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Last Updated : रविवार, 12 सितम्बर 2021 (13:14 IST)

बैक्टीरियल बायोफिल्म के विरुद्ध शोधकर्ताओं ने विकसित किया ग्राफीन नैनो-कम्पोजिट

बैक्टीरियल बायोफिल्म के विरुद्ध शोधकर्ताओं ने विकसित किया ग्राफीन नैनो-कम्पोजिट - antimicrobial resistance  non-toxic, antibacterial, antibiofilm
नई दिल्ली, हमारे दांतों पर जमी परत, मछली से भरे टैंक की दीवारों पर लिसलिसा पदार्थ और जहाजों की संरचना पर जमी परत बायोफिल्म या जैविक परत के कुछ उदाहरण हैं।

बैक्टीरियल बायोफिल्म, चिकित्सा उपकरणों के दूषित होने और शरीर में माइक्रोबियल एवं पुराने संक्रमणों की उत्पत्ति का एक प्रमुख कारण है। वास्तव में, बायोफिल्म कई मानव रोगों के स्रोत माने जाते हैं, क्योंकि वे गंभीर संक्रमण का कारण बनते हैं, और उनमें दवाओं के खिलाफ प्रतिरोधी गुण भी होते हैं।

हाल के वर्षों में, कई अध्ययनों से पता चला है कि अपने विशिष्ट भौतिक रासायनिक और जीवाणुरोधी गुणों के साथ नैनो-मैटेरियल्स सूक्ष्म जीवों के प्रसार की श्रृंखला को तोड़ सकते हैं, और विभिन्न तंत्रों के माध्यम से बायोफिल्म संरचनाओं को नियंत्रित कर सकते हैं। लेकिन, मानव उपयोग के लिए यह आवश्यक है कि ऐसे नैनो-मैटेरियल्स को विषाक्त नहीं होना चाहिए।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) रुड़की द्वारा इनक्यूबेटेड, बेंगलूरू स्थित स्टार्ट-अप लॉग 9 मैटेरियल्स के शोधकर्ताओं ने गैर-विषैले और हाइड्रोफोबिक नैनो-मैटेरियल्स, ग्राफीन नैनो-प्लेटलेट्स (GNP) का उपयोग करके एक जीवाणुरोधी और एंटी-बायोफिल्म कम्पोजिट विकसित किया है। शोधकर्ताओं का कहना है कि इसे आसान और हरित हाइड्रोथर्मल तकनीक के माध्यम से विकसित किया गया है।

परीक्षण में, इस नये विकसित नैनो-कम्पोजिट में प्रभावी जीवाणुरोधी गुण पाए गए हैं। नैनो-कम्पोजिट, जिसमें ग्राफीन नैनो-प्लेटलेट्स-टैनिक एसिड-सिल्वर (GNP-TA-Ag) शामिल है, की 64 माइक्रोग्राम/ एमएल जितनी कम सांद्रता को ग्राम-नेगेटिव बैक्टीरिया, एशेरिकिया कोलाई के खिलाफ असरदार पाया गया है, जबकि ग्राम-पॉजिटिव बैक्टीरिया स्टैफिलोकॉकस ऑरियस के खिलाफ 128 माइक्रोग्राम / एमएल मात्रा को बैक्टीरिया वृद्धि रोकने में प्रभावी पाया गया है।

जब इस ग्राफीन कम्पोजिट आधारित एपॉक्सी कोटिंग को ग्लास की अंतर्निहित परत पर लगाया गया, तो स्टैफिलोकॉकस ऑरियस के मेथिसिलिन स्ट्रेन के खिलाफ 97 प्रतिशत से अधिक बायोफिल्म-प्रतिरोधी प्रभाव दर्ज किया गया।

बायोफिल्म; बैक्टीरिया के एक सुव्यवस्थित समुदाय में पायी जाने वाली एक प्रकार की जीवन शैली है, जिसमें बैक्टीरिया एक-दूसरे से, और अन्य सतहों से चिपके रहते हैं। सूक्ष्मजीव विज्ञानी अब यह जान चुके हैं कि बैक्टीरिया एक-कोशिकीय जीवन शैली के साथ-साथ बहु-कोशिकीय शैली भी अपनाते हैं। बायोफिल्म इसी बहु-कोशिकीय जीवन शैली का एक उदाहरण है।

यह कोशिकाओं के बीच संचार की एक जटिल प्रणाली है, जिसमें कुछ विशिष्ट जीन्स को नियंत्रित किया जाता है। बैक्टीरियल बायोफिल्म एंटीबायोटिक दवाओं का प्रतिरोध करने, प्रतिरक्षा प्रणाली और अन्य बाहरी तनावों से बचे रहने के लिए जाने जाते हैं। बायोफिल्म एक गंभीर वैश्विक स्वास्थ्य चिंता का विषय है, क्योंकि रोगाणुरोधी प्रतिरोध के कारण दुनिया भर में हर साल लगभग एक करोड़ मौतें होती हैं।

नमी वाले इनडोर स्थानों पर बायोफिल्म के प्रभाव की स्थिति अधिक पायी जाती है। इसकी कॉलोनियां या एक प्रकार की जीवाणु कोशिकाएं जैविक या अजैविक सतहों से चिपकी रहती हैं, और वे बाह्य कोशिकीय बहुलक पदार्थों से बने मैट्रिक्स में अंतर्निहित हो जाती हैं।

बायोफिल्म की परत अक्सर ऐसी स्थायी सतहों पर बनती है, जिनके संपर्क में हम अक्सर आते हैं, जिसमें अस्पताल, स्वास्थ्य केंद्र, स्विमिंग पूल, पानी की टंकी, जल उपचार संयंत्र आदि शामिल हैं। इसीलिए ये आसानी से संक्रमण फैला सकते हैं। इनमें अस्पताल से प्राप्त संक्रमण सबसे खतरनाक हैं, क्योंकि अस्पतालों में मल्टी ड्रग-प्रतिरोधी - बैक्टीरियल बीमारियों की अत्यधिक उच्च घटनाओं को देखा गया है।

यह अध्ययन सेंटर फॉर सेल्युलर ऐंड मॉलिक्यूलर प्लेटफॉर्म्स (C-CAMP)-बायोटेक्नोलॉजी इग्निशन ग्रांट (BIG) के अनुदान पर आधारित है। C-CAMP, जैव प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार द्वारा समर्थित पहल है, जिसके अंतर्गत वर्ष 2009 से जीवन-विज्ञान में अत्याधुनिक अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा दिया जा रहा है। C-CAMP ने बायोटेक्नोलॉजी इग्निशन ग्रांट (BIG) योजना के लिए जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद (BIRAC) के साथ भागीदारी की है, जो युवा कंपनियों और व्यक्तियों को जीवन-विज्ञान के क्षेत्र में उनके प्रभावी विचारों के लिए प्रूफ-ऑफ-कॉन्सेप्ट डेटा स्थापित करने के लिए फंड करती है।

इस अध्ययन को शोध पत्रिका प्रोग्रेस इन ऑर्गेनिक कोटिंग्स में प्रकाशित किया गया है। शोधकर्ताओं में आईआईटी रुड़की के इंद्रानील लहिरी एवं अक्षय वी. सिंघल, और लॉग 9 मैटेरियल्स साइंटिफिक प्राइवेट लिमिटेड की शोधकर्ता दीपिका मलवाल एवं शंकर त्यागराजन शामिल थे। (इंडिया साइंस वायर)
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