पद्मश्री डॉ. ज्ञान चतुर्वेदी की पुस्तक 'पागलखाना' के अंग्रेज़ी अनुवाद 'द मैड हाउस' का विमोचन
इंदौर। हिन्दी के प्रसिद्ध लेखक पद्मश्री डॉ. ज्ञान चतुर्वेदी की पुस्तक 'पागलखाना' के अंग्रेज़ी अनुवाद का विमोचन इंदौर में शाम 4 बजे बाहरी संस पर हुआ। इस अवसर पर लेखक ज्ञान चतुर्वेदी और पुस्तक के अनुवादक पुनर्वसु जोशी से लेखिका और अनुवादक मृणालिनी पांडे ने चर्चा की। अंग्रेज़ी में 'द मैड हाउस' शीर्षक से छपा यह उपन्यास, सन नब्बे के दशक में लागू की गई आर्थिक उदारवाद की नीतियों के बाद भारतीय समाज में आए परिवर्तनों को अपनी विषय वस्तु बनाता है। एक फंतासी के रूप में लिखा उपन्यास, बाजारवाद और नागरिक के एक उपभोक्ता में बदल दिए जाने को दर्ज़ करता है।
अनुवादक पुनर्वसु जोशी ने कहा कि किसी व्यंग उपन्यास का अनुवाद करना बहुत कठिन होता है। इस किताब का अनुवाद करना एक चुनौती भरा काम था। क्योंकि अक्सर कहानियों का उपन्यासों का अनुवाद होता रहा है लेकिन व्यंग का अनुवाद करना एक बहुत बड़ी चुनौती है। जैसे मैं एक उदाहरण दूं कि हिंदी में एक कहावत है- इसकी टोपी उसके सिर। अगर आप इसका अंग्रेजी में अनुवाद करेंगे तो सारा मजा, सारा हास्य खत्म हो जाएगा। तो अब आप इसे कैसे अनुवाद करेंगे...तो ये सबसे बड़ी चुनौती थी, और डॉक्टर ज्ञान चतुर्वेदी जी भारत के सबसे बड़े व्यंग्य लेखक है तो चुनौती और भी बढ़ जाती है, लेकिन मैं इसे निभा पाया यही मुझे सुकून है।
डॉ. ज्ञान चतुर्वेदी ने विमोचन के अवसर पर बताया कि किस तरह बाजारवाद हमारी भावनाओं को संचालित कर रहा है। वह अप्रत्यक्ष रूप से हमारे जीवन में संकट खड़ा करता है और बाद में समाधान भी देता है। ज्ञान चतुर्वेदी ने कहा कि पुनर्वसु जोशी ने मेरे व्यंग्य उपन्यास पागलखाना का अंग्रेजी में मेड हाउस नाम से अनुवाद किया। यह नियोगी प्रकाशन से प्रकाशित हुआ है। यह दरअसल यह एक यूनिवर्सल सब्जेक्ट है। इसलिए इसका अंग्रेजी में आना बेहद जरूरी था। ताकि दुनिया को समझ सकें कि मार्केट इकॉमानी के कितने खतरे हैं। यह बाजारवाद के खिलाफ एक उपन्यास है। हिंदी में यह एक बहुत ही यूनिक तरह का उपन्यास है जिसे बहुत अवार्ड मिल चुके हैं। मुझे लगता है कि यह अंग्रेजी में आएगा तो और ज्यादा पापुलर होगा।
प्रतिष्ठित व्यंग्यकार-उपन्यासकार ज्ञान चतुर्वेदी के सक्रिय लेखन की शुरुआत सत्तर के दशक में धर्मयुग पत्रिका के साथ हुई। अभी तक हज़ार से अधिक व्यंग्य रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है जिनमें से कई अलग-अलग ज़िल्दों में संकलित कर प्रकाशित किए गए हैं। नरक-यात्रा उनका चर्चित उपन्यास है जिसमें भारतीय चिकित्सा शिक्षा एवं व्यवस्था की ख़ामियों पर प्रहार किया गया है। इसके पश्चात् बारामासी, मरीचिका, हम न मरब, पागलख़ाना जैसे उपन्यास प्रकाशित हुए। व्यंग्य-उपन्यास के क्षेत्र में उन्होंने मौलिक योगदान किया है। प्रेत कथा, दंगे में मुर्गा, मेरी इक्यावन व्यंग्य रचनाएँ, बिसात बिछी है, ख़ामोश! नंगे हमाम में हैं, प्रत्यंचा और बाराखड़ी उनके कुछ चर्चित व्यंग्य-संग्रह हैं। हिंदी साहित्य में योगदान के लिए उन्हें भारतीय सरकार ने उन्हें पद्म श्री से सम्मानित किया है।
पुनर्वसु जोशी ने अमेरिका से नैनोटेक्नोलॉजी में पी.एच.डी की है। सन 2014 में भारत लौटने के बाद वे एक नैनोटेक्नोलॉजी शोधकर्ता से अनुवादक बने। उन्होंने हिंदी साहित्य की चुनिंदा 40 कहानियों का अंग्रेज़ी में अनुवाद किया। ये कहानियां हिंदी साहित्य के सवा सौ साल के विस्तार को दिखाती हैं। ए जर्नी इन टाइम I और II (2019) शीर्षक से 1000 पन्नों का यह अनुवाद, दो खंडों में छपा है। उसके बाद उन्होंने हिंदी के प्रसिद्ध व्यंग्यकार श्री ज्ञान चतुर्वेदी जी के उपन्यास 'पागलखाना' का अंग्रेज़ी में अनुवाद किया है।