जम्मू' जो सूचनाएं मिल रही हैं वे कहती हैं कि आतंकवादी ‘दरबार’ के साथ ही जम्मू की ओर ‘मूव’ कर गए हैं। ऐसी सच्चाई से सुरक्षाधिकारी भी वाकिफ हैं जो ऐसे रहस्योद्घाटन भी कर रहे हैं और साथ ही सुरक्षा प्रबंध मजबूत करने की बात भी करते हैं।
जम्मू शहर तथा आसपास के इलाकों में किए जा रहे सुरक्षा प्रबंधों से आम नागरिक खुश नहीं हैं। कारण पूरी तरह से स्पष्ट है, पूर्व अनुभवों के चलते नागरिकों के लिए ऐसे सुरक्षा प्रबंधों पर विश्वास कर पाना संभव नहीं है तो दूसरा ऐसे सभी प्रकार के सुरक्षा प्रबंधों का केंद्र हमेशा ही वीआईपी कालोनियां तथा क्षेत्र रहे हैं। अर्थात आम नागरिक की किसी को कोई चिंता नहीं है।
हालत यह है कि ‘दरबार’ अब जम्मू के लोगों के लिए आतंक की आहट के रूप में हो गया है। अभी तक का अनुभव यही रहा है कि ‘दरबार’ के जम्मू में आने के साथ ही आतंकवाद तथा आतंकी भी जम्मू की ओर पलायन करने लगते हैं।
आतंकवाद के 30 सालों का रिकॉर्ड देखें तो सर्दियों में अगर नागरिक सचिवालय और राजधानी जम्मू में आए तो उनके साथ ही आंतकवाद, आतंकी और आतंकी गतिविधियों ने भी जम्मू में ही डेरा लगा लिया। और इन सबके बीच पुलिस अधिकारियों के रहस्योदघाटन नागरिकों का सिर्फ मनोबल ही कम कर रहे हैं।
ऐसे रहस्योद्घाटनों के बाद जम्मू शहर को असुरक्षित तथा खतरों से भरा माना जा रहा है। दरअसल, शहर दो वर्ग किमी क्षेत्र के भीतर बसा हुआ है और सभी प्रकार की महत्वपूर्ण इमारतें, संवेदनशील भवन तथा सुरक्षा एजेंसियों के कार्यालय भी इसी परिधि में हैं। पुलिस मुख्यालय, पुलिस नियंत्रण कक्ष, नागरिक सचिवालय, विधानसभा इमारत, अफसरों के निवास, वायुसैनिक हवाई अड्डा तथा रेलवे स्टेशन भी इसी परिधि में आते हैं।
नतीजतन इन इमारतों के आसपास रहने वालों के दिलों में डर समा गया है। इसमें सुरक्षाधिकारियों के बयानों ने भी बढ़ोतरी की है, जो यह अवश्य कह रहे हैं कि ‘दरबार’ के साथ ही आतंकवाद का स्थानांतरण जम्मू शहर की ओर हो गया है। हालांकि सर्दियों में ऊपरी क्षेत्रों में बर्फबारी के कारण आतंकी वैसे भी मैदानी इलाकों में आ जाते हैं और उनके साथ ही मैदानी इलाकों में गतिविधियां पिछले कई सालों से बढ़ रही हैं।
...और इधर कश्मीर वालों को डर : कश्मीरियों की आशंका के माहौल के बीच केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर की शीतकालीन राजधानी जम्मू में सोमवार सुबह ‘दरबार’ सज गया। अब छह महीने के लिए नागरिक सचिवालय व अन्य मूव कार्यालय जम्मू में ही काम करेंगे।
लेकिन, इस बार दरबार को लेकर कई प्रकार की चर्चाएं और अफवाहें आशंका का माहौल भी पैदा कर रही हैं। पहले अफवाह यह थी कि यह श्रीनगर में ही रहेगा और अब कश्मीरियों को यह अफवाह चिंता में डाले हुए है कि क्या गर्मियों की शुरुआत में दरबार अपनी परंपरा को कायम रखेगा।
दरबार मूव की प्रक्रिया एक 100 वर्ष से भी ज्यादा पुरानी है, लेकिन इस बार खास यह है कि केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर बनने के बाद सरकार का पहला दरबार खुला है। उपराज्यपाल जीसी मुर्मू सुबह साढ़े नौ बजे के करीब सचिवालय पहुंचे। उन्हें गार्ड आफ ऑनर दिया गया।
दरबार खुलने को देखते हुए सचिवालय के आसपास और अन्य जगहों पर सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए हैं। हालांकि आज किसी विपक्षी पार्टी का कोई जम्मू बंद नहीं है, लेकिन कुछ संगठनों ने विरोध प्रदर्शन की तैयारी की है। दरबार खुलने पर जम्मू में कोई तामझाम इसलिए नजर नहीं आया क्योंकि इस समय विधानसभा नहीं है।
जम्मू कश्मीर में दरबार मूव की प्रक्रिया वर्ष 1872 में महाराजा रणबीर सिंह के शासनकाल में शुरू हुई थी। महाराजा रणबीर सिंह ने बेहतर प्रशासनिक व्यवस्था के लिए दरबार को छह महीने श्रीनगर और छह महीने जम्मू में रखने की प्रथा शुरू की थी।