जम्मू कश्मीर में फिर लगा 'दरबार' पर नाम दिया 'प्रशासनिक मूव'
जम्मू। जिस डेढ़ सौ साल पुरानी 'दरबार मूव' की व्यवस्था को धारा 370 हटा दिए जाने के बाद बंद कर दिया गया था, उसके तहत आज शीतकालीन राजधानी जम्मू में यह लगभग 500 कर्मचारियों व अफसरों के साथ फिर लग गया। बस इसे 'प्रशासनिक मूव' का नाम दिया गया है।
इतना जरूर था कि पहले इसी 'मूव' के तहत 10 हजार के लगभग सरकारी अमला 6-6 माह दोनों राजधानियों में रहता था। जानकारी के लिए जम्मू-कश्मीर में अभी भी दो राजधानियां कायम हैं, चाहे दो संविधान और दो निशान समाप्त हो चुके हों।
दरअसल, इस प्रक्रिया को सरकारी तौर पर 'दरबार मूव' का नाम नहीं दिया जा रहा है बल्कि कहा जा रहा है कि कामकाज को सुचारू रूप से चलाने के लिए सरकार जम्मू व श्रीनगर के नागरिक सचिवालयों में कार्यरत अधिकारियों व कर्मचारियों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर भिजवाने की परंपरा है क्योंकि प्रदेश में अभी भी दो राजधानियां हैं और इस मूव के तहत आने वाले कर्मियों की संख्या भी निर्धारित नहीं है जो जरूरत के मुताबिक कम या ज्यादा हो सकती है।
'दरबार मूव' की नई व्यवस्था के तहत प्रदेश की ग्रीष्मकालीन राजधानी श्रीनगर में उप राज्यपाल का दरबार पिछले महीने श्रीनगर में बंद हो गया। हालांकि 'दरबार मूव' के साथ जरूरत के आधार पर कर्मचारियों के अलावा उप राज्यपाल मनोज सिन्हा, पुलिस महानिदेशक, मुख्य सचिव व प्रशासनिक सचिव के कार्यालयों ने आज से जम्मू में कामकाज संभाल लिया है।
इस 'दरबार मूव' की परंपरा को आधिकरिक तौर पर पिछले साल से 'बंद' किया जा चुका है, उसके प्रति सच्चाई यह है कि यह गैर सरकारी तौर पर लगभग 500 कर्मियों के साथ फिलहाल जारी है। ये कर्मी उपराज्यपाल, मुख्य सचिव और वित्त विभाग के वित्त आयुक्त, सामान्य प्रशासनिक विभाग के आयुक्त सचिव तथा पुलिस महानिदेशक के कार्यालयों में लिप्त कर्मी हैं, जो दोनों राजधानियों में आ-जा रहे हैं।
जम्मू में उप राज्यपाल मनोज सिन्हा का दरबार सजाने के लिए नागरिक सचिवालय से लेकर राजभवन में साज-सज्जा व मरम्मत कार्य अक्टूबर से ही शुरू हो चुका था। उल्लेखनीय है कि उप राज्यपाल मनोज सिन्हा के जम्मू से कामकाज की कमान संभालने के बाद अब जम्मू में प्रशासनिक सक्रियता भी बढ़ जाएगी।
इतना जरूर था कि 'दरबार मूव' की परंपरा को बंद करने का समर्थन मात्र मुट्ठीभर उन लोगों द्वारा ही किया जा रहा है, जो एक राजनीतिक दल विशेष से जुड़े हुए हैं, जबकि जम्मू का व्यापारी वर्ग इससे दुखी इसलिए है, क्योंकि इतने सालों से कश्मीर से दरबार के साथ सर्दियों में जम्मू आने वाले लाखों लोगों पर उनका व्यापार निर्भर रहता था। जो अब उनसे छिन चुका है।