गुरुवार, 25 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. साहित्य
  3. व्यंग्य
  4. murkhta par vyangya

व्यंग्य : मूर्खता की नई धारा

व्यंग्य : मूर्खता की नई धारा - murkhta par vyangya
भारत एक मूर्ख प्रधान देश है ! मूर्खता को लेकर हमारा इतिहास सदैव ही उज्ज्वल रहा है। हमारे यहां एक से बढ़कर एक मूर्ख पैदा हुए हैं जिन्होंने भारत का नाम रोशन किया है। यह करिश्मा कर दिखाने वाली सभी महान हस्तियां हमारे लिए गौरव हैं।


इन हस्तियों में कालिदास का नाम सर्वोपरि है। नाम तो सुना ही होगा ! मूर्खता की दुनिया में बहुत ही प्रतिष्ठित ब्रांड रहे हैं। कालिदास की मूर्खता के आगे तो गधों ने भी धूल चाट ली और कई गधों ने सुसाइड कर डाला। लेकिन कालिदास ने मूर्खता से हाय तौबा नहीं की।

 
उन्होंने मूर्खता को लेकर हमेशा अन्वेषण किया, वैज्ञानिक गुत्थियां सुझायीं, नए प्रयोग किए इसलिए वे एक प्रयोगधर्मा मूर्ख है। मानव बनना तो केवल भाग्य है लेकिन कालिदास की तरह मूर्ख बनना सौभाग्य है। जिनकी मूर्खता की प्रगति ने उन्हें एक दिन महामूर्खों की श्रेणी से महाज्ञानियों की कतार में लाकर खड़ा कर दिया। यकीन मानिए यह कतार नोटबंदी की नहीं थी।
 
निःसंदेह, कालिदास मूर्ख से महाज्ञानी बनने की प्रक्रिया का जीवंत उदाहरण है। लेकिन बड़े अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि कालिदास के देशवासी आज मूर्खता के क्षेत्र में कोई प्रशंसनीय कार्य नहीं कर रहे हैं। वे मूर्खता को लेकर प्रोपेगंडा करने में व्यस्त हैं। आज के इन खरबूजों को मूर्ख बनना भी बराबर से नहीं आता।

 
कौन भला इन मंदबुद्धियों को समझाए कि मूर्ख बनना मूर्ख बनाने से बड़ी कला है। जो आनंद मूर्ख बनने में नहीं आता वो मूर्ख बनकर आता है। जिस व्यक्ति ने अपने को मूर्ख बना लिया उसने जीवन में सबकुछ पा लिया। लेकिन आधुनिक समय में तो हमारा विश्वास मूर्ख बनने से ज्यादा मूर्ख बनाने में है। इसलिए आजकल हर कोई मूर्ख बनाने के लिए अनीति (राजनीति) का दामन थामने को इच्छुक है। क्योंकि मूर्ख बनाने का अनीति एक अचूक बाण है।

जिससे आगे वाला मतदाता मात खाकर मरता ही है। देश में टपरी पर चाय बेचने वाले से लेकर चाय बेचकर प्रधानमंत्री बनने वाले सभी मूर्ख बनाने में लगे हैं। कुछ वायदे बेचकर वोट हथिया लेते हैं तो कुछ चिप्स के पैकेट में हवा बेचकर लूट लेते हैं। कुछ गटर को गंगा समझकर डुबकी लगा लेते हैं तो कुछ गंगा को गटर समझकर उसमें मृतकों की अस्थियां बहा देते हैं। 
 
हमने मूर्ख बनाने का अहम माध्यम भगवान की आस्था को बना रखा है। इसलिए हमें आज भारत मां की जगह राधे मां अच्छी लगने लगी है। इसी तरह राम की जगह आसाराम और रहीम की जगह गुरमीत राम रहीम अच्छे लगने लगे हैं। समस्याओं का समाधान तो हमने दानपात्रों में सौ-सौ रुपए डालकर कर दिया है। इतने में तो ट्रैफिक हवलदार भी नहीं मानता। भगवान क्या खाक मानेगा।
 
नेता जनता को मूर्ख बनाकर अपने को कालिदास घोषित करने पर तुले हैं। लेकिन वे गधाप्रसाद ही बन रहे हैं क्योंकि जनता बोतल और कंबल कई और से उठा रही हैं और वोट का ठप्पा कई और लगा रही हैं। हम यह भूलते जा रहे हैं कि हमारे यहां मूर्खतंत्र है या लोकतंत्र! आजादी के नेताओं ने देश को लोकतंत्र दिया और आधुनिक नेताओं ने उसे मूर्खतंत्र बना दिया।

 
इतनी प्रगति हुई है देश में और हम ऐसे ही चिल्ला रहे हैं कि अच्छे दिन कब आएंगे? खाली पीली फोकट का टेंशन लेकर अपनी छाती और माथा पीट रहे हैं। हमें तो अब खुश होना चाहिए कि हम कालिदास के वंशजों ने मूर्खता के क्षेत्र में अपनी एक नई धारा बनाई है। जिससे अपने देश का विकास द्रुतगति से हो रहा है। फरियाद इतनी है कि मूर्खतंत्र के माफिया हमें भले ही मूर्ख बनाए लेकिन मूर्ख बनाने से पहले आगाह जरूर करें। ताकि पता तो चले कि सात दशक से हम मूर्ख बन रहे हैं।