जब देवराज इंद्र के प्रतिनिधियों ने चंद्र-लोक से संपर्क साधने की कोशिश कि तो पता चला असल मे ‘चांद’ महोदय अपनी कुछ मांगों के साथ धरने पर बैठे हैं। ‘चंद्र-लोक’ के प्रवक्ता का चांद की और से बयान आया कि ‘चांद’ की मांगें पूरी तरह से जायज़ और संवैधानिक हैं।
कोरोना और बॉलीवुड फिल्मों के डायलॉग का कॉकटेल बनाकर मजेदार पंक्तियां सोशल मीडिया में वायरल हो रही हैं। जिन्हें बेहद पसंद किया जा रहा है। अच्छी बात यह है कि इन जोक्स में कोरोना को लेकर अच्छे संदेश भी छुपे हुए हैं।
खैर बापू तुझे पता है कितने नामी हीरो-हीरोइन सुट्टा के चक्कर में घनचक्कर बने हुए हैं। सीबीआई, एनसीबी, पुलिस और न जाने कितनी एजेंसियां हर रोज नया खुलासा कर रही हैं। बस बापू इतना जान लें कि एक पूरी प्याज है और उसकी परत उतारते रहो। उसी माफिक धड़ाधड़ ...
'इंडिया दैट इज भारत' से मेरा राम-राम। आज फिर 2 अक्टूबर है। हर बरस आता है। बापू अपुन के दिमाग में एक बात बहुत तेजी से घूम रही है कि आज अगर तू होता तो पूरे 150 बरस का होता।
जब से केन्द्र सरकार ने मोटर व्हीकल एक्ट में संशोधन किया है, शराबी लोग सदमे में हैं। शाम को घर से बाहर महफिलें सजाने वाले लोगों को समझ नहीं आ रहा कि सरकार के इस फैसले के बाद करें तो क्या करें।
भारत एक मूर्ख प्रधान देश है ! मूर्खता को लेकर हमारा इतिहास सदैव ही उज्ज्वल रहा है। हमारे यहां एक से बढ़कर एक मूर्ख पैदा हुए हैं जिन्होंने भारत का नाम रोशन किया है। यह करिश्मा कर दिखाने वाली सभी महान हस्तियां हमारे लिए गौरव हैं।
राजनीतिक होली में लफंगी रंग, हुड़दंगी रंग, चेला-चपाटी रंग, जुमलेबाजी रंग, घोटालेबाजी रंग, देशभक्ति रंग, मन की बात का रंग भी खूब लगाया जाता है, क्योंकि 'बुरा न मानो होली है'। इसके अलावा कोई बुरा भी मान जाए तो दूसरा कर भी क्या सकता है?
चंदा मांगने वालों पर तो इस वर्ष विशेष, शनि-कलेक्टर लगा हुआ है। शनि-कलेक्टर का कहना है कि इतना चंदा मांगा जा चुका है कि लोगों के पास देने को कुछ बचा ही नहीं है। चंदा मांगने जो आए, उसके सामने आप अपना रसीद-कट्टा भी रख दें। चंदा हमें आदिकाल से प्रिय है।
रंगों से भरी पिचकारी हो, हंसी-ठिठोली की फुहारें हो, मस्ती और हुड़दंग में रंगे मुखौटे सारे हों.... होली पर भला और क्या चाहिए...ऊपर से ठहाकों का तड़का भी लग जाए तो रंग और भी चढ़ जाए...
चार दिन की जिंदगी... लेकिन ये गलत कि दो दिन खुशी दो दिन गम... गम है तो जाने का नाम ना ले... खुशी है तो दामन ना छोड़े। आज के दौर में जो खुशी विरासत में (भ्रष्टाचार की कृपा से) मिली है, वो दामन नहीं छोड़ती।
विश्व में एक विशेष प्रकार की मनुष्य जाति पाई जाती है उसका नाम है- 'रायचंद'। वैसे तो यह विश्व के सभी देशों में पाए जाते हैं किंतु हमारे देश में रायचंदों की मात्रा बहुतायत है।
मैं स्वप्नदर्शी हूं इसलिए मैं रोज सपने देखता हूं। मेरे सपने में रोज-ब-रोज कोई न कोई सुंदर नवयुवती दस्तक देती है। मेरी रात अच्छे से कट जाती है। वैसे भी आज का नवयुवक बेरोजगारी में
हिन्दी पखवाड़े के तहत आज गांव के गांधी मैदान में जननेता गिरोड़ीमल का भाषण होने वाला है। लोग अपने प्रिय नेता को सुनने के लिए भारी संख्या में इकट्ठा हुए हैं।
ईद के मौके पर बकरे की बात होना तो लाजमी है। लेकिन क्या कभी इस भोले प्राणी की तारीफ भी की है आपने...? क्यों भई, ईद पर कुर्बानी देने वाला ये नाचीज, चटपटे स्वाद के इतर भी तो तारीफ का हकदार है...वो भी तब, जब ये आपकी अस्थमा की समस्या का इलाज तक करता है।
कुछेक 'कमसमझ' लोगों की तरह मैंने भी अपना 'मैरेज' (विवाह) कर अपना 'मरण' तय करवा लिया था। अब आप मेरे मैरेज (या कि मरण) के बाद मेरी दुर्गति व दुर्मति की कहानी सुन लीजिएगा, थोड़ी-थोड़ी इंदौरी व मालवी भाषा व बोली के साथ। और हां, पढ़ने के बाद आप जी भरकर ...
होली विभिन्न रंगों का त्योहार है। राजनीतिक होली में लफंगी रंग, हुड़दंगी रंग, चेला-चपाटी रंग, जुमलेबाजी रंग, घोटालेबाजी रंग, देशभक्ति रंग, मन की बात का रंग भी खूब लगाया जाता है
होली भारत का प्रमुख त्योहार है, क्योंकि इस दिन पूरे भारत में 'बैंक होली-डे' रहता है अर्थात अवकाश रहता है जिसकी वजह से बैंक में घोटाले होने की आशंका नहीं रहती है।
बही-खातों में जब छोटे-छोटे घपले टाले जाते हैं, तो वो घोटाले बन जाते हैं। आशावादी भारतीय लोकतंत्र में घोटाला होना एक शुभ संकेत है। निराश न हों, कम से कम पता तो चल रहा है कि घोटाला हुआ है। घपले तो आए दिन टल जाते हैं, पर घोटाले की जांच अवश्य होती है। ...
जो सज्जन इसे पढ़ सकते हैं, बहुत संभव है वो इसे समझ नहीं सकेंगे। यद्यपि पढ़ना शिक्षित होना दर्शाता है वरन, समझना समझदारी। जो शिक्षित हो वो समझदार भी हो, यह आवश्यक नहीं। इस वाक्य का उलट भी उतना ही प्रासंगिक है – समझदार का शिक्षित होना कदापि आवश्यक नहीं।