30 साल पुराने भाजपा–शिवसेना गठबंधन के टूटने का क्या होगा असर?
महाराष्ट्र में भाजपा- शिवसेना की 30 साल पुरानी दोस्ती अब खत्म हो चुकी है, NDA का सबसे पुराना साथी अब बिछुड़ चुका है। विधानसभा चुनाव के बाद मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर भाजपा और शिवसेना में जो खींचतान मची थी उसके बाद अब दोनों पार्टियां अलग अलग रास्ते पर आगे बढ़ गई है। शिवसेना कोटे से मोदी सरकार में मंत्री अरविंद सावंत ने इस्तीफा देने काे साथ ही गठबंधन के टूटने का एलान कर दिया है।
कैसे टूटा 30 साल पुराना गठबंधन? - भाजपा के साथ गठबंधन टूटने की सबसे बड़ी और एकमात्र वजह शिवसेना का मुख्यमंत्री पद पर अड़े रहना है। यह भी दिलचस्प हैं कि शिवसेना ने अपने संस्थापक बाला साहेब ठाकरे के सपने को पूरा करने के लिए उन्हीं के बनाए गए तीस साल पुराने गठबंधन को तिलांजलि दे दी है। बकौल शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे उन्होंने अपने पिता बाला साहेब ठाकरे के साथ वादा किया था कि एक दिन महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री शिव सैनिक बनेगा।
30 साल पुराने भाजपा और शिवसेना के गठबंधन में कई ऐसे मौके आए जिसमें दोनों के बीच खींचतान दिखाई दी लेकिन गठबंधन नहीं टूटा। 2012 में शिवसेना संस्थापक बाल ठाकरे के निधन के बाद हुए 2014 के विधानसभा में शिवसेना और भाजपा ने चुनाव से पहले गठबंधन नहीं हो पाया और दोनों ही पार्टियां अलग –अलग चुनावी मैदान में उतरी, हलांकि बाद में महाराष्ट्र में दोनों ही दलों के गठबंधन की सरकार बनी।
इस बार महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव से पहले भी दोनों पार्टियों के बीच मनमुटाव दिखाई दिया लेकिन भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के हस्तक्षेप के बाद दोनों ने एक साथ चुनाव लड़ा लेकिन साथ लड़ने वाली भाजपा और शिवसेना मुख्यमंत्री को लेकर ऐसी भिड़ी कि दोनों के रास्ते अब अलग - अलग हो गए।
मोदी-शाह की अजेय रणनीति को बड़ा झटका – महाराष्ट्र में भाजपा और शिवसेना के गठबंधन का टूटना भाजपा के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। तीस साल पुराने गठबंधन के टूटने से भाजपा पूरी तरह बैकफुट पर नजर आ रही है। वरिष्ठ पत्रकार शिवअनुराग पटैरिया कहते हैं कि महाराष्ट्र में भाजपा और शिवसेना के बीच गठबंधन टूटना भाजपा के लिए बड़ा झटका है। गठबंधन टूटने के लिए वह दोनों पार्टियों की महत्वाकांक्षा को जिम्मेदार मानते है। शिवअनुराग पटैरिया कहते हैं कि भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व मुख्यमंत्री पद को लेकर हुए विवाद को सुलझाने में पूरी तरह फेल नजर आया।
वह कहते हैं कि मुख्यमंत्री पद पर अड़ी शिवसेना नितिन गडकरी के के नाम पर शायद मान जाती लेकिन भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को यह मंजूर नहीं था। वह कहते हैं कि इस गठबंधन के साथ वह भ्रम भी टूट गया है जिसमें मोदी और शाह की रणनीति को अजेय माना जाता था।
वह कहते हैं कि महाराष्ट्र में शिवेसना और एनसीपी का गठबंधन भाजपा की जड़ों में मट्ठा डाले का काम करेगा। अगर भाजपा को अपने इस सबसे पुराने सहयोगी को बचाए रखना था तो उसे सम्मान करना चाहिए और बड़े भाई की तरह व्यवहार करना चाहिए था जो वह नहीं कर सकी।
अन्य राज्यों पर भी पड़ेगा असर – शिवसेना के साथ भाजपा के गठबंधन टूटने का आने वाले समय सियासत पर क्या असर पड़ेगा इस सवाल पर शिवअनुराग पटैरिया कहते हैं कि आने वाले समय क्षेत्रीय दल भाजपा पर और दबाव बनाएंगे। आने वाले समय बिहार जैसे राज्य जहां भी भाजपा - जेडीयू के साथ गठबंधन के तौर पर सरकार में शामिल वह भाजपा पर सीटे बंटवारे में काफी दबाव बनाएंगे।
वह कहते हैं शिवसेना और भाजपा के गठबंधन का टूटना उस अश्वमेज्ञ घोड़े का एक तरह से रुक जाना है जो इन दिनों पूरे देश में दौड़ रहा था। शिवसेना के अलग हो जाने से एनडीए गठबंधन में एक बड़ी दरार पड़ गई है जो आने वाले समय में और बड़ी हो सकती है।