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Last Modified: सोमवार, 17 अप्रैल 2023 (20:56 IST)

Kuno National Park: कूनो से फिर बाहर निकला 5 साल चीता ओबन

Kuno National Park: कूनो से फिर बाहर निकला 5 साल चीता ओबन - 5-year-old Cheetah Oban came out of the kuno again
भोपाल। मध्यप्रदेश के श्योपुर जिले में कूनो राष्ट्रीय उद्यान (KNP) से नर चीता ओबन एक बार फिर भटक गया है। अधिकारियों के मुताबिक इससे पहले भी केएनपी से बाहर निकलने के कुछ दिन बाद उसे बेहोश करके वापस केएनपी लाया गया था।
 
एक अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि पांच वर्षीय ओबन रविवार से केएनपी से बाहर है और पड़ोसी जिले शिवपुरी के वन मंडल में है। केएनपी का मुख्य क्षेत्र 748 वर्ग किलोमीटर है और इसके आसपास 487 वर्ग किलोमीटर का इलाका बफर जोन है।
 
उन्होंने कहा कि यह इंसानों के लिए खतरा नहीं है और न ही इंसान इसके लिए खतरा पैदा करते हैं, इसलिए इसे वापस लाने के लिए बेहोश करने की जरूरत नहीं है। इसकी गतिविधियों पर कड़ी नजर रखी जा रही है।
 
केएनपी के निदेशक उत्तम शर्मा ने बताया कि ओबन पूरी तरह सुरक्षित है, लेकिन उन्होंने इसकी मौजूदा स्थिति के बारे में जानकारी साझा करने से इनकार कर दिया।
 
नामीबिया से 17 सितंबर को लाए गए 8 चीतों में से एक ओबन दो अप्रैल को भी केएनपी से भटक गया था और 6 अप्रैल को शिवपुरी के बैराड़ से इसे पकड़ा गया था।
 
हम सीख रहे हैं : यह पूछे जाने पर कि क्या ओबन की इस हरकत से केएनपी में इन जानवरों के लिए लिए जगह की कमी का संकेत है, इस पर शर्मा ने कहा कि यह देखते हुए कि वे भारत में सात दशक से अधिक समय पहले विलुप्त हो गए थे, वास्तव में कोई भी नहीं जानता कि एक चीते को कितनी जगह की जरूरत है। नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से उनको यहां लाए जाने के बाद में हम उनके बारे में सीख रहे हैं।
 
जंगल में एक पूर्ण जीवन जीने के लिए चीतों द्वारा आवश्यक स्थान पर कुछ विशेषज्ञों की टिप्पणियों को खारिज करते हुए, शर्मा ने कहा कि विशेषज्ञों ने दावा किया था कि चीता कैद में प्रजनन नहीं कर सकते हैं, लेकिन वे गलत साबित हुए क्योंकि सियाया ने केएनपी में मार्च में चार शावकों को जन्म दिया।
 
नामीबिया से 8 चीतों को 17 सितंबर को केएनपी लाया गया था, वहीं इस साल 18 फरवरी को दक्षिण अफ्रीका से 12 चीतों का दूसरा जत्था लाया गया। इनमें से एक की किडनी की समस्या के चलते मौत हो गई। देश के आखिरी चीते की मृत्यु वर्तमान छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले में 1947 में हुई थी और इस प्रजाति को 1952 में विलुप्त घोषित कर दिया गया था। (भाषा)
 
 
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