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तीस जनवरी, हे राम, साकार गांधी निराकार गांधी!

तीस जनवरी, हे राम, साकार गांधी निराकार गांधी! - mahatma gandhi punyatithi, Sakar Gandhi, Nirakar Gandhi
Mahatma Gandhi Death Anniversary: बिड़ला भवन दिल्ली में 30 जनवरी 1948 की शाम संध्याकालीन प्रार्थना पर निकले साकार गांधी अपने अंतिम शब्द 'हे राम' के साथ अनंत निराकार में विलीन हो गए। इस जगत में जन्म, जीवन के साकार स्वरूप का प्रारंभ है तो महाप्रयाण जीवन का अनन्त निराकार में विलीन हो जाना। जीव, हाड़-मांस का पुतला, सामान्य समझ से माना जाता है। इस जगत में सनातन काल से हाड़-मांस के पुतले भांति भांति के रूप स्वरूप में श्वास प्रश्वास की तरह आते जाते रहते हैं।
 
जगत, जीवन के साकार से निराकार स्वरूप में बदलने का एक अंतहीन सिलसिला है। साकार स्वरूप अंततः निराकार में विलीन हो जाता है पर निराकार तो हर कहीं व्याप्त है, शून्य और अनन्त में भी और सूक्ष्म और विराट स्वरूप में भी। जो रूप स्वरूप जन्म मृत्यु से परे है जैसे सत्य अपने आप में पूर्ण हैं, अपूर्ण कभी पूर्ण या असत्य कभी सत्य नहीं हो सकता। साकार गांधी की सबसे बड़ी सिखावन जगत को यह रही कि 'सत्य ही ईश्वर है'। ईश्वर के साथ साकार मनुष्य के मन में आस्तिक-नास्तिक का सवाल या मत-मतांतर उठें पर सत्य की सनातनता को लेकर कोई द्वंद या आस्था-अनास्था का सवाल ही नहीं बना।
 
गांधी ने जीवन को सत्य की जीवनशाला बना दिया 'सत्य के प्रयोग अथवा आत्मकथा'। सत्य एक दम सरल सहज और स्वाभाविक रूप से सादगीपूर्ण है। सत्य में न तो प्रदूषण है न ही असहिष्णुता, अभद्रता या बनावटीपन है सत्य में दुराव छिपाव या स्मरण विस्मरण का कोई सवाल ही नहीं है।

गांधी की कहानी का कुल जमा निचोड़ यह निकला कि एक सामान्य हाड़-मांस का मनुष्य कैसे अपने जीवन में लगातार अपनी कमियों को निरन्तर खुद-ब-खुद अपनी जीवन की समीक्षा से स्वयं ही त्यागते हुए जीवन को एक सत्याग्रह में बदल सकता है। दक्षिण अफ्रीका में बैरिस्टर गांधी को पहली श्रेणी का वैध टिकट होने पर भी काला आदमी पहली श्रेणी के रेल के डब्बे में चढ़ और यात्रा नहीं कर सकता भले ही वह बैरिस्टर क्यों न हो!
 
सत्यनिष्ठ बैरिस्टर गांधी के मन के किसी कोने में सत्य की समझ नहीं होती तो गांधी जैसा हाड़-मांस का पुतला निराकार सत्य को साकार सत्याग्रह में नहीं बदल पाता। महात्मा गांधी जैसे सरलतम रास्ता खोजने वाले मनुष्य का 'सत्य ही ईश्वर है' के विचार सूत्र ने दुनिया के प्रत्येक मनुष्य को अपने जीवन में ईश्वर को खोजने की मशक्कत जीवन भर करते रहने के बजाय सत्य की समझ का सहज सूत्र बताया।
 
सत्य को जीवन भर अपने जीवन में हर समय अपने दैनिक जीवन की श्वास-प्रश्वास की तरह ही मानते हुए जीवन को ही जीवन्त सत्याग्रह की तरह अनोखी जीवन शैली में बदल दिया। सत्य को आत्मसात कर जीना सिखाया। सत्य और सत्याग्रह की सरलता को अपनाने का सादगीपूर्ण अहिंसक समाधान निकाला।

सत्य और अहिंसा एक दूसरे में रचे-बसे है। सत्य और अहिंसा स्वावलंबी और प्राकृतिक स्वरूप में हर किसी के लिए सहज सरल है। सत्य और अहिंसा दोनों को अपनाने के लिए किसी संगठन, संस्था और सहयोगी साथी की भी जरूरत ही नहीं है। निर्भय होकर स्वावलंबी जीवन सत्यनिष्ठ और अहिंसक तरीके से जीना ही जीवन का प्राकृतिक स्वरूप है।
 
गांधी ने जरूरत और लोभ लालच के भेद को समझाया। सादगीपूर्ण आवश्यक पोषण-भोजन, रहन सहन और सहजता सरलता से अपने गांव बसाहट में स्थानीय लोगों और साधनों की व्यक्तिगत और सामूहिक शक्ति से जीने के प्राकृतिक और विकेन्द्रीकृत तरीके को ही रामराज्य की संज्ञा दी। गांधी ने व्यक्ति के अंदर बाहर समाहित राम को समझा और आजादी आन्दोलन में प्रार्थना सभा के माध्यम से व्यक्ति और समाज के मन में समाये रामतत्व की प्राण-प्रतिष्ठा करके आजादी की अहिंसात्मक अवधारणा को भारतीय मानस में आजादी की आधारभूमि तैयार करने का लोकाधारित सिलसिला खड़ा किया।
 
जीवन की जरूरत और लोभ लालच को समझाते हुए महात्मा गांधी ने कहा हमारी धरती मां में प्राणीमात्र की जरूरत पूरी करने की क्षमता है पर किसी एक के भी लोभ लालच को पूरा करने की नहीं। भोजन को लेकर गांधी ने सहज  सूत्र समझाया ,भूख लगने पर खाना प्रकृति है और बिना भूख के खाना विकृति है। गांधी ने जीवन के सार के रूप में ही सत्य और अहिंसा को जाना समझा। साध्य और साधन की शुद्धता और मन की स्वच्छता की आजीवन साधना।
 
गांधी अपने जीवन में न तो प्रशंसा से फूले और न हीं आलोचना या गाली पर ध्यान दिया। गांधी का मानना था कि किसी ने आपको गाली दी और आपने गाली का प्रत्युत्तर दिया तो गाली देने वाले को सफलता मिली पर यदि आपने गाली पर ध्यान ही नहीं दिया तो गाली देने वाले की गाली निष्फल हो गई। यही व्यवहारिक एकाग्रता और ध्यान है।

शुक्रवार तीस जनवरी 1948 की शाम प्रार्थना सभा में शामिल होने से साकार गांधी के शरीर को प्रणाम करने का स्वांग रचते हुए गोली मारने वाले को भले ही रोका न जा सका हो पर 'हे राम' शब्द का अंतिम उच्चारण कर महाप्रयाण पर जाने वाले निराकार गांधी के सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह और अभय को लोकसमाज के मन से कोई भी व्यक्ति, समूह, संगठन और सभ्यता गोली और गाली के बल पर रोक या समाप्त नहीं कर सकती। यही सनातन सत्य है। (ये लेखक के अपने विचार, वेबदुनिया का इनसे सहमत होना जरूरी नहीं है)