महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ महायुति में दरार और बढ़ी, फडणवीस का एकनाथ शिंदे पर पलटवार
Chief Minister Devendra Fadnavis: महाराष्ट्र में सत्ताधारी गठबंधन में दरार बढ़ती जा रही है। भाजपा और शिवसेना (एकनाथ शिंदे गुट) एक दूसरे पर निशाना साधने में नहीं चूक रहे हैं। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने अपने डिप्टी एकनाथ शिंदे के एक बयान पर पलटवार करते हुए इस 'शीत युद्ध' को सार्वजनिक कर दिया है। दरअसल, हाल ही में एकनाथ शिंदे ने भाजपा की तुलना परोक्ष रूप से रावण से कर दी थी।
पालघर में एक चुनावी रैली के दौरान एकनाथ शिंदे ने बिना नाम लिए कहा था कि रावण भी अहंकारी था और उसकी लंका भी जल गई थी। आपको भी 2 दिसंबर को ऐसा ही करना है। इसे सीधे तौर पर भाजपा को चेतावनी के रूप में देखा गया है। महाराष्ट्र में 2 दिसंबर को निकाय चुनाव के लिए मतदान होना है।
लंका तो हम जलाएंगे : हालांकि विवादित मामलों पर टिप्पणी करने से बचने वाले देवेंद्र फडणवीस ने खुलकर हमला बोला है। फडणवीस ने शिंदे के बयान पर जवाब देते हुए कहा कि उन लोगों को नजरअंदाज करें, जो हमारे बारे में कुछ भी बोलते हैं। वे कह सकते हैं कि हमारी लंका जलाएंगे। लेकिन हम तो लंका में नहीं रहते। हम भगवान राम के अनुयायी हैं, रावण के नहीं। हम जय श्री राम बोलने वाले लोग हैं। कल ही (25 नवंबर को) हमने राम मंदिर पर धर्मध्वजा लहराई है। हम भगवान राम की पूजा करने वाली पार्टी के लोग हैं। लंका तो हम जलाएंगे। यह जुबानी जंग स्पष्ट रूप से दिखाती है कि दोनों दलों के बीच विचारधारा और वर्चस्व की लड़ाई किस हद तक पहुंच चुकी है।
क्यों नाराज हैं एकनाथ शिंदे : गठबंधन में दरार का मुख्य कारण निचले स्तर के नेताओं और कार्यकर्ताओं को तोड़ने की होड़ है। भाजपा की ओर से शिवसेना के कुछ पार्षदों को अपनी पार्टी में शामिल किए जाने से शिवसेना (शिंदे गुट) में गहरी नाराजगी है।
शिवसेना को डर है कि यदि भाजपा निचले स्तर पर उसके संगठन को कमजोर करती रही तो भविष्य के चुनावों में उसे गंभीर नुकसान होगा और भाजपा का पलड़ा भारी हो जाएगा। शिवसेना की यह नाराजगी उस समय भी सामने आई थी, जब शिवसेना के मंत्रियों ने देवेंद्र फडणवीस की कैबिनेट मीटिंग में शामिल होने से इंकार कर दिया था। बाद में मंत्रियों ने इस मुद्दे पर अपना विरोध भी जताया था।
शाह से मुलाकात के बाद भी नहीं सुलझा मामला : हालांकि हाल ही में एकनाथ शिंदे ने केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मिलकर मामले को सुलझाने की भी कोशिश की थी। बताया जा रहा है कि शाह ने शिंदे को भरोसा दिया था कि यदि शिवसेना भी भाजपा नेताओं को तोड़ने से बचेगी, तो भाजपा भी ऐसा नहीं करेगी। इस समझौते के बाद भी जमीनी स्तर पर कोई स्पष्ट सहमति बनती नहीं दिख रही है, फडणवीस का बयान भी इस बात का संकेत है कि तनाव अभी भी बरकरार है।
यह बात भी सही है कि सरकार के गठन के बाद से ही शिंदे की नाराजगी देखने को मिल रही है। शिंदे अपने 'डिमोशन' से शुरू से ही नाराज हैं। हालांकि भाजपा को सरकार बनाए रखने के लिए अब शिंदे की जरूरत भी नहीं है। उनके बिना भी फडणवीस सरकार के पास बहुमत का आंकड़ा है। हालांकि राजनीतिक जानकारों की निगाह इस पर रहेगी कि आने वाले समय में यह गठजोड़ बचा रहेगा या फिर टूट जाएगा।
Edited by: Vrijendra Singh Jhala