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Last Updated :इंदौर , सोमवार, 11 मार्च 2024 (20:56 IST)

MP : धार भोजशाला पर हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने दिया ASI सर्वे का आदेश

वाग्देवी का मंदिर है

MP :  धार भोजशाला पर हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने दिया ASI सर्वे का आदेश - MP High Court allows ASI survey at  disputed  Bhojshala complex in Dhar district
MP High Court allows ASI survey at  disputed  Bhojshala complex in Dhar district  : धार स्थित भोजशाला को लेकर मध्‍यप्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने एएसआई (ASI) सर्वे का आदेश दिया है। 
मां सरस्वती मंदिर भोजशाला के वैज्ञानिक सर्वेक्षण के लिए 'हिन्दू फ्रंट फॉर जस्टिस' ने हाईकोर्ट में आवेदन दिया था। इस पर पर हाईकोर्ट ने एएसआई को वैज्ञानिक सर्वेक्षण करने का आदेश सोमवार को दिया।
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर पीठ इस मसले पर पिछले कुछ दिनों से सुनवाई कर रही थी। हिन्दू पक्ष के तर्कों को सुनने के बाद इंदौर पीठ ने 19 फरवरी 2024 को अपनी सुनवाई के बाद फैसले को सुरक्षित रख लिया गया था। इसके बाद 11 मार्च 2024 को हाईकोर्ट की इंदौर पीठ ने अपना फैसला सुनाया है। कोर्ट ने ज्ञानवापी की तरफ इस मामले में भी एएसआई सर्वे का आदेश दिया है।  
 
सरस्वती मंदिर : ऐतिहासिक और सरकारी दस्तावेजों में यह जिक्र है कि भोजशाला, सरस्वती सदन है, जिसकी स्थापना राजा भोज ने की थी। यहां परमार वंश के राजा भोज ने 1010 से 1055 ईस्वी तक शासन किया था। 
बताया जाता है कि राजा भोज ने 1034 में सरस्वती सदन की स्थापना की थी। यह एक कॉलेज था, जो आगे चलकर भोजशाला हो गया है। यहां शिक्षा हासिल करने दूर-दूर से लोग आते थे। राजा भोज के शासनकाल में ही यहां सरस्वती मां की मूर्ति स्थापित की गई थी, जिन्हें वाग्देवी भी कहा जाता है। 
 
धार जिले की सरकारी वेबसाइट पर दी गई जानकारी के मुताबिक भोजशाला राजाभोज के समय एक बड़ा अध्ययन का केंद्र था। यहां सरस्वती मंदिर भी था। बाद में यहां के मुस्लिम शासक ने मस्जिद में परिवर्तित कर दिया था। भोजशाला में मंदिर था, इसके अवशेष आज भी कमाल मौलाना मस्जिद में दिखते हैं।

कमाल मौला की मस्जिद : मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को धार जिले के विवादास्पद भोजशाला परिसर का छह सप्ताह के भीतर एक वैज्ञानिक सर्वेक्षण करने का सोमवार को निर्देश दिया। एएसआई के संरक्षित ऐतिहासिक भोजशाला परिसर को हिन्दू वाग्देवी (सरस्वती) का मंदिर मानते हैं, जबकि मुस्लिम समुदाय इसे कमाल मौला की मस्जिद बताता है।
 
मंगलवार को पूजा की व्यवस्था : एएसआई के सात अप्रैल 2003 को की गई एक व्यवस्था के मुताबिक हिंदुओं को प्रत्येक मंगलवार भोजशाला में पूजा करने की अनुमति है, जबकि मुस्लिमों को हर शुक्रवार इस जगह नमाज अदा करने की इजाजत दी गई है।
 
