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Last Updated : सोमवार, 27 फ़रवरी 2023 (14:35 IST)

उत्तराखंड की राजनीति में बन सकते हैं 2 'पॉवर सेंटर'

वापसी के बाद बोले कोश्यारी- हम उत्तराखंड में आत्मनिर्भरता का माहौल नहीं बना सके

उत्तराखंड की राजनीति में बन सकते हैं 2 'पॉवर सेंटर' - Conversation with Maharashtra Governor Bhagat Singh Koshyari
महाराष्ट्र के पूर्व राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी अपने मूल राज्य उत्तराखंड लौट आए हैं। उत्तराखंड लौटने पर उनके समर्थकों का उनके निवास पर तांता लगा हुआ है। उनके आगे के कदमों को लेकर राजनीतिकों की नजर लगी हुई है। उन्होंने सार्वजनिक रूप से हालांकि राजनीति में लौटने में अरुचि दिखाई है, लेकिन उनके समर्थकों को उम्मीद अब भी है कि केंद्र उनके समर्थन और उनकी योग्यता का सम्मान कर देर-सबेर उनको राज्य में महत्‍वपूर्ण भूमिका देगा।

हालांकि वर्तमान में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के रूप में उनके ही राजनीतिक शिष्य उत्तराखंड को चला रहे हैं। धामी समर्थकों का कहना है कि उनकी प्रदेश वापसी से धामी को सरकार चलाने में सहायता ही मिलेगी, लेकिन कुछ लोग उनकी वापसी को प्रदेश में पावर के 2 सेंटर बनने की गुंजाइश के रूप में भी देख रहे हैं, लेकिन कोश्यारी लगातार कह रहे हैं कि वे अब राजनीति में सक्रिय नहीं होना चाहते। प्रदेश में सरकार से नाराज आंदोलनकारी और कर्मचारी जिस तरह से सरकार की शिकायत उनसे करने पहुंच रहे हैं, उससे भी प्रदेश की राजनीति गरम है। उनके देहरादून लौटने के बाद उनके स्वागत में उमड़ी भीड़ के बीच 'वेबदुनिया' की उनसे हुई बातचीत के अंश :

आपके राज्यपाल के कार्यकाल के बीच ही आपके इस्तीफे की वजह क्या रही?
मैंने प्रधानमंत्री के कहने पर राज्यपाल का दायित्व ग्रहण किया था। उससे पूर्व साल 2019 के लोकसभा चुनावों में मैंने चुनाव न लड़ने और राजनीति से विश्राम की घोषणा की थी, क्योंकि मैं उससे पहले की लोकसभा में सांसद था तो मैंने नए लोगों को मौका देने की खातिर ये कहा था। मेरी बात को केन्द्रीय नेतृत्व ने माना लेकिन चुनाव के बाद उन्होंने मुझे गवर्नर की जिम्मेदारी दी।

जब गवर्नर रहते हुए मुझे लगा कि हमारे प्रधानमंत्री चौबीस घंटे में से बीस घंटे तक काम कर लोगों की सेवा में जुटे हुए हैं तो मैंने पाया कि मैं कम से कम 18 घंटे तब भी काम करूं, लेकिन इतना योगदान करने में स्वयं को असमर्थ पा रहा हूं तो मैंने ये बात प्रधानमंत्री को बताई। उनके सम्मुख अपने इस्तीफे की बात रखी तो उन्होंने मुझे कहा कि वे इस बात को रख दें, मैं इस पर विचार करूंगा।उसके बाद मुझे वहां से छोड़ने की अनुमति मिल गई।

प्रदेश की राजनीति में क्‍या एक बार फिर सक्रिय होने की योजना है?
मैंने इस्तीफा राजनीति में उतरने को नहीं दिया बल्कि मैं अब कुछ समाज सेवा करने का इच्छुक हूं। समाज के उत्थान के लिए तमाम सक्रिय लोगों को एक अम्ब्रेला के तले एकत्रित करके सबका उपयोग उत्तराखंड के विकास और उत्थान के लिए करने की कोशिश करूंगा। आत्मनिर्भर उत्तराखंड बनाने के लिए बाहर रह रहे लोगों को प्रेरित कर नए युवाओं को इस ओर प्रेरित करके एक माहौल तैयार कर उत्तराखंड राज्य को आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश में योगदान करने की कोशिश करूंगा। फलोत्पादन और उद्यानीकरण के अलावा और भी जो संभावनाएं हैं, उनकी तरफ फोकस किया जाएगा।

