कोरोना की नई लहर फिर उफान मारती दिख रही है। दिखे भी क्यों न, जब पहली लहर रोक ली थी तो काबू रखना था। रोजमर्रा की जद्दोजहद खातिर जरूरी छूट की मजबूरी में ऐसे आजाद हुए कि पता ही नहीं चला कि कब 21 वीं सदी का जानलेवा शैतान फिर आहिस्ता से ही सही ऐसे घर कर गया जैसे उसी का हो? सच तो यह है कि हुआ भी यही।
मार्च में शुरू हुए लॉकडाउन के बाद कोरोना संक्रमण की चैन को परस्पर मेल, मिलाप और दूरी के एकमात्र फॉर्मूले बनाम दवाई से काफी हद तक तोड़ दिया गया था। यह सरकार की सख्ती से हो पाया जिसके लिए दुनिया भर में भारत की तारीफ हुई। होना भी चाहिए। लेकिन जैसे ही तालबन्दी खत्म करने की किश्तें शुरू क्या हुईं, लोग इतने बेलगाम हो गए और हालात यूँ बन गए जैसे कोरोना की विदाई हो गई हो!
आलम कुछ ऐसा जैसे डरा, सहमा कोरोना खुद ही भारत को अलविदा कह गया..!! समूचे देश में निश्चिंतता ऐसी बनी जिसमें कोरोना को लेकर भ्रम कम और भरोसा ज्यादा था। काश सरकारें मास्क को लेकर सख्त रही आतीं तो कोरोना की टूटी हुई श्रंखला नहीं जुड़ पाती। इसी लापरवाही से देखते ही देखते अब रोजाना संक्रमण के इस साल के नए रिकॉर्ड सामने आने लगे जिससे केन्द्र व राज्यों की धड़कनें बढ़ गईं।
भारत में कोरोना की रफ्तार फिर बढ़ रही है। महाराष्ट्र, केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु, पंजाब और गुजरात में सबसे ज्यादा संक्रमित मिल रहे हैं। मप्र, उप्र, छग और दूसरे राज्यों में भी दूसरी लहर के मरीज सामने आ रहे हैं। इस बीच सुकून जरूर इस बात का है कि देश में टीकाकरण भी जोर पकड़ रहा है और करीब 3 करोड़ लोगों को वैक्सीन लग चुकी है।
जबकि 51 लाख 42 हजार 953 लोगों को दोनों खुराक मिल चुकी है। दुनिया भर में कोरोना संक्रमितों का आंकड़ा 12 करोड़ पहुंचने को है और मृतकों का आंकड़ा साढ़े 26 लाख को पार कर चुका है। बीते 83 दिनों की बात करें तो भले ही ब्राजील को दूसरे नंबर पर छोड़ कोरोना संक्रमण में हम एक पायदान नीचे चले गए लेकिन ज्यादा संक्रमित मिलने से नई लहर को लेकर शंका चिन्ताजनक है। कोरोना की नित नई तेज होती लहर के बीच उसी रफ्तार से वैक्सीनेशन भी होना बड़ी सुकून की बात है लेकिन यह मान लेना कि इससे कोरोना को मात मिल जाएगी काफी नहीं है।
देश और दुनिया के बड़े-बड़े चिकित्सकों सहित विश्व स्वास्थ्य संगठन भी इस पर लोगों को काफी चेता चुका है। लेकिन अफसोस इस बात का कि जब चिकित्सक ही लापरवाही बरतें और बिना किसी शोध के खुद ही कोई धारणा बना लें तो दोष किसे दें? ऐसा ही एक मामला मप्र के जबलपुर में पुराने और नामी शासकीय गांधी मेडिकल कॉलेज से सामने आया। यहां पर एक वरिष्ठ चिकित्सक कोविड-19 के दोनों टीके लगवाने के बाद भी संक्रमित हो गईं।
हैरान कर देने वाली बातें कही जा रही हैं कि 48 साल की इस महिला चिकित्सक की धारणा थी कि वैक्सीन की दूसरी डोज लेने के बाद मास्क जरूरी नहीं।
