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Written By DW
Last Updated : रविवार, 30 अप्रैल 2023 (08:56 IST)

दक्षिण-पूर्व एशिया: मानव तस्करी से कैसे निपटा जाए?

दक्षिण-पूर्व एशिया: मानव तस्करी से कैसे निपटा जाए? - southeast asia how to combat a human trafficking crisis
ऑनलाइन फ्रॉड करने वाली कंपनियों और अवैध जुए के अड्डों यानी केसिनो के कारण दक्षिण पूर्व एशिया के मेकांग क्षेत्र को एक गंभीर मानवीय संकट का सामना करना पड़ रहा है।
 
आपराधिक गिरोहों के खिलाफ कार्रवाई के बावजूद, मानव तस्करी और अवैध घोटालों के बदलते तौर-तरीके विनाशकारी होते जा रहे हैं।
 
म्यामांर में श्वे कोक्को को मानव तस्करी का केंद्र बिन्दु यानि एपीसेंटर माना जाता है। हाल के दिनों में यहां कई जुआ घरों पर छापे पड़े थे जिसकी वजह से म्यांमार की सेना और कई जातीय समूहों के बीच भयानक लड़ाई हुई। हजारों की संख्या में लोग भागकर पड़ोसी देश थाईलैंड चले गए।
 
इस बीच, म्यांमार जैसे अशांत क्षेत्रों में जहां कानून व्यवस्था की स्थिति ठीक नहीं है, वहां अपराधियों को खूब मदद मिल रही है। ये लोग इन इलाकों को एक तरह से नये ‘गुलाम परिसर' के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं।
 
तस्करी करके लाए गए लोगों को उनकी इच्छा के विरुद्ध यहां रखते हैं, उनके साथ दुर्व्यवहार करते हैं, मारते-पीटते हैं और यहां तक कि कभी-कभी जान से भी मार डालते हैं।
 
चूंकि संकट बहुत बढ़ गया है और तस्कर लोग दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के नागरिकों को निशाना बना रहे हैं, इसलिए सिविल सोसायटी ग्रुप्स और बचावकर्ता मांग कर रहे हैं कि ऐसे अपराधों की तत्काल पहचान करके उनके खिलाफ कार्रवाई हो।
 
अपराधी जगह बदलते रहते हैं
हाल के वर्षों में, कम्बोडिया दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में मानव तस्करी के लिए सबसे खास जगह बन गया है। हो सकता है कि तस्करों का संबंध किसी संगठित आपराधिक गिरोहों से हो।
 
इन लोगों ने एक आकर्षक व्यवसाय के रूप में ऑनलाइन स्कैम यानी फ्रॉड का धंधा करना शुरू किया है और विभिन्न सोशल मीडिया ऐप्स के जरिए मुख्य रूप से विदेशी लोगों को अपना निशाना बना रहे हैं। वे लोगों को अच्छी तनख्वाह के साथ रहने की जगह की पेशकश भी करते है।
 
लोग अक्सर इनके इन नकली विज्ञापनों वाली बातों में आ जाते हैं और फिर इनके जाल में फंसकर स्लेव कंपाउंड तक पहुंच जाते हैं।
 
सऊदी शॉपिंग ऐप पर लग रही है इंसानों की बोली
अंतरराष्ट्रीय दबाव में कंबोडिया के अधिकारियों ने इस सिंडिकेट पर शिकंजा कसने का प्रयास किया है और इन स्लेव कंपाउंड्स पर छापा मारकर कई पीड़ितों को आजाद भी कराया है। लेकिन देश भर में चली इन कार्रवाइयों के बावजूद, विशेषज्ञों का और सूत्रों का कहना है कि संकट दूर नहीं हुआ है।
 
बर्मा प्रोग्राम ऑफ यूनाइटेड स्टेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ पीस (USIP) के कंट्री डायरेक्टर जैसन टॉवर कहते हैं, "जिस रफ्तार से यह अवैध कारोबार बढ़ रहा है, उसकी तुलना में अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया की रफ्तार बहुत धीमी है।”
 
टॉवर कहते हैं कि म्यांमार और लाओस जैसी जगहों पर स्थिति बहुत ज्यादा गंभीर है क्योंकि यहां कानून-व्यवस्था की स्थिति बहुत लचीली है और कई इलाके तो कानून प्रवर्तन कराने वाली एजेंसियों की पहुंच से बहुत दूर हैं।
 
