गुरुवार, 19 दिसंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. साहित्य
  3. व्यंग्य
  4. Hindi Satire - Waiting for Neetu to come

व्यंग्य : इंतजार नीतू के आने का...

व्यंग्य : इंतजार नीतू के आने का... - Hindi Satire - Waiting for Neetu to come
The housemaid
 
नीतू का आना अथवा नहीं आना नीतू पर निर्भर करता है। जिस दिन नीतू आ गई तो समझ लो आ गई। और जिस दिन नहीं आई तो मानना ही पड़ेगा कि आज नीतू नहीं आई। नीतू भारतीय रेल गाड़ियों की तरह है जो कभी-कभी ही समय पर आती हैं। 
 
गृहणियों को नीतू का बड़ा इंतज़ार रहता है। आखिर नीतू है कौन ?उसके आने से अथवा न आने से देश के स्वास्थ्य पर क्या असर पड़ता है। 
 
नीतू हमारी काम वाली है। आधे से ज्यादा मोहल्ले में वही काम करती है। दिन के बारह बजते तक मोहल्ला नीतूमय हो जाता है। मिसेज जेड हमारे यहां आ जातीं है।
 
'नीतू आई'?
'नीतू आई'? 
 
यही एक प्रश्न, और फिर मिसेज ए, बी, सी, से लेकर मिसेज जेड तक सारी नीतू पीड़ित महिलाएं सड़क पर एकत्रित हैं जाती हैं। आज फिर नीतू नहीं आई, वज्रपात हो गया हमारे मोहल्ले में नीतू के नहीं आने से। हमारे घर की व्यवस्था ऐसे भंग हो गई जैसे देश की अर्थ व्यवस्था भंग हो गई हो। 
 
श्रीमती जी का क्रोध सातवें आसमान को फाड़कर आठवें तक जा पहुंचा। 'कल से बंद कर दो ससुरी को, आलसी कहीं की, निखट्टू। 'एक तो दिन भर आना नहीं और अगर आना भी तो शाम पांच बजे। भला कौन बैठा रहता है शाम तक। झाडू, पोंछा, बर्तन सब आपने हाथ से करो।'
     
प्रेम की चाशनी में पगी ऐसी ढेरों दुआएं मोहल्ले की आधी महिलाएं नीतू को देती रहती हैं।
 
दुआओं के महकते फूल बरसाने में हमारी श्रीमती जी अग्रणी हैं। लेकिन नीतू के घर आते ही और उसके अनुपस्थित रहने के तर्क सुनकर श्रीमती जी बाग-बाग हो जाती हैं। रोनी सूरत बनाकर जब वह अपने मन के उद्गार उड़ेलती है तो श्रीमती जी पर तो दुख का पहाड़ ही टूट पड़ता है। अरे राम-राम इतना दुख लिखा है इसके भाग्य में। उसे एक प्याली में गरमा-गरम चाय के साथ बिस्कीट, समोसा भी मिल जाता है। 
 
लगता है नीतू सरकारी नीतियों का अनुसरण करती है। आकस्मिक अवकाश, चिकित्सा अवकाश, अर्जितावकाश और ना जाने कितने अवकाश मिलते हैं सरकारी कर्मचारियों को। कुछ दिनों से एक और अवकाश मान्यता प्राप्त अवकाशों में शुमार हो गया है। वह है फ्रेंच लीव।

इस अवकाश में ना ऑफिस जाओ और न ही छुट्टी का कोई आवेदन दो, बस बिना बताए, बिना सूचना दिए घर बैठ जाओ। दूसरे अवकाश लेने के लिए तो बॉस से पूछो, आवेदन दो, बड़ी मशक्क्त है लेकिन फ्रेंच लीव में ऐसा कुछ भी नहीं है। जाना हो तो ऑफिस जाओ, नहीं जाना हो तो नहीं जाओ। जिस प्रकार विरोधियों की अंतश्चेतना में उबाल आ जाने पर संसद ठप हो जाती है, उसी प्रकार नीतू की चेतना जागृत हो जाने पर उसका आना ठप हो जाता है।

वह कहीं आती-जाती भी नहीं। बस फ्रेंच लीव मारकर आराम से बैठ जाती है। कभी-कभी ग्रीष्म अवकाश में राष्ट्रीय लोग केरल, कुल्लू, मनाली, दार्जिलिंग....... कहीं भी चल देते हैं, नीतू भी चल देती है नानी, मामी अथवा दादी के घर फ्रेंच लीव लेकर।  
 
एक ज्वलंत समस्या है गृहणियों के लिए नीतू, वहीं न घरों में सभी काम गृहणियों को अपने हाथ से करना पड़ते हैं। नीतू एक संस्कृति है देश की परंपराओं के निर्वहन की। नीतू एक कार्य पद्धति है विकास को अपने हाथों सही पटरी पर बैठने की| देश के निष्कामकर्मियों की नीतू एक पूजा है, एक निर्गुण उपासना है।
 
नीतू नहीं आती तो घर में धूप नहीं आती, खिड़कियों से हवा नहीं आती, स्टेशन पर रेल गाड़ी नहीं आती। चारों तरफ बस नकारात्मक भाव है फिर भी अस्तित्व कायम है घर का, प्लेटफॉर्म का आदमियों का।
             
मिसेज के. और मिसेज एम. हमारे घर पर आ धमकीं हैं। एक ही प्रश्न- 
'नीतू आई?'   
  
श्रीमती जी का वही नपा-तुला जबाब...
'नीतू नहीं आई?'

(वेबदुनिया पर दिए किसी भी कंटेट के प्रकाशन के लिए लेखक/वेबदुनिया की अनुमति/स्वीकृति आवश्यक है, इसके बिना रचनाओं/लेखों का उपयोग वर्जित है...)
ये भी पढ़ें
एंजेलिना, मनीषा कोईराला,सोनाली बेंद्रे से लेकर महिमा तक ये 8 अभिनेत्रियां बन चुकी हैं कैंसर फाइटर