देहरादून। Earthquakes in india : राष्ट्रीय भूभौतिकीय अनुसंधान संस्थान के चीफ साइंटिस्ट डॉ. एन. पूर्णचंद्र राव की मीडिया में उत्तराखंड में भूकंप को लेकर आई चेतावनी से बद्रीनाथ और केदारनाथ जैसे तीर्थ स्थलों के रास्ते जोशीमठ में जमीन धंसने, पहाड़ दरकने और घरों में दरार के बाद देशभर में चिंता बढ़ गई है। उत्तराखंड हिमालय की सीमा भारत के भूकंपीय जोन मैप के सिस्मिक जोन 5 और 4 में आती है। सवाल उठ रहे हैं कि हिमालय क्षेत्र में क्या तुर्किए जैसा विनाशकारी भूकंप आ सकता है?
जोशीमठ से खतरे की आहट : उत्तराखंड ने बीते 100 से अधिक वर्षों से अभी 8 और उससे अधिक तीव्रता के बड़े भूकंप नहीं आए हैं। 1991 में उत्तरकाशी और 1999 में चमोली जिले में रिक्टर स्केल पर 6.8 तीव्रता के दो भूकंप जरूर आए थे। वैसे उत्तराखंड के किसी न किसी जिले में कम तीव्रता के भूकंप की लगातार खबरें आती रहती हैं। तुर्किए और सीरिया के भूकम्प के बाद यह सवाल उठने लगे हैं कि क्या उत्तराखंड में भी ऐसा कोइ बड़ा भूकम्प आ सकता है, इसको लेकर जोशीमठ जैसी आपदा से जूझ रहे उत्तराखंड में यह सवाल उठाना स्वाभाविक है।
क्या तय है तारीख? : वाडिया इंस्टिट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के भूकंप विशेषज्ञ सुशील कुमार का कहना है कि उत्तराखंड सिस्मिक गैप जोन में होने से यहां भूकम्प आने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता, लेकिन यह घोषणा करना कि यह कब आएगा, किसी के बूते में है ही नहीं। इसलिए लोगों को इसके बचाव के लिए एहतियाती उपायों के तहत भूकम्प रोधी उपायों को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाना चाहिए। किसी भी वैज्ञानिक के लिए अभी तक यह कहना संभव नहीं कि यह भूकंप कब और कहां आएगा और कितनी तीव्रता का आएगा।
संवेदनशील रहा है क्षेत्र : डॉ. सुशील कुमार के अनुसार हिमालय भूकम्पीय लिहाज से हमेशा ही संवेदनशील रहा है। यहां भूकंप की आशंका हमेशा से ही रही है। 1720 के कुमाऊं भूकंप और 1803 के गढ़वाल भूकंप सहित चार बड़े भूकंप यहां आने का इतिहास मिलता है।
डॉ. सुशील कुमार कहते हैं कि भूकंप से बचने के लिए न केवल यहां के निर्माणों को भूकम्परोधी होना जरूरी है बल्कि रोड कटिंग में रिटेनिंग वाल बनाने की भी आवश्यकता है।
विकास कार्य रोके नहीं जा सकते लेकिन भूकंपरोधी तकनीक का इस्तेमाल करके आगे तो बढ़ाए जा सकते हैं। घरों को समुचित डिजाइन सरकारी इमारतों को भूकंप रोधी तकनीक से बनाने पर ध्यान देना जरूरी है।
घरों के निर्माण के लिए साइल स्ट्रेंथ का परीक्षण कराकर फिर उनको भूकंपरोधी तकनीक से निर्मित करने की आवश्यकता है। हिमालय के नीचे तनावग्रस्त ऊर्जा के संचय के कारण भूकंप आना एक सामान्य और निरंतर प्रक्रिया है। लेकिन भूकंप कब आएगा इसकी कोई भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है।
भूकंप प्रतिरोधी निर्माण और इसके लिए जागरूकता फैलाते हुए काम करने से भूकंप से होने वाले नुकसान को 99.99 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है। बेहतर तैयारियों के कारण ही जापान जैसे देश लगातार मध्यम तीव्रता के भूकंपों की चपेट में आने के बावजूद जान-माल का ज्यादा नुकसान के शिकार होने से बचते रहे हैं।
60 भूकंप वेधशालाएं स्थापित : भूकंप की संभावनाओं को देखते हुए ही उत्तराखंड को भूकंपीय क्षेत्र IV और V में रखा गया है। 24 घंटे भूकंपीय गतिविधियों को दर्ज करने के लिए हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में लगभग 60 भूकंप वेधशालाएं स्थापित की गई हैं।वैज्ञानिक अध्ययन बताते हैं कि इंडियन टेक्टोनिक्स प्लेट लगातार यूरेशियन टेक्टोनिक्स प्लेट के नीचे दब रही हैं।
इससे हिमालय तथा इससे जुड़े क्षेत्रों में रोजाना भूकंप के झटके आ रहे हैं। दोनों टेक्टोनिक्स प्लेट हिमाचल प्रदेश के भरमौर-कांगड़ा क्षेत्र में एक-दूसरे से आकर मिलती हैं।
ऐसे में यह भूगर्भीय हलचल स्वयं भूकंप पैदा कर रही है। इसका अन्य क्षेत्रों की भूगर्भीय गतिविधियों से कुछ लेना-देना नहीं है। कांगड़ा और चंबा में वर्ष 2005 में 8.1 तीव्रता का आया भूकंप भी इंडियन और यूरेशियन प्लेट की देन था।
क्या बोले हैदराबाद के वैज्ञानिक : एनजीआरआई के मुख्य वैज्ञानिक डॉ. एन पूर्णचंद्र राव के मुताबिक पृथ्वी की सतह में विभिन्न प्लेटें शामिल हैं जो लगातार गति में हैं। भारतीय प्लेट प्रति वर्ष लगभग 5 सेमी आगे बढ़ रही है, जिससे हिमालय के साथ-साथ तनाव बढ़ रहा है जिससे बड़े भूकंप की आशंका है। Edited By : Sudhir Sharma