क्या कहा पीठ ने : उच्च न्यायालय की इंदौर पीठ के न्यायमूर्ति एस.ए. धर्माधिकारी और न्यायमूर्ति देवनारायण मिश्र ने सभी संबद्ध पक्षों की दलीलों पर गौर करने के बाद जारी एक आदेश में कहा, ‘‘इस अदालत ने केवल एक निष्कर्ष निकाला है कि भोजशाला मंदिर-सह-कमाल मौला मस्जिद परिसर का जल्द से जल्द एक वैज्ञानिक सर्वेक्षण और अध्ययन कराना एएसआई का संवैधानिक और कानूनी दायित्व है।’’
 
6 सप्ताह में रिपोर्ट : पीठ ने केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय के तहत काम करने वाली एएसआई की पांच सदस्यीय विशेषज्ञ समिति को छह सप्ताह के अंदर सर्वेक्षण की एक व्यापक रिपोर्ट तैयार करने को कहा। अदालत ने 30 पृष्ठों के अपने आदेश में कहा, “इस आदेश की प्रमाणित प्रति प्राप्त होने की तारीख से छह सप्ताह में एएसआई के महानिदेशक/अतिरिक्त महानिदेशक की अध्यक्षता में एएसआई के कम से कम पांच वरिष्ठतम अधिकारियों की एक विशेषज्ञ समिति द्वारा तैयार की गई एक उचित दस्तावेज वाली व्यापक मसौदा रिपोर्ट इस न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत की जाए।”
 
पीठ ने यह निर्देश ‘हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस’ नामक एक संगठन की याचिका मंजूर करते हुए दिया। याचिका में कहा गया है कि एएसआई द्वारा सर्वेक्षण कराया जाना एक वैधानिक कर्तव्य है, जिसे बहुत पहले ही निरीक्षण के चरण में किया जाना चाहिए था, जब भोजशाला सरस्वती मंदिर (भोजशाला मंदिर)-मौलाना कमाल मौला मस्जिद के वास्तविक चरित्र को लेकर "रहस्य और भ्रम" उत्पन्न होने से इसकी वास्तविक स्थिति के बारे में विवाद पैदा हो गया था।
 
एचएफजे अध्यक्ष रंजना अग्निहोत्री और अन्य ने भारत संघ व अन्य के खिलाफ याचिका दायर की थी। पीठ ने मामले की अगली सुनवाई 29 अप्रैल तय की। धार के शहर काजी (मुस्लिम समुदाय के स्थानीय धार्मिक प्रमुख) वकार सादिक ने कहा कि वे उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ उच्चतम न्यायालय जाएंगे।
 
हिन्दू पक्ष ने कहा नहीं दी जा सकती नमाज की इजाजत : अदालत ने सभी पक्षों की दलीलें सुनकर इस याचिका पर अपना फैसला 19 फरवरी को सुरक्षित रख लिया था। 11 मार्च (सोमवार) को यह फैसला सुनाया गया।ळ एएसआई के 2003 की व्यवस्था को चुनौती देते हुए ‘हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस’ की ओर से अदालत में कहा गया कि यह फरमान भोजशाला परिसर की वैज्ञानिक जांच के बगैर जारी किया गया था और नियम-कायदों के मुताबिक किसी भी मंदिर में नमाज अदा किए जाने की इजाजत नहीं दी जा सकती।
 
एएसआई की ओर से उच्च न्यायालय में बहस के दौरान कहा गया कि उसने 1902 और 1903 में भोजशाला परिसर की स्थिति का जायजा लिया था और इस परिसर की वैज्ञानिक जांच की मौजूदा गुहार को लेकर उसे कोई भी आपत्ति नहीं है।
 
मुस्लिम समुदाय भोजशाला परिसर को कमाल मौला की मस्जिद बताता है। इस मस्जिद से जुड़ी ‘मौलाना कमालुद्दीन वेलफेयर सोसायटी’ ने एएसआई द्वारा भोजशाला परिसर की वैज्ञानिक जांच के लिए ‘‘हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस’’ की दायर अर्जी पर आपत्ति जताई गई थी। इनपुट भाषा