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भारतवर्ष के नामकरण एवं राजनैतिक आदर्शों पर वेबिनार

शनिवार,जनवरी 28, 2023
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शरद की पूनम रात में चांद शबाब पर होता है। अमृत बरसाता हुआ,धवल चांदनी बिखेरता हुआ और पूरा का पूरा दिल में उतरता हुआ। कुछ-कुछ केसरिया, कुछ-कुछ बादामी। जैसे केसर महक उठी हो गहरे नीले आकाश में।
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गुरुद्वारा गए तो सिर पर कपड़ा लेना ही है या अज्ञारी में जाएं तो उनके नियम मानते हुए दूर ही खड़े रहे। लगता था कि सम्मान देना, बनाए गए नियम मानना कर्तव्य हैं। अधिकार वाली बात दिमाग मे घुसी ही नहीं थी। आखिर स्कूल के कायदे क्यों माने जाएं और कॉलेज तो हैं ...
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नए साल में लड़ें हम अपनी ही कमजोरियों से। अपनी कमियों से... संकट और चुनौतियां हमारी आशा और विश्वास से बढ़कर नहीं है। इनके आकार बड़े हो सकते हैं, लेकिन गहराई तो विश्वास एवं आशा में ही होती है। जीत हमेशा गहराई की होती है। बीते साल की उदासी पर भारी ...
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इसी क्रम में 28 जनवरी को बड़नगर में आलोचना साहित्य के शिखर पुरुष एवं नाटककार प्रभाकर क्षोत्रिय को समर्पित एक दिवसीय आयोजन बड़नगर में किया गया। आयोजन में प्रभाकर क्षोत्रिय के कृतित्व और व्यक्तित्व पर विद्वानों के व्याख्यानों के अलावा एक अनूठी सांगीतिक ...
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इस पहल के अंतर्गत स्कूली छात्रों के लिए चार वर्गों में अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर केंद्रित प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जा रहा है।
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तुम्हें अपने घर-आंगन की खबर ही कहां है? तुम तो यह भी भूल गए कि परसों नुक्कड़ के उस पेड़ को काट दिया गया जिसकी इमलियाँ तुम रोज अपने जेब में भर कर ले जाते थे और उन्हीं के कारण स्कूल में कई दोस्त बने थे तुम्हारे। हां, सड़क बनाने के लिए उस पेड़ को काट दिया।
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कहां गया वो बचपन..वो परीक्षा के दिन...जब केवल पास होने पर मिठाई बंट जाया करतीं थीं और मीठे-मीठे ये भ्रम कि इन्हे प्यार से सहेज कर रखने से हम अच्छे नंबरों से पास हो जाएंगे। मजा और दुगना हो जाता था जब गिलहरी की पूंछ पर हाथ फेरने से पास होने की पूरी ...
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तुम्हारा अपने शरीर के निजी हिस्सों के संरक्षण को लेकर सजग होना सही ही नहीं, जरूरी भी है। यह तुम्हारा अधिकार है। इतना ही नहीं बल्कि तुम्हें गंदे स्पर्श, पकड़ और कुत्सित अश्लील इशारों की समझ भी बनानी होगी। और खुद को इनसे बचाना भी होगा। ऐसे किसी भी ...
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हां, मैं बदल रहा हूं अपने माता-पिता, भाई-बहन, जीवनसाथी, बच्चों और दोस्तों से प्यार करने के बाद, अब मैं खुद से प्यार करने लगा हूं।
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गुलजार ने नज्में लिखीं, तो कहानियां छपीं। गीत लिखे, तो निर्देशन में आ गए। कहा‍नियां लिखीं, तो पटकथाओं में ख्याति पाई। ऐसा ही कुछ सिलसिला अब तक जारी है।
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औरत, महिला, स्त्री, नारी, खवातीन या वामा। पुकारने के लिए कई शब्द हैं, लेकिन महसूसने के लिए? कुछ भी नहीं, एक रिक्तता, जड़ता, खिन्नता, खिंचाव, खुश्की या फिर खीज। इस वक्त लेखनी की नोक पर आने को बेताब, आकुल और व्यग्र हैं। वे समस्त महिलाएं जो यूं तो कई ...
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जरात में घर-घर लोग पतंगबाजी का मजा लेते हैं। इस दिन पूरा परिवार घर की छत पर जमा हो जाता है। यदि आसमान से नीचे देखा जा सके तो पता चलता है कि सिर्फ पुरुष वर्ग ही नहीं महिलाएं भी पतंग उड़ा रही हैं।
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दोस्ती एक ऐसा आकाश है जिसमें प्यार का चंद्र मुस्कुराता है, रिश्तों की गर्माहट का सूर्य जगमगाता है और खुशियों के नटखट सितारे झिलमिलाते हैं। एक बेशकीमती पुस्तक है दोस्ती, जिसमें अंकित हर अक्षर, हीरे, मोती, नीलम, पन्ना, माणिक और पुखराज की तरह है, ...
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इंदौर। इंदूर ने अपने नाम को सार्थक करते हुए हिंदी साहित्य जगत के दिव्यमान नक्षत्र 'डॉ. प्रभाकर माचवे जन्मशती' समारोह पूर्ण गरिमा के साथ मनाया गया। इस मौके पर मराठी भाषी होने के बावजूद हिंदी के दिव्य नक्षत्र को पूरी शिद्दत के साथ याद किया और ...
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एक नन्हा सा दीप। नाजुक सी बाती। उसका शीतल सौम्य उजास। झिलमिलाती रोशनियों के बीच इस कोमल दीप का सौन्दर्य बरबस ही मन मोह लेता है। कितना सात्विक, कितना धीर।
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कोर्ट फैसले के बाद मैं और मेरे जैसे बहुत से लोग यह जानना चाहते हैं फिर तुम मरी कैसे? तुम्हें मारा किसने? फिल्म पर भरोसा कर लें? किताब में लिखा हुआ सच मान लें?
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इस बार मुझे मत जलाइए : रावण

गुरुवार,सितम्बर 28, 2017
मेरी मृत्यु को नौ लाख वर्ष हो गए हैं। इतनी सुदीर्घ अवधि पश्चात भी लग रहा है जैसे मेरा निर्वाण अभी कल ही की बात है, क्योंकि इन नौ लाख वर्षों में भी आप मेरे पाप को कहां क्षमा कर पाए हैं।
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इस मोहक मनभावन त्योहार पर इस बार बांधें कुछ ऐसी राखियों को जो हर भाई-बहन के जीवन जीने का अंदाज बदल दें.... यह राखी ....पढ़ें विस्तार से...
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'काश होती मैं एक चिड़िया...! जैसे उड़ आई बाबुल के आंगन से फिर उड़ जाती... ...और बैठ जाती माटी की अनगढ़ लाल मुंडेर पर देती आवाज पूजाघर में चंदन घिसती दादी को, पिंजरे में कटोरी बजाते हीरामन तोते को, चारे के लिए रंभाती श्यामा गाय को....
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