लोगों की भीड़ जिस तरह आपके चारों तरफ है और वे आपसे ये उम्मीद रख रहे हैं कि शायद आप ही उनकी रहनुमाई कर उनको सत्ता के बेहतर विकल्प के रूप में सामने आएंगे। इस पर कैसे उनकी उम्मीद पूरी करेंगे?
ये लोगों का स्नेह, प्रेम है, जो मुझे हमेशा मिलता रहा है। लोगों से मिलना-जुलना मेरी हॉबी रही है। लोग भी मुझसे जुड़े रहना चाहते हैं।लोगों के बीच जाना और सरकारी दायित्व निभाते हुए काम करने में बड़ा अंतर है। सरकारी पद पर रहने के चलते आपकी सरकार के प्रति जिम्मेदारी होती है लेकिन समाज के बीच रहने पर आप समाज के लिए उत्तरदायी होते हैं।

पिछले बीस-बाईस सालों में हम उत्तराखंड में आत्मनिर्भरता का माहौल नहीं बना सके। अब इस दिशा में काम करने की जरूरत है, लोग स्वत: प्रेरित होकर ऐसे काम में जुड़ भी रहे हैं।हमारे पड़ोसी हिमाचल प्रदेश को देखें तो वहां हमारे मुकाबले पलायन कम है, लोग खेती-बागवानी से जुड़े हैं, लेकिन उत्तराखंड में अब भी बाहर निकलकर छोटी-मोटी नौकरी पर निर्भरता बनी हुई है, इस ट्रेंड को बदलने की जरूरत है, ताकि अलग राज्य का मकसद हासिल हो।

भविष्य को लेकर आपकी क्या योजना है? आगामी लोकसभा चुनावों की फिजा का माहौल बीजेपी के पक्ष में करने के लिए क्या आप प्रदेश का दौरा करेंगे?
मैं तो कल से ही प्रदेश के दौरे में जाना चाहता हूं। कुछ आवश्यक काम निपटाने के बाद पूरे प्रदेश में लोगों के बीच जाऊंगा। लोकसभा के लिए भी कोशिश तो करूंगा ही।पूरे देश में जैसे एक नेतृत्व को लेकर माहौल बना है उसका विस्तार करने की मेरी कोशिश भी रहेगी। आज जो नेतृत्व हमारे पास है उसकी नीतियों को प्रदेश के लोगों के बीच पहुंचाना जरूरी है।

महाराष्ट्र में आपके बयानों को लेकर जिस तरह विपक्ष ने विवाद खड़ा किया। क्‍या आपको लगता है कि उन विवादों से बच सकते थे या विवादों को बेवजह हवा दे दी गई?
विवाद तो बेवजह ही खड़ा किया गया, मैंने कोई ऐसी बात नहीं बोली, न ही किसी का अपमान किया। मैं सावित्री बाई फुले और छत्रपति शिवाजी के लिए कभी सपने में भी अपमान की बात नहीं सोच सकता।मैं आरएसएस का स्‍वयंसेवक रहा हूं, आरएसएस में शिवाजी, सावित्री बाई फुले, महात्मा फुले को लेकर कितना कुछ हमें सिखाया जाता है, ये देश को मालूम है।

