नहीं तो, मतलब, लेकिन हाँ!  
					
					
                                       
                  
				  				 
								 
				  
                  				  राहुल सिंह 				   मैं यकीन नहीं कर सकती।क्या?यही कि तुमने जिंदगी में पच्चीस-छब्बीस बसंत देखे लेकिन उसमें बहार कभी नहीं आई। इसमें यकीन न करने जैसी तो कोई बात नहीं है।नहीं, क्योंकि शक्ल-ओ-सूरत उतनी बुरी भी नहीं है। मतलब बुरी तो है।नहीं, मेरा मतलब ऐसी नहीं है कि निगाह टिक सके।और उसके लिए शक्ल निगाहों के लिए पड़ाव साबित हो। नहीं, मेरा मतलब लुक सामने वाले को इम्प्रेस करने का एक बड़ा जरिया होता है। तब तो तुम्हें मान लीजिए कि मैं अब तक अकेला हूँ।नहींक्यों?दूसरी कई बातें हैं?जैसे?जैसे कि तुम्हारा बातों में चीत करने का अंदाज। जैसे कि तुम्हारी निगाह, इसकी जद में आने वाला इसका इसका विक्टीम हुए बिना नहीं रह सकता। लेकिन मैं तो जानता था कि वह चितवन और कछु जिहिं बस होत सुजान।कस्तूरी कुंडली बसे मृग खोजे बन माँहि।तुम तो कत्ल-ए-आम पर उतर आई हो।नहीं, तुम्हें निष्कवच करने आई हूँ। क्यों?ताकि खुद निढाल हो सकूँ। क्यों?बस ऐसे ही। कोई वजह तो होगी।नहीं, बेवजह ही समझो।बेवजह कुछ नहीं होता।कुछ नहीं होता लेकिन कुछ कुछ होता है।मतलब?अब इतने इनोसेंट भी न बनो। मैं सच में कुछ समझना चाहता हूँ।अब समझीं।क्या? तुम्हारी नासमझी।मतलब? मतलब यह कि मैंने दिमाग की जगह दिल और दिल की जगह दिमाग लगाया। यहाँ तक तो ठीक है। लेकिन सोचता हूँ कि अगर
				   मैं यकीन नहीं कर सकती।क्या?यही कि तुमने जिंदगी में पच्चीस-छब्बीस बसंत देखे लेकिन उसमें बहार कभी नहीं आई। इसमें यकीन न करने जैसी तो कोई बात नहीं है।नहीं, क्योंकि शक्ल-ओ-सूरत उतनी बुरी भी नहीं है। मतलब बुरी तो है।नहीं, मेरा मतलब ऐसी नहीं है कि निगाह टिक सके।और उसके लिए शक्ल निगाहों के लिए पड़ाव साबित हो। नहीं, मेरा मतलब लुक सामने वाले को इम्प्रेस करने का एक बड़ा जरिया होता है। तब तो तुम्हें मान लीजिए कि मैं अब तक अकेला हूँ।नहींक्यों?दूसरी कई बातें हैं?जैसे?जैसे कि तुम्हारा बातों में चीत करने का अंदाज। जैसे कि तुम्हारी निगाह, इसकी जद में आने वाला इसका इसका विक्टीम हुए बिना नहीं रह सकता। लेकिन मैं तो जानता था कि वह चितवन और कछु जिहिं बस होत सुजान।कस्तूरी कुंडली बसे मृग खोजे बन माँहि।तुम तो कत्ल-ए-आम पर उतर आई हो।नहीं, तुम्हें निष्कवच करने आई हूँ। क्यों?ताकि खुद निढाल हो सकूँ। क्यों?बस ऐसे ही। कोई वजह तो होगी।नहीं, बेवजह ही समझो।बेवजह कुछ नहीं होता।कुछ नहीं होता लेकिन कुछ कुछ होता है।मतलब?अब इतने इनोसेंट भी न बनो। मैं सच में कुछ समझना चाहता हूँ।अब समझीं।क्या? तुम्हारी नासमझी।मतलब? मतलब यह कि मैंने दिमाग की जगह दिल और दिल की जगह दिमाग लगाया। यहाँ तक तो ठीक है। लेकिन सोचता हूँ कि अगर 				  हैरानी में तो फिर भी एक सूरत है, नाराजगी तो साफ वीराना कर देती है।
लेकिन इस खूबसूरती को तो यह वीरानापन ही यहाँ खींच लाई है। 
अगर यह नेकनीयती बेजा साबित हुई तो...?'