कानून के शासन की कमी का फायदा उठाते हुए अपराधी ऑनलाइन जुआघर और पोंजी स्कीम्स चला रहे हैं और वन्यजीवों की तस्करी में शामिल हो रहे हैं।
 
डीडब्ल्यू से बातचीत में ह्यूमन रिसर्च कंसल्टेंसी की डायरेक्टर मीना चियांग कहती हैं, "तस्करों के लिए महंगे ब्रांड्स की चीजों और लक्जरी कारों का इस्तेमाल करके स्टेटस हासिल करना ही पर्याप्त नहीं है बल्कि इस अवैध कारोबार के जरिए कमाए अकूत धन से वो जो चाहते हैं, हासिल कर लेते हैं। यही वजह है कि अब ये लोग वन्यजीवों की तस्करी में भी शामिल हो गए हैं और विदेशी जानवरों को खरीद रहे हैं।”
 
एशिया के बाहर के लोगों को शिकार बनाना
हाई-टेक रोजगार का वादा करके करीब 20 देशों के लोगों को ऐसी कार्रवाइयों में फंसाया गया है। बंदूक की नोंक पर इन्हें दोहरे अपराध में शामिल होने को बाध्य किया जाता है जिसमें वो दूसरे पीड़ितों को अपना पैसा गंवाने के लिए स्कैम करते हैं। यदि ऐसा करने सो वो इनकार करते हैं तो उन्हें शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना दी जाती है।
 
तस्करों के हाथों से बच निकलने वाले एमडी अब्दुस्सलाम डीडब्ल्यू को बताते हैं, "कंपाउंड से भाग पाना लगभग असंभव होता है। यदि आप एक बार इस कंपाउंड में पहुंच गए तो वो आपके साथ गुलामों जैसा व्यवहार करते हैं और वो यह सुनिश्चित कर लेते हैं कि आप वहीं रहेंगे और उनके लिए काम करेंगे।”
 
सलाम को बांग्लादेश से कंबोडिया ले जाया गया था और पांच महीने तक उन्हें सुअर काटने "pig-butchering" स्कैम में शामिल होने के लिए बाध्य किया गया। इसमें उन्हें क्लाइंट्स को रोमांस करने और अमीर बनने का लालच देना था और फिर इसके जरिए कमाए गए धन को उन लोगों को सौंप देना था।
 
इस स्कैम में फंसने वाले ज्यादातर पीड़ित लोग एशिया के बाहर के थे और इन लोगों को निशाना बनाने के लिए तमाम सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स और टिंडर जैसे डेटिंग ऐप की मदद ली जाती थी।
 
पीड़ितों का भरोसा जीतने के लिए ये लोग सोशल मीडिया पर कई फर्जी प्रोफाइल्स बनाते थे जिनके जरिए दोस्ती या रिलेशनशिप तक बनाते थे।
 
कैसे बताएं कि आप इस स्कैम का शिकार हो गए हैं
डीडब्ल्यू से बातचीत में स्टेसी सुरक्षा कारणों से अपना असली नाम जाहिर न करने का अनुरोध करती हैं और कहती हैं, "यदि आप यह जान लें कि स्कैमर लालची है, तो इसके संकेत आपको मिल जाएंगे।”
 
उन्होंने एक स्कैमर पर इतना भरोसा कर लिया था कि स्कैमर ने उन्हें अपनी बचत को क्रिप्टोकरेंसी में निवेश करने को राजी कर लिया था।
 
हालांकि वो ऐसे कुछेक लोगों में थीं जिन्हें अपना पैसा वापस मिल सकता था जबकि स्कैम के जाल में फंसने वाले ज्यादातर लोग अपनी संपत्ति गंवा बैठते हैं।
 
स्टैसी का संगठन, इंटरनेशनल एंटी स्कैम एंड ट्रैफिकिंग अलाएंस, स्कैम पीड़ितों की मदद करता है और स्कैम जहां हो रहा है और किस तरीके से हो रहा है, इन सब बातों का पर्दाफाश करने में मदद करता है। वो कहती हैं, "कई स्कैम पीड़ितों को मनोवैज्ञानिक उपचार की जरूरत भी पड़ती है क्योंकि एक तरह से उनका आदमी पर से विश्वास उठ जाता है और आर्थिक झटका तो लगता ही है।”
 