क्या मैं ऐसा कर सकता हूं, अगर मैं ऐसा होता तो मैंने शिवाजी की जन्मभूमि शिवनेरी का पैदल दौरा नहीं किया होता।जहां लोग हेलीकॉप्‍टर से जाते हैं। मैं खुद पैदल चलकर इसलिए गया, क्योंकि मेरे मन में उनके प्रति अपार श्रद्धा रही।मैं जीजाबाई के जन्म स्थान भी गया। मैंने महाराष्ट्र के सभी जिले में जाकर लोगों की समस्याओं को आत्मसात किया।जिस तरह मुझे उत्तराखंड के लोगों का प्यार मिलता है, उसी तरह महाराष्ट्र की जनता ने भी मुझे अपार प्यार और स्नेह दिया। मैं उनके आराध्य को कैसे भूल सकता हूं। जहां तक विवादों की बात है, बात का बतंगड़ तो राजनेता बनाते ही रहे हैं।

आपके देहरादून पहुंचते ही तमाम लोग आपको यहां की सरकार से नाराजगी जताते ज्ञापन थमाने आ रहे हैं, क्या आपको लगता है कि सरकार के प्रति यहां लोगों की नाराजगी है?
सरकार सभी को खुश कहां कर पाती है। लोगों की जो समस्याएं हैं, मुख्यमंत्री उसको सूझबूझ से निपटा रहे हैं लेकिन कुछ मामले निस्तारित करने में समय लगता है। किसी के पास अलादीन का चिराग तो है नहीं। लोगों की नाराजगी के सेफ्टी वाल्व  के रूप में अगर मैं उनकी किसी नाराजगी को दूर कर सकता हूं तो मैं इसकी कोशिश जरुर करूंगा।कई सराहनीय कदम सरकार ने लिए हैं।उनका लाभ प्रदेश को होगा।

जब आप राजनीति में आए तब से लेकर आज की राजनीति में क्या अंतर देखते हैं?
राजनीति का रास्ता तो टेढ़ा-मेढ़ा होता है। पहले जब मैं राजनीति में आया त‍ब खादी पहने हुए नेता की इज्जत होती थी, उनके प्रति एक सम्मान ठीक वैसे होता था जैसे किसी सैनिक को ड्रेस में देखने से मन में सम्मान जागता है। सन् 1967 के बाद स्थितियां बदलीं, सरकारें बनीं धीरे-धीरे राजनीति ने अंगड़ाई ली।पिछले आठ साल से मोदी जी जैसे विशाल नेतृत्व के साथ हम पूर्ण बहुमत से केंद्र की सरकार में हैं।

लोगों को लगता है कि आज देश को लेकर समर्पित राजनीति के केंद्रबिंदु मोदी जी बन गए हैं, लोग खुश हैं। मोदी जी दुनिया के आज तक के नेताओं में सबसे लोकप्रिय नेता हैं।भारत माता की जो संकल्पना हमारी थी, उस दिशा में देश को आगे बढ़ाकर वे विश्व में विश्वगुरु का सम्मान हासिल करने की तरफ बढ़ रहे हैं। देश ही नहीं विदेशों में बसे लोग भी उनकी ओर आशाभरी निगाह से देख रहे हैं।

उत्तराखंड के आंदोलनकारी के रूप में क्या आप राज्य की प्रगति और इसकी दशा-दिशा से खुश हैं?
उत्तराखंड का दुर्भाग्‍य ये रहा है कि बार-बार यहां मुख्यमंत्री बदलते रहे।नवंबर 2000 में जब राज्य बन रहा था तो तत्कालीन गृहमंत्री और उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने मुझको बुलाकर एक दिन कहा कि भगत सिंह तू राज्य तो बना रहा है, लेकिन छोटे राज्य की कुछ बहुत बड़ी समस्याएं भी होती हैं।

स्वाभाविक है कि कुछ सही हुआ, कुछ अब हो रहा है, धीरे-धीरे सत्ता में स्थायित्व आ रहा है।मुझे लगता है कि साल 17 के बाद दुबारा 22 में हमारी सरकार लौटी है तो अब काम कुछ आगे बढ़ेंगे।सरकार किसी की भी हो, सही दिशा मिलनी चाहिए। आज तो पीएम का ध्यान इस राज्य पर विशेष रूप से लगा रहता है। इसका लाभ इस राज्य को मिल रहा है जो हम उत्तराखंड के निवासियों के लिए सौभाग्य की बात है।
Edited By : Chetan Gour
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