अब माना जा रहा है कि हो सकता है कि इसी वजह से वह संक्रमित हुई हों। इन्हें पहला डोज 16 जनवरी और दूसरा 1 मार्च को दिया गया था। लेकिन जब कुछ लक्षणों के आधार पर 10 मार्च को कोरोना की जांच हुई तो संक्रमित निकलीं। बस ऐसी ही गलतफहमीं या अति आत्म विश्वास ही कोरोना की टूटी चेन को फिर कड़ियों में पिरो रहा है और हम हैं कि मानते नहीं।
ऐसे में लगता नहीं कि कोरोना की चेन तोड़ने के लिए पूरे देश के सरकारी मुलाजिम ही अपने-अपने दफ्तरों में उदाहरण बनें जिनके लिए मास्क और दो गज की दूरी बनाए रखने की सख्त कानूनी हिदायत हो।
भारत में नई लहर पर वैज्ञानिकों की अलग-अलग राय है। कुछ इसे दूसरे देशों के मुकाबले कम मान संतोष कर रहे हैं तो कुछ मानते हैं कि मौजूदा बढ़ते प्रसार का यही आंकड़ा रहा तो नई लहर को रोक पाना मुश्किल होगा। वहीं कुछ यह भी मानते हैं कि मौजूदा संक्रमण वृध्दि को दूसरी लहर कहना भी जल्दबाजी होगी। जाहिर है कोरोना की देश और दुनिया से आ रही चिन्ताजनक तस्वीरों से वैज्ञानिक और शोधकर्ता भी हैरान हैं। किसी निश्चित निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पा रहे हैं।
ऐसे में जाना, पहचाना, अजमाया, बिना किसी साइड इफेक्ट के ऊपर से पूरी तरह परफेक्ट मास्क और दो गज की दूरी ही इस बीमारी को मात देने का सबसे सुरक्षित और सबकी पहुँच का आसान तरीका है तो इससे परहेज क्यों?
काश इस बारे में राज्यों के बजाए केन्द्र की सख्त और बड़े भाई वाली भूमिका दिखती, जिसमें हर चेहरे पर मास्क और परस्पर दूरी के दिशा निर्देश हों और हालात को देखते हुए एक साथ पूरे देश में रात्रि कालीन कर्फ्यू रात 8 बजे से सुबह 8 बजे तक लागू किया जाता।
पहले के अनुभव बताते हैं कि यही बेहद कारगर उपाय रहा है। हां कुछ राज्यों में स्कूलों को खोलने को लेकर अलग-अलग तुगलकी फरमान भी जारी हो रहे हैं जो हालात के मद्देनजर रद्द किया जाना लोकहित में होगा। मप्र में तो जहां प्रायमरी स्कूलों को 1 अप्रेल से खोलने के आदेश हो गए हैं वहीं 9 से 12 वीं तक की कक्षाओं के लिए 9 बजे से 5 बजे तक 10 मार्च से ही स्कूल संचालित किए जाने के आदेश प्रशासनिक स्तर पर यह दलील दे हो गए हैं कि कोरोना काल में बच्चों के हुए नुकसान की भरपाई की जाए।
इसको लेकर चिन्ता की बात यह है कि शिक्षक तो वही रहेंगे ऐसे में कहीं कोई शिक्षक ही संक्रमित हो जाए तो? हां इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि पूरे देश में जहां-तहां छात्र और शिक्षकों के बड़ी संख्या में कोरोना संक्रमित पाए जाने के चिन्ताजनक मामले भी सामने आए हैं। ऐसे में बढ़ती कड़ी को रोकना ही समझदारी होगी।
जब सामने कोरोना का नया और तमतमाता चेहरा दिख रहा है तो ऐसे में उससे बचाव ही सुरक्षा है। जाहिर है सुरक्षा के लिए आपसी तय दूरी के साथ मास्क भी जरूरी हो। हां इसके लिए घर से निकलते ही लागू हो पेनॉल्टी वाला कॉमन टास्क कहां है आपका मास्क?
(इस आलेख में व्यक्त विचार लेखक की निजी अभिव्यक्ति और राय है, बेवदुनिया डॉट कॉम से इससे कोई संबंध नहीं है)