Indias most wanted terrorist Dawood: ग्लोबली और विशेषकर भारत के लिए मोस्ट वांटेड अंडरवर्ल्ड माफिया दाऊद इब्राहीम कासकर की पाकिस्तान में मौत की खबरें हैं, लेकिन इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है। इस खबरों में कितनी सच्चाई है यह तो पाकिस्तान सरकार की आधिकारिक पुष्टि के बाद ही तय हो पाएगा। लेकिन, पाकिस्तान के पूर्व क्रिकेटर जावेद मियादांद के निवास के बाहर अचानक सख्त सुरक्षा प्रबंध करना शक को जन्म देता है। वे दाऊद के सगे समधी भी हैं।
वैसे तो दाऊद के मारे जाने की खबरें इससे पहले भी आ चुकी हैं। करीब तीन साल पहले भारत के कुछ अखबारों ने बांग्लादेश के मीडिया के हवाले से खबर छाप दी थी कि दाऊद मारा गया, लेकिन बाद में यह खबर मात्र एक अफवाह निकली। बता दें कि जब दुबई की तत्कालीन सबसे शानदार होटल हयात में दाऊद की बेटी का रिसेप्शन हुआ था, तब दाऊद भी उसमें शामिल होने के लिए कराची से आने वाला था। इसी खबर के आधार पर वर्तमान राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने दो शॉर्प शूटर के साथ दाऊद को वहीं ढेर करने की योजना बनाई थी। लेकिन ऐन वक्त पर दाऊद को इस योजना की खबर लीक कर दी गई, जिसके चलते दाऊद होटल हयात में आया ही नहीं और उसने ऑनलाइन ही बेटी का रिसेप्शन देखा।
यह जानकारी तो कई बार आ चुकी है कि दाऊद वो शख्स है, जिसने बाबरी मस्जिद ढहाने का कथित रूप से बदला लेते हुए 1993 में मुंबई में सीरियल बम विस्फोट कराए थे। इन विस्फोटों में करीब 300 लोग मारे गए थे और सैकड़ों घायल हुए थे। तब मीडिया में आई खबरों पर विश्वास करें तो इन आरडीएक्स से हुए धमाकों से स्कूल से लौटते हुए बच्चों के चीथड़े तक उड़ गए थे। ये धमाके मुंबई के भीड़भाड़ भरे इलाकों में किए गए थे। तभी मीडिया में खबरें आई थी कि इन धमाकों के मुख्य आरोपी दाऊद को कांग्रेस के एक तत्कालीन वरिष्ठ नेता ने रातों रात दुबई भगाने में मदद की थी। उक्त राजनेता महाराष्ट्र की राजनीति में आज भी सक्रिय हैं।
वरिष्ठ फौजदारी वकील स्वर्गीय राम जेठमलानी का यह कथन तत्कालीन मीडिया में जमकर वायरल हुआ था कि यदि दाऊद इब्राहीम को फांसी नहीं दी जाए तो मैं उसे भारत ला सकता हूं। बता दें कि राम जेठमलानी शरणार्थी के रूप में पाकिस्तान से भारत आए थे और स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी की केंद्र सरकार में कैबिनेट मंत्री के रूप में शामिल भी रहे। बाद में अटल जी ने इस अति विवादास्पद फौजदारी वकील और राजनेता से खुद इस्तीफा मांग लिया था।
मुंबई में डर, आतंक, दहशतगर्दी, ब्लड बाथ, गैंगवार, हफ्ता वसूली, सुपारी किलिंग, तस्करी, बॉलीवुड में पैसा लगाने, यहां तक कि अभिनेता-अभिनेत्रियों के नाम तक तय करने वाले दाऊद के संबंध राम तेरी गंगा मैली की हिरोइन मंदाकिनी से भी रहे बताए जाते रहें हैं, जो बाद में बेंगलुरू शिफ्ट हो गई।
एक ज़माने में छोटा राजन नामक एक अन्य अंडरवर्ल्ड माफिया से दाऊद के दोस्ताना संबंध बताए जाते रहे, मगर मुंबई बम धमाकों के बाद दोनों दोस्त एक दूसरे की जान के दुश्मन हो गए। कहा जाता रहा कि अपराधों की दुनिया में दाऊद को मुंबई के पहले माफिया माने जाने वाले हाजी मस्तान लाए थे। हाजी मस्तान के लिए दाऊद बचपन से ही खबरी और तस्करी का काम, जिसे तब पलटी कहा जाता था, का काम करता था। वास्तव में दाऊद के पिताजी इब्राहीम कासकर मुंबई पुलिस के बेहद ईमानदार पुलिसमैन माने जाते रहे। कहा जाता रहा कि जब उन्हें दाऊद की करतूतों का पता चला, तो एक दिन रात में उन्होंने दाऊद की खूब पिटाई की थी।
