लोकतांत्रिक सत्ता में आतंकवाद का पनपना और देश के फौजियों का आतंकवादियों द्वारा मारा जाना वहशतनाक के साथ शर्मनाक इसलिए कहा जा सकता है, क्योंकि इस तंत्र में जनता का जनता द्वारा जनता लिए शासन होता है। फिर भी आतंकवाद है और सैनिक मारे जा रहे हैं। सैनिक मारे जा रहे हैं, मगर आतंकवाद की जड़ का सफाया होने में रूकावटें आ रही हैं। आखिरकार कब तक जवान अपना बलिदान देंगे और देश कब तक श्रद्धांजलियां देगा। आखिर कब तक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय नीतियों का खामियाजा नागरिकों को भुगतना होगा।
एक सैनिक की मौत पूरे देश की मौत मानी जानी चाहिए। फिर भी शांति वार्ता, सर्जिकल स्ट्राइक जैसे तमाशे की बजाए ठोस कार्रवाई यानी जड़ को ही साफ करना लाजमी होगा। पूरी तरह जड़ से सफाए की जरूरत है और यदि ऐसा नहीं किया गया तो भविष्य में सैनिक भर्तियों की संख्या में कमी आ सकती है। राजनीतिक दल फौज के नाम को महिमा मंडित करने में कोई कोरकसर नहीं छोड़ रहे हैं, लेकिन सरकार की तरफ से खुली छूट के मामले में कोई चर्चा नहीं। वैसे सर्जिकल स्ट्राइक जैसे कुछ कारनामे जरूर सामने आए हैं, किंतु इससे कुछ फर्क आतंकवादियों को नहीं पड़ा है।
राशन-पानी बंद : आतंकवादियों को कहां से और कितना धन और अन्य सुविधाएं मुहैया होती हैं इसका खुलासा होना जरूरी तो है ही, साथ ही उस पर प्रतिबंध भी लाजमी है। लेकिन अलग-अलग देशों की अलग-अलग मान्यताओं की वजह से ये सब असंभव सा है। हमारे देश के अंदर ही हो सकता है आतंकवादियों को सुविधाएं मुहैया कराने वाले सफेदपोश मौजूद हों, मगर इन्हें सामने लाना बामुश्किल ही नहीं नामुमकिन भी है।
इसकी सबसे बड़ी वजह है भ्रष्टाचार। भ्रष्टाचार की वजह से आज कोई डिपार्टमेंट कोरा नहीं बचा है। हर विभाग में भ्रष्टाचार है। अपराधी अपराध करके आराम से शहर में रहते हैं पुलिस पकड़ती नहीं तो इसलिए कि भ्रष्टाचार है। लेकिन यह नहीं विचारा जाता कि हमारे इस भ्रष्टाचार का खामियाजा हमारे सैनिक भुगत रहे हैं। जब तक इन आतंकवादियों का राशन-पानी बंद नहीं होगा, सैनिक इसी तरह मरते रहेंगे।
कश्मीर में जब भी फौज सक्रिय होती है वहां के कतिपय आतंकी समर्थक अपने हाथों में पत्थर लेकर फौज पर फेंकने लगते हैं। फौजियों को ऐसे लोगों पर कार्रवाई की खुली छूट क्यों नहीं दी जाती। शहीद जवानों को श्रद्धांजलियां दी जा रही हैं। उनके परिजनों को आर्थिक व अन्य सुविधाएं मदद के रूप में मिल रही हैं, मगर आतंकवाद की जड़ को मिटाने का प्रयास फिर भी नाकाफी है।
विश्व स्तरीय कार्रवाई : ये साफ होने के बावजूद कि पाकिस्तान ही आतंकवादियों का आका है, सीधे-सीधे उस पर कार्रवाई करने का प्रयास किया जाए तो उसका अंतरराष्ट्रीय स्तर पर असर होने की बात कही जाती है। पाकिस्तान पर कार्रवाई से चीन सीधे चुप नहीं रह सकता ऐसे में पाकिस्तान पर सीधी कार्रवाई करना संभवत: नामुमिकन लगता है, बशर्ते कि विश्वस्तर पर यानी संयुक्त राष्ट्र संघ कुछ नोटिस लें। लेकिन एशियाई देशों को आपस में लड़ाकर अपने हथियारों का बाजार बंद करने की कोई भी देश नादानी नहीं करेगा।
हजारों शहीद : कश्मीर की आतंकवादी घटनाओं के इतिहास में हजारों सैनिकों के शहीदी की दास्तान दर्ज है, फिर भी उस पर कार्रवाई होना नामुमिकन कर दिया गया है। 2006 में देश के 608 जिलों में से कम से कम 232 जिले विभिन्न तीव्रता स्तर के विभिन्न विद्रोही और आतंकवादी गतिविधियों से पीड़ित थे। अगस्त 2008 में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एम.के. नारायणन का कहना था कि देश में 800 से अधिक आतंकवादी गुट सक्रिय हैं। जम्मू-कश्मीर में सशस्त्र विद्रोह में अब तक दस हजार से अधिक लोगों की जानें गई हैं।
कश्मीर में उग्रवाद विभिन्न रूपों में मौजूद है। वर्ष 1989 के बाद से उग्रवाद और उसके दमन की प्रक्रिया, दोनों की वजह से हजारों लोग मारे गए। 1987 के एक विवादित चुनाव के साथ कश्मीर में बड़े पैमाने पर सशस्त्र उग्रवाद की शुरुआत हुई, जिसमें राज्य विधानसभा के कुछ तत्वों ने एक आतंकवादी खेमे का गठन किया, जिसने इस क्षेत्र में सशस्त्र विद्रोह में एक उत्प्रेरक के रूप में भूमिका निभाई। भारत द्वारा पाकिस्तान के इंटर इंटेलिजेंस सर्विसेज द्वारा जम्मू और कश्मीर में लड़ने के लिए मुजाहिद्दीन का समर्थन करने और प्रशिक्षण देने के लिए दोषी ठहराया जाता रहा है।