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Written By सुरेश एस डुग्गर
Last Updated : बुधवार, 25 नवंबर 2020 (14:25 IST)

Ground Report : सीजफायर के 17 साल, पाक गोलाबारी से सतपाल भी परेशान है और सलमान भी...

Ground Report : सीजफायर के 17 साल, पाक गोलाबारी से सतपाल भी परेशान है और सलमान भी... - 17 years of cease fire
जम्मू। पाकिस्तान से सटी सीमाओं पर 26 नवंबर 2003 की अर्धरात्रि लागू हुए सीजफायर ने 32 लाख के करीब सीमावासियों को जो खुशी आज से 17 साल पहले दी थी वह अब काफूर होने लगी है। माना कि सीमाओं पर जारी सीजफायर प्रतिदिन दो बार गोलों की बरसात के साथ अपने 17 साल पूरे कर गया है, लेकिन सीमाओं पर बनते-बिगड़ते हालात के बीच अब यह उन नागरिकों को खुशी से वंचित करने लगा है, जिन्होंने बंदूकों के मुंह शांत होते ही फिर से सीमांत इलाकों में अपना रैन-बसेरा बसाना आरंभ किया था।
 
पल्लांवाला का रमेश पिछले कुछ दिनों से परेशान है। ऐसी ही परेशानी से अब्दुल्लियां का सतपाल भी जूझ रहा है। बल्लड़ इलाके के दयाराम को अपने खेतों की चिंता है। सबकी परेशानी के लिए अब उसी सीजफायर को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है, जिसकी सलामती की दुआएं वे किया करते थे। कारण स्पष्ट है। पाक सेना सीजफायर की आड़ में सीमा पर अपनी स्थिति मजबूत करते हुए अब भारतीय पक्ष पर हावी होने की कोशिश में है।
 
वह आतंकियों को इस ओर किसी भी हालात में धकेलने पर उतारू है। नतीजतन सीजफायर उल्लंघन की घटनाएं दिनोदिन बढ़ती जा रही हैं। सीजफायर के 17 सालों के अरसे में होने वाली 12000 से अधिक उल्लंघन की घटनाएं अक्सर सीजफायर के जारी रहने पर सवालिया निशान लगा देती हैं। साथ ही सीमांत इलाकों के किसानों व अन्य नागरिकों के माथे पर चिंता की लकीरें।
 
198 किमी लंबी अंतरराष्ट्रीय सीमा और 814 किमी लंबी एलओसी से सटे इलाकों में बसने वाले 32 लाख के करीब सीमावासी दिन-रात बस एक ही दुआ करते हैं कि सीजफायर न टूटे। ‘हमने मुश्किल से अपना घर आबाद किया है और पाक सेना उसे मटियामेट करने पर उतारू है,’ पुंछ के डिग्वार का मुहम्मद असलम कहता था, जिसके दो बेटों को पहले ही सीमा पर होने वाली गोलीबारी लील चुकी है तथा सीजफायर से पहले उसके घर को कई बार पाक गोलाबारी नेस्तनाबूद कर चुकी है।
 
हालांकि आज सीजफायर के 17 साल पूरे हो चुके हैं पर इसके बने रहने पर सवाल अभी भी कायम है। ऐसे हालात के लिए पूरी तरह से पाक सेना को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, जो आतंकियों को इस ओर धकेलने के लिए अपनी कवरिंग फायर की नीति का इस्तेमाल एक बार फिर से करने लगी है।
 
इस पर टिप्पणी करते हुए सेनाधिकारी कहते हैं कि अगर पाक सेना ने इस रवैये को नहीं त्यागा तो भारतीय पक्ष भी करारा जवाब देने से हिचकिचाएगा नहीं। और यही सीमावासियों के लिए चिंता की लकीरें पैदा करने वाला है जो पिछले 17 सालों के अरसे में 70 साल के गोलियों के जख्मों का दर्द भुला चुके हैं तथा अब फिर घरों से बेघर होने की स्थिति में नहीं हैं।
 
एलओसी से सटे इलाकों में रहने वाले लाखों लोगों ने 60 सालों तक ऐसे हालात के साथ जीना सीख लिया था पर 264 किमी लंबे इंटरनेशनल बार्डर के लोगों के लिए यह किसी अचम्भे से कम नहीं है। ‘एक तो जम्मू सीमा इटरनेशनल बॉर्डर है, जहां इंटरनेशनल लॉ लागू होते हैं और दूसरा कहते हैं कि सीजफायर भी जारी है,’ हीरानगर का नरेश कहता था जो थोड़े दिन पहले हुई गोलाबारी में अपने परिवार के एक सदस्य को गंवा चुका है।
 
नरेश कहता है- ‘अगर इसे सीजफायर कहते हैं तो हमें इसकी जरूरत नहीं है। इससे भली जंग ही है जिसमें एक बार आर-पार हो जाए ताकि हमें भी पता चल जाए कि हमें जिन्दा रहना है या मर जाना है। हम रोज-रोज तिल-तिल कर मरने से तंग आ चुके हैं।’