं सिर्फ डॉक्‍टर के बताए गए मेडिकल स्‍टोर या खुद उनके क्‍लिनिक पर संचालित स्‍टोर पर ही मिलती हैं। इसके पीछे की बेहद चौंकाने वाली जानकारी वेबदुनिया को मिली है। सूत्रों ने बताया कि दरअसल, कुछ डॉक्‍टर खुद अपनी दवाइयां बनवाते हैं, इनकी दवाइयां कहीं नही मिलेगी, जो नाम बोलेंगे उस ब्रांड से दवाई बन जाएगी, अपने नाम से। यहां तक कि दवाइयों की एमआरपी भी डॉक्‍टर ही तय करते हैं। यहां तक कि कोई भी अपनी दवाई बनवा सकता है। सूत्रों ने वेबदुनिया को इंदौर के ऐसे डॉक्‍टरों के नाम भी बताए और दावा किया कि इन डॉक्‍टरों की लिखी दवाएं पूरे शहर में सिर्फ उन्‍हीं के पास मिलेगी और कहीं नहीं

कैसे होता है मिलावट का धंधा : नकली या मिलावटी दवाएं बनाने के लिए चाक पाउडर, मक्के और आलू के आटे का इस्‍तेमाल किया जाता है। इन्‍हें ब्रांडेड दवाओं की तरह पैक करके दुकानों पर सप्लाई किया जाता है। कई तरह की मेडिसिन में और टैबलेट में तय मात्रा से कम दवा डालकर बनाया जाता है, जिससे मरीजों को दवा का पर्याप्त डोज नहीं मिल पाता और बीमारी कम नहीं होती, बल्कि बढ़ती जाती है। कई बार तो इन्हें खतरनाक रसायनों से बनाकर गोलियों और इंजेक्शन में भर दिया जाता है।

एमपी फार्मासिस्‍ट एसोशिएशन के जिलाध्‍यक्ष दीप मंडवानी ने वेबदुनिया को बताया कि हमारा एक ही मोटो हैं, जहां दवा मिल रही है, वहां फार्मासिस्‍ट होना चाहिए। लेकिन ऐसा हकीकत में हो नहीं रहा है। जब यहीं नियमों की अनदेखी हो रही है तो आप ही सोच लीजिए मरीजों को क्‍या और कौनसी दवाएं मिल रही होंगी। इसके बाद भी कोई मॉनिटरिंग नहीं है। मेडिकल और दवाओं के कारोबार में यह एक बहुत बड़ा लूप-होल है, जिसकी तरफ शासन का ध्‍यान नहीं है।

कहां- कहां से चलती है प्रोपेगंडा मेडिसिन कंपनियां : जानकारी में सामने आया कि मध्‍यप्रदेश से लेकर हिमाचल प्रदेश के बद्दी, पंजांब में मोहाली, जालधंर और महाराष्‍ट्र के कई शहरों में इस तरह की प्रोपेगंडा मेडिसिन की कंपनियां दवाएं बना रही हैं। बहुत कम लागत में बनने वाली इन बेअसर दवाओं को बाजार में खपाने के लिए देशभर के डॉक्‍टरों को कमिशन के सब्‍जबाग दिखाया जाता है और दवाओं की बिक्री बढ़ाई जाती है।

ड्रग माफियाओं को नहीं लचर कानून से कोई डर : इस तरह की नकली, मिलावटी और तय मानकों पर नहीं बनी प्रापेगंडा दवाइयां बनाने वाली कंपनियों को हकीकत में कानून का भी कोई डर नहीं है, इसलिए इनकी संख्‍या लगातार बढ़ रही है। दरअसल, भारत में नकली और मिलावटी दवाओं पर लगाम लगाने के लिए जो कानून बना है, वो बेहद लचर है। 2023 में इस कानून में बदलाव के बाद तो इससे ड्रग माफियाओं का काम और ज्‍यादा आसान हो गया।

क्‍या है ड्रग्‍स एंड कॉस्‍मेटिक एक्‍ट-1940 : भारत में औषधि एवं प्रसाधन अधिनियम- 1940 (ड्रग्‍स एंड कॉस्‍मेटिक एक्‍ट- 1940) बनाया गया था। इस कानून के तहत किसी भी दवा का निर्माण, बिक्री और वितरण के लिए राज्य सरकार से ड्रग लाइसेंस लेना जरूरी है। दवाओं और कॉस्‍मेटिक्‍स प्रोडक्‍ट का सेफ्टी और क्‍वालिटी के तय मानकों पर खरा होना जरूरी है। इस कानून के तहत नकली, गलत ब्रांड वाली या खराब क्‍वालिटी वाली दवाइयों का निर्माण, बिक्री और डिस्‍ट्रिब्‍यूशन प्रतिबंधित है।
  • यदि नकली या मिलावटी दवाओं के कारण किसी रोगी की मृत्यु हो जाती है या उसे गंभीर शारीरिक चोट पहुंचती है तो दोषी व्यक्ति को आजीवन कारावास तक की सज़ा हो सकती है।
  • वहीं मिलावटी दवा बनाने या बिना लाइसेंस के दवा बनाने के मामले में 5 साल की सजा के बजाए अब नए संशोधन में 25 लाख तक का जुर्माना कर दिया गया है।
  • अन्‍य मामलों में 7 साल तक की सजा का प्रावधान था, अब यह हटा लिया गया है। अब सिर्फ जान के नुकसान में ही दोषी को आजीवन कारावास की सजा हो सकती है।
संशोधन के बाद लचर हुआ कानून : भारत में नकली दवाइयों के कारोबार को बढ़ावा मिलने के पीछे की सबसे बडी वजह इसे लेकर तय कानून का लचर होना है। दरअसल, साल 2023 में इस कानून में संशोधन किया गया था। मिलावटी या बिना लाइसेंस के दवा बनाने के मामले में 5 साल की सजा के बजाए अब नए संसोधन में 25 लाख तक का जुर्माना कर दिया गया है। ऐसे में कई मामलों में ड्रग निर्माता जुर्माना देकर छूट जाता है।

कारगर नहीं हुआ क्‍यूआर कोड का तरीका : नकली दवाओं के कारोबार पर लगाम लगाने के लिए सरकार ने दवाओं की पैकेजिंग पर क्यूआर कोड (QR Code) अनिवार्य किया था, जिससे दवा खाने से पहले मरीज यह पता लगा सके कि दवा असली है या नकली। लेकिन अब तक ऐसा कोई मामला सामने नहीं आया, जिसमें डॉक्‍टर द्वारा लिखी दवाई की किसी मरीज ने क्‍यूआर कोड से जांच की हो। मरीज डॉक्‍टर की लिखी दवा पर आंख बंद कर के भरोसा करता है। साथ ही अब तक ऐसा कोई मामला सामने ही नहीं आया, जिसमें क्‍यूआर कोड से दवा के नकली होने का पता चला हो।

मध्‍यप्रदेश और राजस्‍थान में हुई 32 बच्‍चों की मौत इसी मेडिकल माफिया का परिणाम है। अगर समय रहते इस पर लगाम नहीं लगाई गई तो ऐसे और भी बच्‍चों और मरीजों की जानें जाती रहेगीं और उनके हिस्‍से में जांच और जांच के बाद बंद फाइल के अलावा कुछ नहीं रह जाएगा, सिवाए उनके आंसूओं के...
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