झूठ बोले कौवा काटे कितना सच है कितना झूठ ये तो मालिक ही जाने। यदि काटने जैसी कोई बात होती तो आज दुनिया में केवल और केवल घायल मनुष्य ही भरे पड़े होते... उनके घाव नासूर बन गए होते... सड़ते होते... बासते-गंधाते... कीड़े पड़े... जीते जागते, चलते फिरते नरक हो गए होते। पर ऐसा कभी देखा नहीं। दुनिया में सभी ने कभी न कभी कहीं न कहीं झूठ तो बोला ही है। और तो और भगवान, देवी-देवता, सुर-असुर भी इससे अछूते नहीं रहे।
अंतर इतना ही है कि किसी ने विश्व कल्याण के लिए, किसी ने धर्म संस्थापना के लिए, किसी ने अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए झूठ बोला। पर हम इंसानों ने झूठ, छल-कपट के सभी रंग पकड़ रखे हैं। कोई भी बात हो झूठ के सहारे आगे बढ़ने को जन्मसिद्ध अधिकार की तरह इस्तेमाल करने लगे हैं। ये तब भी जहरीला और घातक कृत्य था... आज भी है। यदि कोई झूठ आपको, आपके परिजनों को, समाज को, आपके अपनों को धोखा दे तो उससे बड़ा पाप शायद ही कोई हो। इससे आप अपना चरित्र तो खोते ही हैं, बरसों से अर्जित विश्वास भी क्षण भर में खो देते हैं। रिश्तों की बुनियाद तो खोखली हो जाती है।
आज के समय में एक और झूठ चला है महामारी कोरोना को ले कर। इस हौव्वे ने अच्छे अच्छों की पोल खोल दी है। यहां मैं ये बता दूं कि दुनिया गोल है। समय के साथ सभी की सच्चाई देर-सबेर ही सही सामने आती है। मैं, आप, सारी दुनिया कहीं भी, कोई भी इससे ग्रसित हो सकता है। इसको हम कोई खरीद के नहीं ला रहे। न कोई चोरी, डाका, छिनाला कर रहे हैं। बल्कि अब तो ऐसा करें तो भी सिद्ध करना मुश्किल है। कोरोना हो जाना कोई महापाप नहीं है परन्तु कोरोना छुपाना आज के समय अक्षम्य अपराध है।
माना इसका वेक्सीन नहीं आया। पर इसका मतलब ये भी नहीं कि इससे निजात पाना असंभव है। हम मौजूद तरीकों से इससे लड़कर समाज को सन्देश दे सकते हैं। अपनों के लिए, समाज के लिए आदर्श बन सकते हैं। अनुभवों से औरों को बचा सकते हैं। केवल सावधानी और एहतियात ही इसकी वर्तमान में सुरक्षा के अस्त्र शस्त्र हैं ये किसी को बचा रहे हैं कहीं नाकामयाब भी हो रहे हैं। दुःख तो तब और ज्यादा होता है जब पढ़े-लिखे समझदार लोग भी अपनों के साथ झूठ बोलते हैं और रिश्तों में खटास व भरोसा तोड़ने की नादानी कर जाते हैं।
शायद उनकी कोई मजबूरी हो... परन्तु ऐसा करने के लिए क्या उन्हें हम ही तो बाध्य नहीं कर रहे। हमारा कोरोना पॉजिटिव के साथ खराब व्यवहार, हमारी स्वार्थी सोच, उनका सामाजिक बहिष्कार। कोई हक नहीं है हमें ऐसा करने का, समझिए इस बात को कि आज वो हैं तो कल हम भी हो सकते हैं।
दूसरी बात कोरोना पॉजिटिव हो जाना कोई बदनामी का कारण नहीं है। न ही कोई क्राइम है न कोई फ्रॉड। उसका इस्तेमाल यदि कोई व्यक्ति किसी की बदनामी की मंशा से करता है, अपनी जलन, राग-द्वेष और इर्ष्या और पारिवारिक राजनीति की उठा-पटक के हिस्से के रूप में करता है तो यह जरूर घोर अपराध है। यह मय मरीज से बदला लेने का नहीं बल्कि इन्सानियत के तकाजे का है।
आपके संस्कारों और परवरिश की परीक्षा का है। उसे आपकी हिम्मत और साथ चाहिए जो मरीज का आत्मविश्वास बढ़ाकर महामारी के खौफ के इस अंधकार से जीवन के उजाले की ओर ले जा सके। ये कर्म आपको निश्चित ही अतुल्य पुण्य प्रदान करेगा।
यदि आपको कोरोना होता है तो कम से कम अपने-पराये से परिचय करता है। माया-मोह का असली रंग आपके सामने आता है। गीता ज्ञान से परिचय होता है। जीने-मरने की कला आपको नया रंग दिखाती है। नई अदा सिखाती है। मरना तो सबको है एक दिन। ऐसे नहीं तो वैसे। फिर कैसा डरना? ‘जो डर गया सो मर गया’ यह केवल फ़िल्मी जुमला नहीं है। जीवन का सार है। अंतिम सत्य है और प्रथम सत्य भी।
मैं तो कहती हूं यही एक सत्य है ‘मृत्यु’ बाकि सब मिथ्या। खुल के जिएं अपने लिए... अपनों के लिए... अपनों के साथ... गुनगुनाइए... गाइए... झूमते, नाचते, मस्ती भरी जिंदगी बिताते... अपना तो जीने का यही अंदाज है... कभी आप भी आजमाइए न..
‘जिन्दगी तो बेवफा है, एक दिन ठुकराएगी. मौत महबूबा है अपने साथ ले कर जाएगी। मर के जीने की अदा जो दुनिया को सिखलायेगा, वो मुकद्दर का सिकंदर जानेमन कहलायेगा....’
(इस आलेख में व्यक्त विचार लेखक की निजी अनुभूति है, वेबदुनिया से इसका कोई संबंध नहीं है।)