पिछले कुछ महीनों से महाराष्ट्र की शिवसेना अपने राज्य के सारे संवैधानिक काम-काज छोड़कर बदले की सरकार चला रही है। वो अपनी उर्जा की खपत ऐसे कामों में कर रही है, जिसे पूरा देश देख रहा है और उस पर छी-छी भी कर रहा है। चाहे वो कंगना रनौत की मुखाफलत के बाद उसका घर तोड़ना हो, या फिर रिपब्लिक न्यूज टीवी के प्रदीप भंडारी और दूसरे पत्रकारों को धक्का-मुक्की कर के हिरासत में लेना हो।
और अब अपना स्तर गिराते हुए अर्नब गोस्वामी को एक ऐसे प्रकरण में फिर से हिरासत में लेना हो, जिसकी फाइल महाराष्ट्र सरकार के ही गृहमंत्री के मार्गदर्शन में बंद की जा चुकी हो।
उद्धव ठाकरे, संजय राउत या शरद पवार अर्नब गोस्वामी नाम के एक ऐसे पत्रकार पर अपनी शासकीय उर्जा और बल खर्च कर रही है, जिसे देश का आधे से ज्यादा मीडिया जगत पत्रकार मानता ही नहीं है।
यह सारी बातें इसलिए हैं, क्योंकि शिवसेना सरकार की इन तमाम कार्रवाईयों पर कई सवाल हैं। जिसका जवाब शिवसेना सरकार कभी दे नहीं सकेगी, जबकि देश की जनता इसके जवाबों को भलीभांति जानती हैं और समझ रही हैं।
सवाल नंबर- 1 : जब कंगना रनौत ने सुशांत सिंह की मौत के बहाने महाराष्ट्र सरकार पर बयानों का हमला बोला तो जवाब में मुंबई के बीएमसी ने कंगना के उस घर को क्यों तोड़ा, जिसे बीएमसी की आंखों के सामने ही बनाया गया था?
सवाल नंबर- 2 : रिपब्लिक भारत न्यूज चैनल के उन पत्रकारों से महाराष्ट्र सरकार को आखिर क्या डर था कि उसने किसी न किसी बहाने एक या दो दिनों के लिए उन्हें अंदर करवाया?
सवाल नंबर- 3 : अब अर्नब गोस्वामी को उस प्रकरण में क्यों पकड़ा गया है जो साल 2018 में बंद हो चुका है। इस प्रकरण में अर्नब समेत तीन आरोपी थे, जिनमें से सिर्फ अर्नब को ही पकड़ा गया, शेष दो को नहीं। ऐसा क्यों?
सवाल नंबर-4 : जिस नाइक परिवार को आत्महत्या के लिए आरोपियों द्वारा उकसाने का आरोप है, उस परिवार के बेटे और उसकी करीब 65 साल की मां ने भी आत्महत्या की थी, अगर अर्नब पर पैसे की लेन-देन का मामला है तो आत्महत्या सिर्फ नाइक को या उसके साथ उसकी पत्नी को करनी चाहिए थी, इसमें मां-बेटे की आत्महत्या का क्या तुक है, जबकि नाइक की पत्नी जीवित है?
महराष्ट्र सरकार पर ये बहुत बैसिक सवाल हैं, लेकिन इसकी तह में अर्नब गोस्वामी का सुशांत की मौत के मामले में पीछे लगना, पालघर हत्याकांड में जवाब मांगना, दिशा सालियान और जिया खान की संदिग्ध मौतों को न्यूज में उठाकर हमलावर होना और कंगना का इन मुद्दों में रिपब्लिक के साथ खड़े होना आदि शामिल हैं।
इन्हीं के चलते कंगना पर कार्रवाई हुई, अर्नब पर टीआरपी का केस लगाया और अब उसे दो साल पुराने बंद हो चुके मामले में फिर से हिरासत में लिया गया!
यह साफतौर से महाराष्ट्र सरकार की बदले की कार्रवाई है। सरकार ने अपने तमाम काम छोड़कर सिर्फ अर्नब पर कार्रवाई करने और सुशांत-दिशा मामले में अपना बचाव करने में सारी ताकत झौंक दी। किसी इतने बड़े राज्य की तीन पार्टियों से बनी सरकार को एक नौटंकी समझे जाने वाले पत्रकार पर इस कदर अलग-अलग तरीकों से फंसाने का क्या औचित्य हो सकता है?
जो सवाल अर्नब गोस्वामी के पास हैं, वो न सिर्फ अर्नब को बल्की किसी भी मीडिया हाउस द्वारा पूछे जाना चाहिए और राज्य सरकार या महाराष्ट्र की पुलिस को अपना पक्ष रखना चाहिए, लेकिन ऐसा होने के बजाए हो कुछ और रहा है। इसमें सबसे बड़ा दुख यह है कि रिपब्लिक और अर्नब की तकलीफ को शेष मीडिया आपसी प्रतिद्ंवदिता में कुटिल मुस्कान के साथ देख रहा है। इस आशंका के बगैर कि जो महाराष्ट्र सरकार एक पत्रकार के साथ ऐसा बर्ताव कर सकती है, वो किसी दिन किसी मामले में उनकी गिरेबां में भी हाथ डालेगी। और उस दिन उनके लिए बोलने वाला कोई नहीं होगा। सवाल यह भी है कि मीडिया की मुहिम और उसके सवालों पर राज्य सरकारें ऐसे ही कार्रवाई और बर्ताव करती रही तो फिर मोदी सरकार में देश की आधी से ज्यादा देश विरोधी मीडिया, टीवी चैनल्स और न्यूज वेबसाइट जेल में होना चाहिए। लेकिन यह दुखद है कि देश में हर जगह आजादी की अभिव्यक्ति लागू नहीं होती। यह नियम राज्य सरकारों के आधार पर बदल जाता है।
अब सवाल यह है कि क्या महाराष्ट्र की शिवसेना सरकार म्युनिसिपल कमेटी वाली सरकार है जो कंगना का घर तोड़ देगी, अर्नब को पुराने मामले में इरादतन उठा लेगी और अपने मुखपत्रों में राज्य में नहीं घुसने देने की धमकी छापेगी और उसके नेता महिलाओं के लिए हरामखोर जैसे शब्दों का इस्तेमाल करेंगे। वह भी तब जब यह सरकार कांग्रेस और एनसीपी के बड़े नेताओं के साथ मिलकर बनी हो?
सोशल मीडिया भी महाराष्ट्र सरकार से सलमान खान और संजय दत्त के साथ पुलिस के बर्ताव और अर्नब के साथ पुलिस की बर्बरता को लेकर सवाल पूछ रहा है। इसके साथ ही एनसीपी के नेता शरद पवार के साथ नाइक के परिवार की तस्वीरें भी दिखा रहा है।
(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/विश्लेषण 'वेबदुनिया' के नहीं हैं और 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)