एफडीआई : फायदा दे दो इंडिया
हिन्दी व्यंग्य रचना
हर देश की अपनी नीति और कायदे होते हैं, जो उस देश के शासक वर्ग द्वारा बनाए-बढ़ाए जाते हैं। प्रशासन तंत्र के विकास के साथ-साथ इनमें बदलाव आता रहा है। शासकों के बदलने से, उनकी सोच बदलने से नीतियों में बदलाव असामान्य न होकर बेहद सहज है। शासन के इसी सहज भाव को सहजता से लिया जाना चाहिए, मगर अक्सर शासन के इस रवैये से जनता असहज हो जाया करती है, फिर चाहे वह हमारा देश हो या विदेश। अभी हाल में हमारे देश में यह निर्णय लिया गया कि एफडीआई को खुली छूट दी जाए।बारह क्षेत्रों की पहचान कर उनमें सीधे निवेश की छूट दी गई या कहीं-कहीं पचास प्रतिशत से उपर परमिशन देकर कार्य करने की छूट प्रदान कर दी गई। अब सहज भाव से लिए गए इस निर्णय पर जनता और मीडिया असहज हो गया है। विपक्षी पार्टियों का तो काम ही सरकार के खिलाफ लामबंदी है। रचनात्मक विपक्ष का चलन हमारे यहां नहीं के बराबर है, क्योंकि जब पक्ष ही रचनात्मक माहौल नहीं दे रहा हो तो विपक्ष से इसकी उम्मीद व्यर्थ है।
सत्तापक्ष कुर्सी के कारण एक हैं वरना उसमें कई खांचे हैं, संतरे-सी सत्रह फांकें हैं। वह तो भला हो कि उनके ऊपर कड़क निगरानी की दो जोड़ी आंखें हैं जिसके कारण वे एक दिखाई देते हैं और एक इकाई में सिमटे-सिकुड़े हैं। वरना एकता के कई टुकड़े हैं।