मध्यप्रदेश का राजनीतिक भविष्य और सियासत की दिशा तय करने वाले उपचुनाव में प्रदेश के दो बड़े कद्दावर नेताओं को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है। अब जब आखिरी पखवाड़े का चुनाव प्रचार शुरु हो गया है तब ‘राजा’ यानि दिग्विजय सिंह और ‘महाराजा’ यानि ज्योतिरादित्य सिंधिया की चुनावी रैली और बयानों की चर्चा नहीं होना, इन दिनों चुनावी चर्चा का मुख्य विषय बना हुआ है।
अब जब चुनाव प्रचार अपने पूरे उफान पर हैं तब कांग्रेस के ‘चुनावी चाणक्य’ कहे जाने वाले दिग्विजय सिंह पूरे चुनावी परिदृश्य से ही गायब है,वहीं दूसरी ओर पिछले आठ महीने से जिन ज्योतिरादित्य सिंधिया के चारों ओर प्रदेश की पूरी सियासत घूम रही थी,वह अब अपनी ही पार्टी के चुनावी कैंपेन में अलग-थलग नजर आ रहे है। ।
पहले बात प्रदेश की सियासत में ‘महाराज’ के नाम से पहचाने जाने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया की। प्रदेश में हो रहे उपचुनाव का मुख्य कारण बने सिंधिया चुनाव के अंतिम दौर में चुनावी परिदृश्य के मुख्य केंद्र में नहीं होना काफी चर्चा का केंद्र बना हुआ है।
भाजपा ने अपना पूरा चुनावी कैंपेन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के चेहरे पर लाकर टिका दिया है। ग्वालियर-चंबल का वह इलाका जो सिंधिया घराने का गढ़ माना जाता था, उस इलाके की 16 सीटों पर हो रहे उपचुनाव में भी भाजपा अपने चुनावी कैंपेन में सिंधिया से ज्यादा शिवराज पर भरोसा कर रही है। शिवराज सिंह चौहान तबाड़तोड़ सिंधिया समर्थकों के लिए चुनावी सभा कर रहे है।
अब जब उपचुनाव के प्रचार के लिए पंद्रह दिन से कम का समय शेष बचा है तब भाजपा ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। अगले पंद्रह दिन में भाजपा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की 90 चुनावी रैली कराने की तैयारी में है। पार्टी के रणनीतिकारों की कोशिश की है कि प्रचार के आखिरी दौर में सीएम शिवराज हर विधानसभा सीट पर कम से कम तीन-तीन सभा कर पार्टी के पक्ष में माहौल बनाए।
ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिरी क्यों ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने गढ़ में ही भाजपा के चुनावी कैंपेन का चेहरा नहीं बन पा रहे है। शिवराज के चेहरे को आगे कर उपचुनाव लड़ना भाजपा के रणनीतिकारों की सोची समझी रणनीति माना जा रहा है।
ग्वालियर-चंबल की सियासत को करीब से देखने वाले वरिष्ठ पत्रकार डॉक्टर राकेश पाठक कहते हैं कि सिंधिया अपने गढ़ में ही भाजपा के चुनावी कैंपेन में पीछे नजर आ रहे है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जो चुनाव प्रचार के शुरुआती चरण में हर मंच पर सिंधिया के साथ नजर आते थे वह अब अकेले चुनावी सभा कर रहे है।
वह आगे कहते हैं कि सिंधिया के बैकफुट पर चले जाने के एक नहीं कई कारण है। पहला कारण संघ की ग्वालियर-चंबल को लेकर वह रिपोर्ट जिसमें नेताओं के दलबदल को जनस्वीकृति नहीं मिल पाना है और चुनावी सभाओं में लगातार गद्दार वापस जैसे नारों का लगना।
राजनीतिक विश्लेषक डॉक्टर राकेश पाठक कहते हैं कि सिंधिया का भाजपा के चुनावी कैंपेन में पीछे होने का दूसरा मुख्य कारण खुद सिंधिया का चुनावी मंचों से महाराज कहने वाला बयान है। चुनावी मंचों से सिंधिया के खुद अपने को ‘महाराज’ कहने की बात भी भाजपा की विचारधारा से मेल नहीं खा पा रही है। ऐसे में भाजपा के रणनीतिकारों को अब चुनाव में सिंधिया के कारण नुकसान होता दिख रहा है।
दरअसल ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थकों की बगावत के बाद कांग्रेस ने भाजपा में गए सभी नेताओं को ‘गद्दार’ बताकर अपना पूरा चुनावी कैंपेन इसी के इर्द-गिर्द केंद्रित कर रख रहा है। उपचुनाव में कांग्रेस सीधे सिंधिया पर अटैक कर रही थी। कांग्रेस की पूरी कोशिश है कि चुनाव सिंधिया बनाम कमलनाथ हो, जिसका फायदा नतीजों में हो सके। सिंधिया के भाजपा में शामिल होने के बाद पहली बार ग्वालियर पहुंचने पर कांग्रेस ने उनको गद्दार बताते हुए विरोध में बड़ा प्रदर्शन भी किया था, इसके साथ कई कार्यक्रमों में सिंधिया को काले झंडे भी दिखाए गए थे।
उपचुनाव में ‘राजा’ भी पर्दे के पीछे– दूसरी ओर प्रदेश की सियासत में ‘राजा’ कहलाने वाले दिग्विजय सिंह भी चुनावी परिदृश्य से पूरी तरह गायब है। अब जब उपचुनाव के लिए आधा समय निकल चुका है तब दिग्विजय का चुनावी रैली नहीं करना काफी चर्चा के केंद्र में है। दिग्विजय सिंह के सक्रिय नहीं होने पर लगातार भाजपा नेता उन पर तंज कस रहे है। प्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा उपचुनाव से दिग्विजय सिंह की दूरी पर तंज कसते हुए उन्हें ट्वीटर और सिर्फ मुंह चलाने वाले नेता बताते है। उपचुनाव में कमलनाथ अकेले चुनाव प्रचार कर है।
वरिष्ठ पत्रकार शिवअनुराग पटैरिया कहते हैं कि दिग्विजय कांग्रेस के एक बड़े और कद्दावर नेता है और उपुचनाव में दिग्विजय का पर्दे के पीछे होना खुद उनकी एक रणनीति है। दरअसल आज भी दिग्विजय सिंह पर मिस्टर बंटाधार का जो लेबल है, वह धुल नहीं पाया है। वह अच्छी तरह जानते हैं कि उनके चुनावी समर में सामने आते ही भाजपा इसका फायदा उठाने की कोशिश करेगी।
ऐसे में अब यह देखना दिलचस्प होगा कि जब आज से चुनाव प्रचार के पंद्रह दिन बाकी बचे है तब 'राजा' और 'महाराजा' कितना चुनावी मैदान में सक्रिय नजर आते है और इन नेताओं की चुनाव मैदान से दूरी चुनाव परिणाम पर कितना असर डालती है।