अब्दुस्सलाम कहते हैं, "यदि ऑनलाइन आपसे कोई परिचय करता है और आपसे दोस्ती करने का इच्छुक है और आपको अपनी लक्जरी लाइफस्टाइल दिखाता है और कुछ दिन बाद वही आपको यह भी दिखाएंगे कि यह सब पैसा उन्होंने क्रिप्टोकरेंसीज से कमाया है और आपको भी क्रिप्टोकरेंसीज में निवेश करने को कहेंगे। ऐसी स्थिति में आपको तुरंत यू-टर्न लेना चाहिए और उससे छुटकारा पा लेना चाहिए क्योंकि निश्चित तौर पर वो एक स्कैमर है।”
 
कई महीनों की कैद के बाद सलाम इस कंपाउंड से बाहर में आने में सफल हुए थे। सलाम अब उन लोगों को बाहर निकालने में अधिकारियों और सिविल सोसायटी के लोगों की मदद कर रहे हैं जो अभी भी कंपाउंड्स में कैद हैं।
 
अवैध व्यापार करने वालों की राष्ट्रीयता
ह्यूमैनिटी रिसर्च कंसल्टेंसी की ताजा रिपोर्ट बताती है कि सलाम जैसे स्कैम पीड़ितों की बढ़ती संख्या को यूरोप, अफ्रीका या फिर अमेरिका से आकर्षित किया जा रहा है।
 
मीना चियांग कहती हैं कि कंबोडिया और म्यांमार के स्थानीय अपराधियों के लिए पीड़ितों को झांसे में लेना बड़ा मुश्किल है जब तक कि उनके तार उन देशों के अपराधियों से नहीं हैं जहां के लोगों को ये अपने जाल में फंसा रहे हैं।
 
चियांग कहती हैं, "संबंधित देशों के स्थानीय अपराधी तो इस फ्रेमवर्क में बहुत छोटी कड़ी हैं। वास्तव में जरूरी नहीं कि ये लोग अपराध में शामिल ही हों, लेकिन वो इस स्कैमिंग अपराध की सप्लाई चेन का हिस्सा जरूर होते हैं।”
 
कुछ हफ्ते पहले, ताइवान ने तस्करों के एक समूह को दोषी ठहराया था जिन्होंने 88 पीड़ितों को कंबोडिया के स्कैमिंग कंपाउंड्स में भेजा था। यह समूह कंबोडिया में स्कैमिंग कार्रवाइयों में शामिल नहीं था लेकिन ताइवान के लोगों को कंबोडिया भेजने में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका थी।
 
चियांग कहती हैं, "जिन देशों के लोग इस स्कैमिंग के शिकार होते हैं, उन देशों के लोगों को कोशिश करनी चाहिए कि वो इसमें शामिल स्थानीय लोगों को जड़ से उखाड़ फेंकें।”
 
मानव तस्करी और अवैध स्कैमिंग जैसी गतिविधियां दरअसल वैश्विक स्तर पर सुरक्षा का मुद्दा हैं। टॉवर कहते हैं, "पिग बचरिंग कोई घरेलू शब्द नहीं है। लोगों को इस बारे में जागरूक करने के लिए शिक्षित करने की काफी जरूरत है कि मानव तस्करी और ऑनलाइन स्कैम्स कितने खतरनाक हैं।”
 
ऑनलाइन भर्ती करने वाले सोशल मीडिया पेजों को एक बढ़ती हुई समस्या के रूप में देख रहे हैं, जहां वेबसाइट्स पर अवैध नौकरियों के ऑफर दिए जाते हैं और इस तरह से उन्हें पोस्ट किया जाता है जैसे वो वास्तविक नौकरियां हैं।
 
उद्योगों को भी ये देखना होगा कि ऐसे फर्जी विज्ञापनों को पोस्ट न होने दें और इस मामले में कानून प्रवर्तन करने वाली एजेंसियों के साथ समन्वय बनाकर काम करें।
 
चियांग और उनकी टीम के लिए पीड़ितों की बजाय अपराध पर फोकस करने की जरूरत है। दुनिया भर में फैली उनकी संपत्तियों की ओर इशारा करते हुए वो कहती हैं कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को चाहिए कि वो इन अपराधियों की ऐसी संपत्तियों को फ्रीज करें या फिर बैंकों को चेतावनी देने के लिए इन्हें आतंकवादियों के रूप में चिह्नित करें।
 
चियांग कहती हैं, "लोग तस्करी के शिकार सिर्फ इसलिए ही नहीं हो जाते कि वो कमजोर होते हैं बल्कि इसलिए भी होते हैं कि तस्करी करने वाले लोग मौजूद हैं।” (एनो हिंज)
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