उत्तरप्रदेश के सोनभद्र में जमीनी विवाद में हुए नरसंहार के पीड़ितों से मिलने के लिए कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने जिस तरह सूबे की योगी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला, उससे अब जहां कांग्रेस कार्यकर्ताओं में नए जोश और उत्साह का संचार हो गया है।
अब सोशल मीडिया से लेकर सियासी गलियारों में इस बात की चर्चा तेज हो गई है कि क्या प्रियंका अपनी दादी इंदिरा गांधी के पदचिन्हों पर सियासत की सीढ़ियां चढ़ रही हैं।
प्रियंका गांधी के लगभग 24 घंटे के धरने के बाद आखिरकार यूपी सरकार को झुकना पड़ा और प्रशासन को नरसंहार के कुछ पीड़ितों से मुलाकात करानी पड़ी। जिस तरह प्रशासन को प्रियंका की आगे झुकना पड़ा उसे कांग्रेस की एक बड़ी जीत माना जा रहा है। लोकसभा चुनाव के बाद पिछले 50 दिनों से एक तरह मृतप्राय कांग्रेस को नई ऊर्जा मिली है।
इंदिरा से प्रियंका की तुलना का क्या असर? : सोनभद्र पर प्रियंका के छेड़े गए संगाम के बीच सोशल मीडिया पर उनकी अपनी दादी के साथ तुलना की जाने वाली कई फोटो शेयर की जाने लगी है।
ऐसी ही एक तस्वीर 1977 की जिसमें बिहार के बेलछी में नरसंहार के बाद इंदिरा गांधी पीड़ितों से मिलने हाथी पर सवार होकर पहुंची थीं, उस वक्त इंदिरा गांधी की हाथी पर बैठी फोटो देश-विदेश में काफी सुर्खियों में रही थी।
यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी की जीवनी लिखने वाले जेवियर मोरो ने अपनी किताब में इस पूरी घटना का जिक्र किया है। इस तरह सोशल मीडिया पर यूजर्स प्रियंका और इंदिरा गांधी की धरने पर बैठी फोटो शेयर कर रहे हैं।
इस फोटो के जरिए यूजर्स प्रियंका को दादी की तरह बता रहे हैं। सोशल मीडिया पर जो फोटो पोस्ट की जा रही है उसमें इंदिरा गांधी लाल साड़ी में जमीन पर धरने पर बैठी दिखाई दे रही हैं, वहीं दूसरी तस्वीर मिर्जापुर में प्रियंका गांधी के धरने की है, लेकिन सवाल यहीं उठ रहा है कि क्या राजनीति का ककहरा सीख रहीं प्रियंका की तुलना इंदिरा गांधी से की जानी चाहिए और अगर की जा रही है तो उसका क्या असर होगा।
इस पूरे घटनाक्रम को उत्तरप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि इंदिरा का दौर अलग था और आज का दौर अलग है। इंदिरा गांधी के पिता नेहरू एक विजनरी लीडर थे और इसका असर उनकी छवि में भी देखने को मिलता है।
इंदिरा गांधी से तुलना पर कहते हैं कि प्रियंका ने सोनभद्र से जो संघर्ष शुरू किया है वह कितना दूर जाएगा इसको देखना होगा। एक घटना से यह नहीं तय किया जा सकता कि वे इंदिरा गांधी के समान लीडरशिप वाली नेता हैं इसको भविष्य तय करेगा।
इंदिरा से प्रियंका की तुलना पर मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार डॉक्टर राकेश पाठक कहते हैं कि यह तो साफ है कि प्रियंका गांधी में लोग इंदिरा गांधी की छवि देखते हैं और सोनभद्र मामले पर जिस तरह उन्होंने संघर्ष की मंशा दिखाई है वह निश्चित तौर पर पार्टी को एक नई दिशा देने में मदद करेगा, लेकिन डॉक्टर राकेश पाठक कहते हैं कि इंदिरा गांधी से तुलना करने से खतरा इस बात का है कि भारतीय राजनीति में वंशवाद जिस तरह खारिज हुआ है।
इस कारण बार-बार उनमें इंदिरा गांधी की छवि की बात करना फिर वंशवाद की याद दिलाएगा। वे कहते हैं कि प्रियंका जिस तरह सड़क पर उतकर संघर्ष कर रही हैं, वह कांग्रेस को पुनर्जीवित करने का सबसे बेहतर उपाय है।