तो तुम्हार कुछ नुकसान नहीं होने वाला।
				   दिल की जगह दिमाग और दिमाग की जगह दिल लगाया होता तो क्या जिंदगी इससे अलग होती?
				   दिल की जगह दिमाग और दिमाग की जगह दिल लगाया होता तो क्या जिंदगी इससे अलग होती?
शायद। 
तो क्या होता?
तब कम से कम इतना होता कि मैं यहाँ न होती। 
तब तो बुरा हुआ। 
क्यों मेरा यहाँ आना तुम्हें रास नहीं आया?
नहीं, देख रहा हूँ दुखी होकर जाओगी?
वह तुम मुझ पर छोड़ दो।
मुझसे किसी सहयोग की बिल्कुल उम्मीद मत करना। 
तुम्हारे असहयोग पर मेरा सत्याग्रह भारी पड़ेगा।
हद होती है किसी भी बात की। 
नाराज हो गए?
नहीं, हैरान हूँ।
चलो ठीक है, हैरानी नाराजगी से कहीं बेहतर है।
क्यों?
हैरानी में तो फिर भी एक सूरत है, नाराजगी तो साफ वीराना कर देती है।
लेकिन इस खूबसूरती को तो यह वीरानापन ही यहाँ खींच लाई है। 
अगर यह नेकनीयती बेजा साबित हुई तो...?'
तो तुम्हार कुछ नुकसान नहीं होने वाला। 
लेकिन तुम्हारा जो नुकसान होगा। 
मुझे नहीं लगता कि तुम मेरा नुकसान होने दोगे? 
किस भरोसे यह कह रही हो?
तुम्हारे, मेरे रामभरोसे।
फिर भी अगर भरोसा गलत साबित हुआ तो?
तो क्या तुम ही किसी पर भरोसा कर पाओगे?
क्यों?'
क्योंकि किसी का भरोसा इतनी आसानी से नहीं तोड़ा जा सकता। उससे पहले अपने भीतर कई चीजों को तोड़ना-फोड़ना पड़ता है जिसकी मरम्मत कई दफे संभव नहीं होती। 
अगर वह आदमी है तो...। 
तुम तो पूरी फिदाईन निकली।
क्यों तुम नहीं जानते क्या कि इस रास्ते पर चलने के लिए सिर काटकर टोल टैक्स चुकाना पड़ता है। 
नहीं तो?
इस हाइवे की पहली कदम पर स्पीड ब्रेकर, दूसरे पर रेड लाइट, तीसरे पर गड्ढा और चौथे कदम पर कोई ट्रैफिक पुलिस वाला तुम्हारा लाइसेंस देखकर चालान काट रहा होगा। 
तो मैडम बेखौफ घूमना चाहती हैं।
नहीं, तुम्हारे दिल से खौफ खत्म करना चाहती हूँ।
किस बात का? 
उसी बात का, जिसने तुम्हें एक खोल में बंद कर रखा है। 
क्यों खोलना चाहती हो?
अपने लिए। 
मुझसे ज्यादा बेहतर लोग हैं तुम्हारे आसपास।
ऊधौ मन नाहिं दस-बीस! 
यह तो पागलपन है। 
ऊँ हूँ दीवानापन है।
दोनों में कोई फर्क नहीं है।
फर्क है, नजर का। 
सब तो नजर का ही फेर है। 
हाँ, पर मैं नजर नहीं फेर सकती। 
तो मैं ही ओझल हो जाता हूँ।
क्यों भाग रहे हो मुझसे?
