गुरुवार, 18 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. साहित्य
  3. मेरा ब्लॉग
  4. Hindi Article On Women

जरूरी है स्त्री का सृष्टि से सामंजस्य, क्योंकि केंद्र भी वही है और परिधि भी

जरूरी है स्त्री का सृष्टि से सामंजस्य, क्योंकि केंद्र भी वही है और परिधि भी - Hindi Article On Women
स्त्री केंद्र है तो परिधि भी वही है।  वो चंचला है तो स्थि‍र भी वही है। वो चहकती है, तो उसका मौन भी गहन है। विचलित होते हुए भी इस संसार में सबसे अधिक धैर्य वही रखती है। स्त्री में बचपना है तो वह समझदार भी है और जिम्मेदार भी। लेकिन वह अपने इस गुण का सही इस्तेमाल नहीं करती...। जी हां, भले ही किसी को इस बात से आपत्त‍ि हो, लेकिन वाकई ऐसा ही है...।

ईश्वर ने स्त्री को गुणों का खजाना दिया है उपहार स्वरूप, जिससे वह इस सृष्ट‍ि में अपनी भूमिका को खूबसूरती के साथ निभा सके। लेकिन छोटी-छोटी जिम्मेदारियों में उलझी स्त्री अपनी सबसे अहम जिम्मेदारी को शायद समझ ही नहीं पाई है...। 
 
घर, परिवार, समाज और संसार की जिम्मेदारियों के बीच, उसे याद ही नहीं कि ईश्वर ने उसे पूरी सृष्ट‍ि की जिम्मेदारी दी है, केवल समाज की नहीं...। सृष्ट‍ि के साथ सामंजस्य हो गया, तो संसार खुद ब खुद चल जाएगा...। कई सकारात्मक परिवर्तन खुद ब खुद हो जाएंगे...। इस बीज मंत्र को उसे समझने की आवश्यकता है...। 
 
ईश्वर ने पुरुष को क्षमता दी है लेकिन सृजन का अधिकार केवल स्त्री को दिया है। जिसका उपयोग अगर ईश्वर प्रदत्त महान गुणों के साथ किया जाए, तो सृष्टि को स्वर्ग बनाया जा सकता है। स्त्री का अधिकार और कर्तव्य मात्र जीवन सृजन तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह तो आरंभ है निर्माण का।
 
जीवन सृजन के साथ-साथ संस्कारों का रोपण भी उतनी ही आवश्यक है जितना किसी बीज को बोकर फसल की बेहतर गुणवत्ता का प्रयास करना। जरा सो‍चि‍ए जिस दिन स्त्री को यह आभास हो जाएगा कि उस पर बेहतर समाज के निर्माण की जिम्मेदारी है, जो मनुष्य के साथ-साथ अन्य जीवों एवं प्रकृति के साथ सामंजस्य बैठाकर बेहतर वातावरण तैयार कर सके, तो वह सजग हो जाएगी उस महान लक्ष्य के प्रति जिसके लिए ईश्वर ने उसे असीम क्षमताएं प्रदान की हैं।
 
जरा सोचिए जब हर एक स्त्री अपने कर्तव्य को समझ जाएगी और संतान को जन्म देने से लेकर उसके बेहतर मनुष्य निर्माण तक सकारात्मक भूमिका निभाएगी, तब न केवल बेहतर समाज का निर्माण होगा, बल्कि पूरी सृष्टि में बसंत होगा...ये कार्य एक स्त्री ही कर सकती है, कोई पुरुष नहीं। क्योंकि पुरुष को भी स्त्री जन्म देती है। इसलिए संस्कारित समाज का निर्माण भी वही कर सकती है, और यही उसका जीवन लक्ष्य भी होना चाहिए। 
 
इतिहास इस बात का साक्षी है कि समाज में महापुरुषों एवं विदुषियों की उपस्थिति एक स्त्री की ही तो देन है। आदि से अंत तक स्त्री की केवल समाज ही नहीं बल्कि पूरी सृष्टि में स्त्रीलिंग की भूमिका अनिवार्य एवं अहम है।
ये भी पढ़ें
सिरके का इस्तेमाल खाने के अलावा घर संवारने और खूबसूरती निखारने में भी हो सकता है, जानिए कैसे...