बताया यह भी जाता रहा है कि दाऊद के खिलाफ शिवसेना के संस्थापक स्वर्गीय बाल ठाकरे ने एक कथित हिंदू माफिया को खड़ा किया, जिसका नाम है अरुण गवली और जो मुंबई में डैडी के नाम से मशहूर है और आज भी वहीं की बस्ती दगड़ी चाल में रहता है। दाऊद की मुंबई में अवैध इमारतों और कब्जों के खिलाफ मुंबई महानगर निगम के तत्कालीन उपायुक्त एजी खेरनार ने निर्णायक बुलडोजर कार्रवाई की थी।
दाऊद का सबसे विश्वस्त साथी छोटा शकील माना जाता रहा है। कहा जाता रहा है कि सालों पहले दाऊद ने अपनी कई बार प्लास्टिक सर्जरी करवा रखी है, जिसके आधार पर आगरा समिट के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेई के सामने पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति स्वर्गीय परवेज मुशर्रफ ने दाऊद की तस्वीर को ही पहचानने से साफ साफ इंकार कर दिया था। एक पूर्व भारतीय सैन्य अफसर ने तो हिंदी के एक बड़े अखबार में अपने लेख में यहां तक लिख दिया था कि दरअसल कराची की सैन्य कालोनी में दाऊद के तीन आवास हैं।
उक्त अफसर ने यह भी लिखा था कि भारत के गुजरात प्रदेश में राजकोट से कराची की दूरी लगभग 500 किलोमीटर है और यदि राजकोट से निशाना साधकर कराची स्थित दाऊद के उक्त तीनों आवासों पर अग्नि मिसाइलें दागी जाएं तो मिनटों में दाऊद का खेल समाप्त हो सकता है। उसके बाद खबरें आईं कि अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत ऐसा किया जाना भारत के हित में नहीं होता। लगभग उन्हीं दिनों की बात है जब भारत के एक वरिष्ठ पत्रकार के दाऊद के निवास तक पहुंच जाने की खबरें उड़ी थीं, लेकिन उक्त इंटरव्यू नहीं हो पाया। दाऊद के कारनामों को समझने के लिए एक मुस्लिम पत्रकार द्वारा लिखी गई किताब काफी सहायक हो सकती है, जिसका टाइटल है डोंगरी टू दुबई।
विशेषज्ञ इस बात की भी पूरी संभावना जता रहे हैं, हो सकता है कि पाकिस्तान की हुकूमत जान बूझकर दाऊद के मारे जाने की खबर फिलहाल दबा रही हो। दुनिया भर में यह चलन है कि जब भी कोई चर्चित या विवादास्पद व्यक्ति मारा जाता है, तो देश की आंतरिक और बाहरी सुरक्षा सख्त कर दी जाती है। यह भी जाहिर हो चुका है कि दाऊद को पाकिस्तानी अवाम के एक बड़े हिस्से, फौज, तालिबान और कुछ अन्य मुस्लिम देशों का समर्थन मिला हुआ था।
पाकिस्तान की जासूसी संस्था आईएसआई के लिए भी कभी बहुत उपयोगी रहे दाऊद की कोई उपयोगिता अब नहीं रह गई। फिर पिछले कुछ माह के दौरान कनाडा और पाकिस्तान में भारत विरोधी तत्वों का सफाया हुआ है, जिसमें भारत की जासूसी संस्था रॉ की भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता। जानकारों का यह भी मानना है कि पाकिस्तान खुद भारत के खिलाफ आतंकी कार्रवाइयों से थक थक और परेशान हो चुका है। वहां का एक प्रभावशाली बुद्धिजीवी वर्ग खुलकर पीएम नरेंद्र मोदी के हक में बोलता है। (आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं, वेबदुनिया का इससे सहमत होना जरूरी है)