तुमसे नहीं खुद से भाग रहा हूँ।
क्यों?
तुम मेरी जमा पूँजी जो लूटने पहुँच गई हो।
मैं लूटने नहीं, तुम्हारी रजामंदी से अपना हिस्सा लेने आई हूँ।
तुम्हें कुछ दे नहीं सकता।
मैं खुद ले लूँगी। 
बहुत ढीठ हो। 
ढीठ नहीं दृढ़ कहो।				  																	
									  
				   तुम तो यार हाथ धोकर नहीं बकायदा नहा-धोकर पीछे पड़ गई हो।
				   तुम तो यार हाथ धोकर नहीं बकायदा नहा-धोकर पीछे पड़ गई हो।
ठीक है तो चलती हूँ, इतना भाव दिखाने का क्या है?
अरे रुको तो सही।
क्यों?
बस ऐसे ही। 
क्यों?
अच्छा लग रहा है। 
क्या?
बातें करना।
तो करो न, किसने मना कर रखा है। मैं चलती हूँ। 
ओफ्फो, रुको तो सही।
नहीं।
तो ठीक है।
क्या?
मैं भी साथ चलता हूँ। 
नहीं
तो ठीक है। 
क्या
जाओ।
नहीं जाती।
क्यों? 
मेरी मरजी। 
अजीब हो।
तुम्हारी तरह तो नहीं हूँ।
क्यों, मैं कैसा हूँ? 
पूरे हिप्पोक्रेट हो।
यह भी खूब कही! 
और नहीं तो क्या? हो कुछ, दिखाते कुछ हो।
अब रहने भी दो।
रहने दिया, लेकिन एक शर्त पर।
क्या?
यह बताओ तुमने मुझमें दिलचस्पी क्यों नहीं दिखाई?
ऐसे ही, आदतन।
अब ज्यादा बनो मत। सीधे-सीधे बताओ। 
क्या?
वही जो पूछ रही हूँ।
तुम भी क्या पुराने रिकॉर्ड की तरह एक जगह अटकी तो अटकी ही रह जाती हो। यहाँ कोई फास्ट फारवर्ड का बटन नहीं है जो तुम्हारी चलेगी। इसलिए इस साज को नासाज मत करो। 
ओ.के.।
तो बताओ?
क्या?
यही कि लड़कियों में दिलचस्पी नहीं है या मुझमें?
सच पूछो तो दिलचस्पी में भी अब मेरी कोई दिलचस्पी नहीं है। 
अब दर्शन मत बघारो। कम टू द प्वाइंट। 
मैंने इस बारे में कभी सोचा नहीं।
झूठ।
सच। 
अब तुम इरिटेट कर रहे हो।
तो क्या सुनना चाहती हो?
सच।
तो सच यह है कि मेरे जानते जो लड़कियाँ थीं, उनमें से जिनका इतिहास ठीक था उनका भूगोल खराब और जिनका भूगोल ठीक था उनका इतिहास खराब। 
तो इस पीतल को चौबीस कैरेट का सोना चाहिए। 
नहीं सोना की कीमत पर पीतल नहीं खरीदना चाहता।
तो नदी किनारा बैठकर तैरना सीख रहे हो।
तो जाकर डूब जाऊँ? 
डूबे बगैर पार हो सकोगे क्या?
इसलिए तो चुपचाप बैठा हूँ किनारे पर।
लेकिन ऐसे अच्छे नहीं लगते हो।
तो क्या करूँ? 
टीवी देखते हो।
हाँ।
उसमें एक एड आता है, देखा है?'
कौन सा?
डर के आगे जीत है।
क्या मजाक है।
मजाक नहीं सच है। डरा हुआ आदमी प्यार नहीं कर सकता है। 
शैतान की खाला तुम चाहती क्या हो? 
तुम्हें।
तो मैं हूँ न।
क्यों करूँ तुम्हारा भरोसा?
क्योंकि मैं तुमसे प्रेम करती हूँ।
वह भी मुझस प्रेम करती थी।
मैं उससे अलग हूँ।
कैसे?
मैं तुम्हारे लिए किसी भी हद तक जा सकती हूँ।
वह भी यही कहती थी। 
मैं साबित कर सकती हूँ।
अगर मुर्गे की जान चली जाए और खाने वाले को मजा ही न आए तो...? 
मतलब? 
मतलब यह कि मर कर अगर इसे साबित ही कर दिया तो क्या किया? 
तो दूसरा रास्ता क्या है? 
वही तो अब तक नहीं ढूँढ पाया हूँ।
क्या मिलकर नहीं तलाश सकते हैं?
मिल गए तो तलाश की लाश हाथ लगेगी। 
तो खत्म करते हैं न इस झंझट को।
				  नहीं, क्योंकि जो मुझसे बेहतर थीं उन्होंने मेरी तरफ कभी पलटकर नहीं देखा और मैं जिनसे बेहतर था उनकी तरफ मैंने कभी मुड़कर नहीं देखा। 
मतलब मौके के अभाव में ब्रह्मचारी बने बैठे थे?
				   चाहता तो मैं भी हूँ लेकिन इस यातना में जिस सच को पाया है, वह ऐसा करने से रोकता है।
				   चाहता तो मैं भी हूँ लेकिन इस यातना में जिस सच को पाया है, वह ऐसा करने से रोकता है। 
और वह सच क्या है? 
सच यह है कि जिसे हम चाहते हैं उसे पा लें तो धीरे-धीरे हमारी दिलचस्पी उसमें खत्म होने लगती है।
इस बार ऐसा नहीं होगा। 
तुम्हें मालूम है मैंने उसे क्यों खोया?
क्यों?
क्योंकि मैं उसकी जरूरत से ज्यादा परवाह किया करता था। और तुम्हें मालूम है कि तुम यहाँ क्यों हो? 
अब बता ही दो। 
क्योंकि मैं तुम्हारे प्रति लापरवाह रहा।
जी नहीं, मैं यहाँ हूँ क्योंकि मैं तुम्हारी परवाह करती हूँ।
तुम्हें मालूम है कि मैं अब तक क्यों अकेला रहा?
क्योंकि किसी को प्रपोज करने की हिम्मत नहीं थी।
नहीं, क्योंकि जो मुझसे बेहतर थीं उन्होंने मेरी तरफ कभी पलटकर नहीं देखा और मैं जिनसे बेहतर था उनकी तरफ मैंने कभी मुड़कर नहीं देखा। 
मतलब मौके के अभाव में ब्रह्मचारी बने बैठे थे? 
कुछ ऐसा ही समझो। 
तो सबसे पहले मुझे इस बूढ़े बाघ के कंगन छीनने होंगे।
अब इस बाघ का आभूषण तुम हो।
सच में? 
नहीं, झूठ में।
मजाक मत करो।
मैं सीरियस हूँ।
पीटूँगी तुम्हें। 
क्यों? 
(रोहण कहाँ है जी?)
क्योंकि प्यार आ रहा है।
(अपने कमरे में होगा) 
यह प्यार जताने का कौन सा तरीका है?
(यह लड़का भी जो है ना!)
यह मेरा तरीका है।
(कब इसकी आदतें सुधरेंगी!) 
तो मैं अपना तरीका बताता हूँ। जरा अपने होठों को मेरे नजदीक आने दो।
(रोहण अब उठो भी, दस बज गए हैं। दुकान का शटर उठाना है। पता नहीं बेटा तुम्हारी जिंदगी कैसे चलेगी?) 
क्या पापा दो मिनट बाद नहीं जगा सकते थे। अच्छी भली जिंदगी शुरू कर रहा था!